एक बार फिर मोदी–शाह की गूगली ने अपने फैसले से सब को चौंका दिया क्योंकि पिछले 5 महीने के भीतर-भीतर मोदी-शाह का यह दूसरा सबसे बड़ा फैसला है। इसके पहले योगी आदित्यनाथ को अचानक से मुख्यमंत्री घोषित कर सभी राजनैतिक पंडितों की भविष्यवाणियों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया था। जैसा की मैंने अपने पिछले लेख में कहा था मोदी-शाह अपने चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते रहे है चाहे खुद के कैबिनेट में मंत्रियों का नाम हो या महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस हो, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर का नाम हो या हाल ही में उत्तर प्रदेश में प्रचंड जीत मिलने के बाद तमाम ज्येष्ठ नेताओं की सूची को दरकिनार करते हुए योगी आदित्यनाथ का नाम। मोदी शाह ने हमेशा अपने फैसलों से देश के तमाम राजनैतिक पंडितों को दाँतों तले उँगलियाँ दबवाने पर मजबूर किया है। पिछले कुछ महीनों से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सरकार और विपक्षी पार्टियों में मंथन चल रहा था अनेको नाम पर आये दिन चर्चा होती रही है। मोदी-शाह की गूगली को ध्यान में रखकर फिर एक बार पंडितों ने अनेको नमो को मीडिया में उछाला। मीडिया ने भी कई नाम अपने तरफ से उछाल दिए लेकिन फिर एक बार मोदी-शाह की जोड़ी ने रामनाथ कोविंद के नाम पर मुहर लगाकर अपनी गूगली से सभी को बोल्ड कर दिया।
हमेशा की ही तरह शाह और मोदी की जोड़ी ने इस बार भी राजनीतिक पंडितों को धत्ता बताते हुए एक लो प्रोफाइल और ईमानदार नाम खोज निकाला। ऊपर से देखने में तो लगता है बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रोक का विरोध शायद ही कोई करें। वैसे विरोध करने लायक नहीं है रामनाथ कोविंद का व्यक्तित्व लेकिन इस देश में विपक्ष का दूसरा नाम ही विरोध है, भले उस विरोध का उस फैसले से कोई लेना देना न हो। जिस विपक्ष ने इस देश में सेना की पाकिस्तान जैसे आतंकवादी देश पर सैन्य कार्यवाही का विरोध किया हो, सर्जिकल-स्ट्राइक के सबूत मांगे हो, नोटबंदी और भ्रष्टाचार-विरोध नीतियों पर सवाल खड़े किये हो, सेना प्रमुख को गुंडा कहा हो वही विपक्ष भला रामनाथ कोविंद का विरोध न करें ऐसा कैसे हो सकता था।
पिछले दिनों द्रौपदी मुर्मू का नाम भी चर्चा में था क्योंकि मुर्मू भी अत्यंत साधारण आदिवासी परिवार से आती है और फिलहाल झारखण्ड की राज्यपाल है किसी विवाद से से लेना देना नहीं रहा है तो ऐसे में मुर्मू के नाम की घोषणा कर मास्टरस्ट्रोक खेला जा सकता है ऐसे कयास लगाये जाते रहे है। जब-जब भारतीय जनता पार्टी या संघ के भीतरखाने से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के नामों पर विचार होता था तो एक नाम थावरचंद गहलोत का भी लिया जाता था।
माना जाता रहा कि मोदी अगर किसी दलित चेहरे को राष्ट्रपति भवन में भेजने का मन बनाते हैं तो थावरचंद गहलोत उनकी पसंद हो सकते हैं। बीजेपी में जितने दलित नेता है उनमें थावर चंद एक प्रभावी नाम हैं। तो फिर ऐसा क्या हुआ कि मध्य प्रदेश के इस नेता की जगह मोदी ने कानपुर के एक अन्य दलित चेहरे को अपनी पसंद बना लिया। दरअसल, मोदी राजनीति में अपनी सूची वहां से शुरू करते हैं जहां से मीडिया और तमाम राजनैतिक पंडितों के कयासों की सूची खत्म होती है। जिन-जिन नामों पर राजनैतिक पंडित विचार करने लगते है, ऐसा लगता है कि मोदी उन नामों को अपनी सूची से बाहर करते चले जाते हैं।
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर राजनीतिक गलियारे तमाम नामों की चर्चा के बीच रामनाथ कोविंद का नाम हर किसी के लिए भी चौंकाने वाला है|
खासकर उस मीडिया के लिए जो देश में कही भी किसी भी जगह पर अगर कोई घटना घटती है तो सबसे पहले पीड़ित की जाति ढूंढ निकालती है, रामनाथ कोविंद का नाम उस मीडिया को बीजेपी का एक तमाचा ही है क्योंकि यही मीडिया अगर किसी सवर्ण या किसी अन्य जाति का राष्ट्रपति घोषित किया गया होता तो एक हफ्ते तक प्राइम टाइम पर रुदाली कार्यक्रम चलाया होता चाहे वो मुरलीमनोहर जोशी का नाम हो या आडवाणी या सुषमा स्वराज का। मीडिया दिन-रात यह दिखाने में मशगूल होता की कैसे बीजेपी सिर्फ सवर्णों, ब्राह्मणों और उद्योगपतियों की पार्टी है माने इस देश में आपकी शिक्षा, आपका टैलेंट कोई मायने नहीं रखता बस मायने रखती है तो आपकी जाति।
इस बार भी वही हुआ जैसे ही एक लो प्रोफाइल ईमानदार, उच्च शिक्षित, अनेको उच्च पद पर देश के लिए कार्यरत रहे रामनाथ कोविंद का नाम एनडीए की तरफ से बीजेपी ने घोषित किया मीडिया ने पलक झपकते ही उनकी जाति ढूंढ निकाली|
क्योंकि रामनाथ कोविंद का नाम देश के राजनैतिक गलियारों में उतना चर्चित नाम नहीं था इसलिए मीडिया को जाति ढूँढने की जरूरत पड़ गयी लेकिन जाति देखते ही मीडिया को मानो सांप सूंघ गया हो। करें तो करें क्या ? क्योंकि जिस जाति का रोना रो-रोकर अपने मीडिया घराने चला रहे है उसपर मोदी-शाह की जोड़ी ने करार तमाचा जड़ दिया था।
अगर मीडिया रामनाथ कोविंद की राजनीतिक पृष्ठभूमि देखे तो 2 बार के सांसद रहे है, शिक्षा देखे तो कोविंद उच्च शिक्षित हैं। भाषाओं पर अच्छी पकड़ है। पेशे से वकील है, दिल्ली हाई-कोर्ट के अधिवक्ता के तौर पर उनका एक अच्छा खासा अनुभव भी है। एससीएसटी प्रकोष्ठ के प्रमुख का दायित्व भी निभाया है और संगठन की मुख्य धारा की ज़िम्मेदारियां भी सरकारी वकील भी रहे हैं। मोरारजी देसाई के निजी सचिव के तौर पर कार्य किया है। माने प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक के संबंधों की बारीकियों भी जानते है। प्रशासनिक और राजनैतिक जिम्मेदारियां बखूबी निभाई है। कम बोलना और शांति के साथ काम करना कोविंद जी की शैली है। माने ऐसा कुछ भी नहीं था जिसपर मीडिया विधवा विलाप कर पाता और सबसे बड़ी बात जिस बात की मीडिया को बिलकुल भी आशंका नहीं थी वो की एनडीए राष्ट्रपति पद के लिए किसी दलित का नाम घोषित कर देगा, सपने में भी नहीं सोचा था। पदनुसार हर क्षेत्र में कुशल, शिक्षित, राजनैतिक, प्रशासनिक और सामाजिक अनुभव और मीडिया के अनुसार दलित भी।
मीडिया को पहले तो कुछ सूझ नहीं रहा, ऐसे कैसे इतने आसानी से मीडिया एनडीए के फैसले को हजम कर लेती। जो मीडिया मोदी के फैसलों में मीन-मेख न निकाले वह हमारे देश का मीडिया हो ही नहीं सकता। और आखिरकार मीडिया को वो टॉपिक मिल ही गया जहाँ पर वो विलाप कर पाती, माने रामनाथ कोविंद जी आरएसएस के स्वयंसेवक रहे हैं जो मीडिया से कभी हजम नहीं होगा। यानी अब वो दलित नहीं माने जायेंगे। वो तबतक ही दलित थे जबतक मीडिया ये नहीं जानती थी की वो संघ के स्वयंसेवक है अगर कोई दलित संघ से जुड़ा हो तो वो मीडिया के नजर में दलित नही माना जायेगा क्योंकि मीडिया अनुसार संघ और बीजेपी तो अमीरों और ब्राह्मणों की पार्टी है। इसलिए तारीफ़ तो छोड़िये यही मीडिया दिखायेगा की कैसे देश के सर्वोच्च पद पर एक संघी को बिठाया गया है।
बार-बार बात-बात पर संघ पर आग-बबूली हो जानेवाली मीडिया और कांग्रेस को एक बात याद रखनी चाहिए, इस देश को कांग्रेस के 60 वर्षों के मुकाबले बीजेपी-एनडीए ने देश को एक मुस्लिम राष्ट्रपति दे चुकी है और दूसरा दलित राष्ट्रपति देने जा रही है, लेकिन नहीं मीडिया के लिए तो बीजेपी सिर्फ अमीरों, ब्राह्मणों, सवर्णों और उद्योगपतियों की पार्टी है। माने एजेंडा ऊँचा रहे हमारा।
खैर, एनडीए ने अपना उम्मीदवार चुन लिया है। विपक्ष खेमा और मीडिया रामनाथ कोविंद के नाम पर बंटा हुआ है। जहाँ एक ओर वायएसआर कांग्रेस, जदयू ने रामनाथ कोविंद के नाम का खुल के समर्थन किया है वही कांग्रेस एनडीए की पसंद को अपनी पसंद मानने को तैयार नहीं है क्योंकि ‘उसकी शर्ट मेरी शर्ट से सफ़ेद कैसे’ की तर्ज पर कांग्रेस ने आज सोनिया गांधी के नेतृत्व में संपन्न हुई विपक्षी दलों की मीटिंग में कोविंद के मुकाबले मीरा कुमार का नाम तय कर दिया। एजेंडा बस इतना है की हमारा दलित उनके दलित से ज्यादा दलित हो, जानते हुए की बीजेपी-एनडीए के कोविंद बहुमत के बहुत करीब है और उनका राष्ट्रपति बनना लगभग तय है। इसी बहाने सही, कांग्रेस को दलित की याद तो आई और ये पता चल गया की राष्ट्रपति भी बनाया जा सकता है वरना अब तक तो वोट मांगने के नाम पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। सभी मायनों में यह राष्ट्रपति चुनाव बेहद ही रोमांचक होनेवाला है। अब बस देखना ये है ऊंट किस करवट बैठेगा।