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ये शायद विपक्ष की अब तक की सबसे घटिया चाल थी

Amol A Siddhamshettiwar द्वारा Amol A Siddhamshettiwar
16 June 2017
in मत
किसान
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महाराष्ट्र में स्थानीय किसानो को ऋणमाफ़ी मिल गयी। और साथ ही इसका श्रेय अपने नेताओ को दिलवाने के लिये सभी पार्टियो के कार्यकर्ता जुट गए। बड़े बड़े होर्डिंग्स लगाये गए, अखबारो में बड़े बड़े विज्ञापन दिए गए, संपादकीयो में बड़े बड़े लेख छापे गए। पर क्या ऋणमाफ़ी सच में जरुरी थी, क्या इससे किसानो की परिस्थिति पे कोई असर पड़ेगा और सबसे जरुरी बात क्या जो आंदोलन किसानो के नाम पे हुआ वो सच में किसान आंदोलन था?

इससे पहले भी कई सरकारे किसानो को ऋणमाफ़ी दे चुकी है, 2008 में भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा किसानो का ऋण माफ़ किया जा चूका है, पर अगर आकड़े देखेंगे तो पता चलेगा के 2008 की ऋणमाफ़ी के बाद भी किसान आत्महत्याओ का सिलसिला कम नही हुआ। इसका एक महत्वपूर्ण कारण ये है के ऋणमाफी समस्या का समाधान ही नही है। एक तरह से देखा जाये तो ऋणमाफ़ी अपने आप में एक समस्या है। महाराष्ट्र में ज्यादातर सहकारी संस्थाये कांग्रेस और NCP के नेताओ द्वारा चलायी जाती है। जो किसानो के द्वारा कर्ज लेने का एक प्रमुख स्त्रोत है। जब कर्ज माफ़ी होती है तब किसानो के हाथ में एक ढेला भी नही लगता। सारा पैसा मिलता है इन सहकारी संस्थाओ को। और ये सहकारी संस्थाये उसी पैसे को अगले साल फिरसे किसानो को कर्ज दे कर उसे फिरसे अपना कर्जदार बना लेती है, मतलब किसान के सर से कर्जे का बोझ उतरता ही नही।

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आज सारी विरोधी पार्टिया BJP को किसान विरोधी बताने में जुट गयी है।

इनमे वो लोग भी है जिन्होंने कभी “बांध में पानी नही है तो क्या मै उसमे जाके पेशाब करू”जैसी भाषा का प्रयोग किया, इनमे वो लोग भी है जिनके हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता महाराष्ट्र की स्थापना के बाद से अपवादात्मक हो  गयी हो, इनमे वो लोग भी थे जिन्होंने सिचाई घोटाला कर प्रदेश के सत्तर हजार करोड़ रूपये खा डाले। इनमे वो लोग भी थे जो प्याज 10 रुपयो से 20 रूपये हो जाये तो संसद में हंगामा करने लग जाते है, विदर्भ प्रांत के गोसीखुर्द प्रकल्प जैसे ऐसे कई अनगिनत प्रकल्प है, जिन्हें जान बुझ कर दशको से पूरा नही होने दिया गया, ता की निरंतर ऐसे प्रकल्पो से अपने लोगो को लाभ पोहचाया जा सके।

माहाराष्ट्र की फड़नवीस सरकार ये जानती है की  ऋणमाफी स्थाई समाधान नही हो सकता। और किसानो की समस्याओ का स्थाई समाधान दिलाने के लिए माहाराष्ट्र की BJP सरकार ने किसान हितैषी कई उपक्रमो की शुरुआत की। जिनमे से जलयुक्त शिवर योजना प्रमुख है, इस योजना के तहत माहाराष्ट्र के हजारो सूखाग्रस्त गांव पानी से परिपूर्ण हो गये, और 2019 तक पुरे 5000 गांवो को जलयुक्त बनाने का मानस फड़नवीस सरकार का है। फड़नवीस सरकार ने माहाराष्ट्र में दिन की लोडशेडिंग को बंद कर उसे रात में कर दिया, ता की किसानो को रात बेरात खेतो में पानी देने न जाना पड़े। और केंद्र द्वारा किसानो के लिए जो काम किये जा रहे है वो अलग ही है जिनमे “नीम कोटेड यूरिया” शामिल है जिसकी वजह से किसानो को पर्याप्त यूरिया मिल सके और किसानो के हिस्से के यूरिया की कालाबाजारी न हो पाये, “मृदा परीक्षण” जैसी सुविधाये जिसके वजह से किसान अपनी जमीन की सही सही स्थिति पहचान पायेगा, “परंपरागत कृषि विकास योजना” जो ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए बनायीं गयी है, “प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना” जो की सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए बनायीं गयी है, “National Agricultural Market” के नाम से किसानो के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक मंच तैयार किया है जिसके तहत वो एक साथ कई बाजारों से जुड़ सकते है, साथ ही “National Crop Insurance” का दायरा और बढ़ाया गया ता की किसान और समृद्ध हो सके, सड़को को और बहेतर बनाया जा रहा है ता की किसान अपना माल जल्द से जल्द बाजारों तक पोहचा सके।

सच पूछो तो इस आंदोलन का मकसद किसानो का हित कभी था ही नही। मार्च 2017 में महाराष्ट्र में संघर्ष यात्रा के नाम से एक आंदोलन करने का प्रयास किया जिसमे कांग्रेस और NCP के बड़े बड़े नेता शामिल हुवे संयोगवश उस यात्रा की शुरुआत मेरे ही तालुका से हुई। तब ये देखने में आया की विरोधियो का साथ देने के लिए तो दूर की बात, नेताओ को देखने के लिए भी विरोधी भीड़ नही जुटा पाये। उस संघर्ष यात्रा से विरोधी ये समझ चुके थे की  कांग्रेस या NCP का नाम ले कर लोगो का सहयोग नही मिल सकता इसी लिए किसानो के कंधे पर बंदूक रख अपनी गंदी राजनीति शुरू कर दी। मध्य प्रदेश के कई इलाको में कांग्रेस लीडरो द्वारा लोगो को भड़काते हुए पाया गया, पुलिस स्टेशन और गाड़ियों को जलाने के लिये कांग्रेस लीडर लोगो को उकसा रहे थे। जो भीड़ आंदोलन कर रही थी उनमे से कईयो के पास तो जमीन का टुकड़ा तक नही था। तो फिर वो लोग कौन थे, ये वो लोग थे जिन्हें विरोधियो द्वारा पैसे दे कर किसानो को बदनाम करने लाया गया था।

किसान तो जगत का पालनहार होता है, मिटटी को अपनी माँ मानता है, फसल को पानी से कम पसीने से ज्यादा सींचता है। वो किसान बच्चो से भरी बसो पे पथराव करने जैसा विकृत कृत्य कभी नही कर सकता। वो किसान अपनी खून पसीने से उगाई फसल को रस्ते पे नही फेक सकता।

वैसे जिस दिन से मोदी सरकार केंद्र में आई है विरोधियो की बौखलाहट देखते ही बनती है। और इस सरकार को बदनाम करने के लिये विरोधियो ने कोई कसर नही छोड़ी। हरियाणा में जाट आंदोलन, दादरी कांड, अवार्ड वापसी, मराठा आरक्षण, अभिव्यक्ति की आज़ादी का रोना, तमिलनाडु के किसानो का ठीक दिल्ली निकाय चुनावो के पहले दिल्ली में केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करना और चुनाव होते ही लौट जाना, यहाँ तक की  मोदीजी की माँ को भी अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करने से विरोधी नहीं हिचकिचाये, और अब ये किसान आंदोलन। सच पूछो तो विरोधियो को मोदीजी की लोकप्रियता का कोई तोड़ नही मिल पा रहा, इसीलिए ये सब हथकंडे आजमाए जा रहे है।

तो वाचको जुड़े रहिये ये देखने के लिए की विरोधी और कौन सा  दाव खेलते है।

Tags: किसान आन्दोलनफद्नावीसबीजेपीमध्य प्रदेशमहाराष्ट्र
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