भारत में एक निर्वाचन विशेषज्ञ होने का फायदा यह है की आपके पास रोजगार के मौकों की कोई कमी नहीं होती। आजकल दूरगामी तैयारी ज़ोर शोर से चलती है, चाहे वो कोई भी क्षेत्र हो। दक्षिण में, विशेषकर आंध्र प्रदेश में, बच्चे ने छठी कक्षा में कदम भी नहीं रखा होगा की उसे आईआईटी की तैयारी में झोंक दिया जाता है। बच्चों से सीखते हुये अब राजनैतिक पार्टियां भी लंबी दूरी के तीर छोडने के सपने देखने लगे। इसी उपलक्ष्य में बेरोजगार प्रशांत किशोर को एक नया काम भी मिल गया। बहरहाल, आजकल ये वाईएसआर काँग्रेस पार्टी के विशेष सलाहकार भी हैं, जिनका नेतृत्व श्री जगनमोहन रेड्डी करते हैं, जो दिवंगत मुख्यमंत्री [अखंड आंध्र प्रदेश के] श्री वाईएस राजशेखर रेड्डी के सुपुत्र भी है।
भ्रष्टाचार की सीमाएं लांघने पर जेल की हवा खाने के बावजूद अपने परम पूज्य पिताजी की मौत की सहानुभूति बटोरकर ये विभाजित आंध्र प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष बन लिए। वैसे भी, ये काम आसान थोड़े न था, काँग्रेस विरोध के नारे पर तेदेपा ने भाजपा के साथ संधि कर इस नए राज्य के प्रथम चुनाव जो जीते थे। क्योंकि लोग काँग्रेस से विभाजन के तरीके इतना खफा थे, जितना वो विभाजन पर भी नहीं थे, सो आंध्र प्रदेश आखिरकार काँग्रेस मुक्त बन गया।
कई काँग्रेस नेता, जिनहोने हाईकमान के विभाजन संबंधी निर्देशों की अवहेलना की, ने जगन रेड्डी के नए गुट का दामन थमा। पर जिस गुट ने पार्टी पर उनके पिता के समय में कब्जा रखा था, उन्होने ही इस गुट में भी अपना कब्जा बरकरार रखा। पर इनके लिए भी जगनमोहन रेड्डी के चोंचले एक स्तर के बाद अझेल प्रतीत होने लगे। समय बदलते देर न लगी, और कई विधायकों ने तेदेपा का हाथ थम लिया, जिससे खुद पार्टी के विश्वसनीय कार्यकर्ता ये सोचने लगे की चंद्रबाबू नायडू ऐसी पार्टी से नेताओं को क्यों न्योता दे रहे हैं?
दोनों चंद्रबाबू नायडू और जगनमोहन रेड्डी रायलसीमा प्रांत से आते हैं कई वर्ष पहले, नायडू और उनके पिता राजशेखर रेड्डी में घनिष्ठ मित्रता थी, और दोनों की मित्रता सत्तर के दशक तक जाती हाई, जब दोनो ही चिन्ना रेड्डी की सरकार में मंत्री हुआ करते थे।
हाइकमान के लिए राजशेखर रेड्डी आम काँग्रेसी चाटुकारों की तरह कतई न थे, जिस कारण ये पाँच बार लोक सभा चुनाव जीतने के बावजूद केन्द्रीय कैबिनेट का हिस्सा कभी नहीं बन पाये। जब चंद्रबाबू नायडू आंध्र पर शासन कर रहे थे, तो काँग्रेस ने उनसे जीतने की उम्मीदें छोड़ दी और राजशेखर रेड्डी को प्रदेश काँग्रेस समिति अध्यक्ष बनाकर उन्हे बाली का बकरा साबित करने का प्रयास किया। पर इस चुनौती को स्वीकार करते हुये श्री राजशेखर रेड्डी ने नायडू के विरुद्ध पदयात्रा निकाल दी। जब पद यात्रा के दौरान वे बेहोश हुए, तो नायडू साब ने ही राज्य के विशेष हेलीकाप्टर भेजकर इन्हे हैदराबाद में उपचार कराने के लिए भेजा।
पर जगनमोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू में समीकरण वैसे नहीं बैठ पाये। सच बताऊँ, तो इन दोनों में दुश्मनी का कोई सानी नहीं हाई। जगन अपने उछिद्र व्यवहार और भाषा के लिए कुख्यात हैं। इनके मायने में सुविचारों की आत्मरक्षा के अलावा कहीं कोई जगह नहीं हाई। जब उन्होने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार का समर्थन किया, तो वो अपनी पार्टी के पुनरुत्थान के लिए भी जी जान से जुटे हुये थे।
निस्संदेह चंद्रबाबू नायडू इस देश के सबसे कुशल प्रशासकों में से एक हैं, और उनका राजनीतिक दृष्टिकोण का कोई सानी नहीं हाई, परंतु वे अपने ससुर, एनटीआर की तरह भीड़ जुटाने में समर्थ नहीं है। ये पार्टी को संगठित और अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरित अवश्य कर सकते हैं, पर इस नेकी को वोट में तब्दील करना इनके बस की बात नहीं है। यही कारण थी की यह गगनचुंबी विकास कराने के बावजूद वाईएसआर से हार गए, और अपने राजनैतिक कौशल का इस्तेमाल करते वाईएसआर ने इन्हे अपने ज़िंदा रहने तक बाहर रखा। और जब चंद्रबाबू फिर सीएम बने, तो वो अपने राज्य के एक छोटे से हिस्से के ही सीएम बन पाये। फिर भी वे सीईओ मोड में उतरकर नए राज्य को दशा और दिशा देने में लग गए।
पर इनके मंत्री इनकी क्षमताओं और इनके जिजीविषा का मुकाबला न कर पाये। ये मानी हुई बात है की इनके कई मंत्री इनके स्तर तक तो कतई नहीं पहुँच पाये, पर इनहि मंत्रियों पर नायडू साब को निर्भर रहना पड़ता था। अपने तेलंगाना के समकालीन के बदले चंद्रबाबू नायडू को एक ऐसा बेटा मिला, जिसके बारे में जितना बोला जाये, उतना कम पड़ेगा।
दूसरी तरफ, जगनमोहन रेड्डी को दरकार है सत्ता की। जिस तरह वो ‘जब मैं सीएम बनूँगा’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, इस्से साफ है की यह सत्तासीन होने के लिए काफी आतुर है। पर उनका व्यक्तित्व ही उन्हे इस कुर्सी के लिए अयोग्य बनाता है, उनके व्यक्तित्व के कारण ही कई कुशल नेता उनकी पार्टी को छोडने पर मजबूर हुये। जिन चाटुकारों को इन्हे काँग्रेस पार्टी से विरासत में लिया था, उनही को एकत्रित कर ये अगले चुनाव में चंद्रबाबू नायडू से लड़ने चले हैं।
इस लक्ष्य की तरफ पहला कदम तब उठा, जब अभी हाल ही समाप्त हुये पार्टी के एक सम्मेलन में, सरकार की खिंचाई करने के अलावा इनहोने अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को एक अप्रत्याशित घोषणा की, और प्रशांत किशोर का परिचय कराते हुये कहा की यह तेदेपा की सरकार को अपदस्थ करने में पार्टी को दिशा निर्देश देंगे।
अब भाई, एक फायदा जो इनके पास इस वक़्त है, और जिसे वो उत्तर प्रदेश और असोम में कामयाबी में तब्दील नहीं कर पाये थे – ये पार्टी को प्रशांत किशोर को गुरु मानने के लिए बाध्य कर सकते हैं। जगनमोहन रेड्डी ने समझाया की जब अमरिंदर सिंह ने प्रशांत किशोर के साथ काम करना शुरू किया, तभी आम आदमी पार्टी की लहर को पंजाब में रोका जा सका। एक विशेषज्ञ होने के नाते, प्रशांत किशोर को हर निर्णय और योजना, जो वे पार्टी के लिए तय करेंगे, में खुली छूट चाहिए। पर औपचारिक रूप से पार्टी में वाईएसआर का अर्थ है युवजन श्रमिक रायथु, माने युवाओं, कामगारों और ज़मीन से जुड़ी पार्टी।
हालांकि यह सम्मेलन सफल अवश्य रहा, पर इसने तेदेपा के साथ साथ वाईएसआर काँग्रेस पार्टी के कई नेताओं की भी नींद उड़ा रखी है। क्योंकि इस पार्टी का सारा दारामेदार व्यक्तिगत करिश्मे पर है, न की किसी विचारधारा पर, इसलिए प्रशांत किशोर से इस संगठन के पुनरुत्थान और नई योजनाओं के निर्माण की उम्मीद की जा रही है। क्योंकि नरेंद्र मोदी के 2014 के विजयी अभियान का हिस्सा होने के नाते प्रशांत किशोर ने आंध्र राजनीति को करीब से समझा है, इसलिए वो जानते है की यहाँ क्या चलता है और क्या नहीं।
प्रशांत किशोर से मिली पहली सलाह को जगनमोहन रेड्डी ने काफी अच्छे से अमल किया है। जगन अपने पिता के तर्ज पर एक पद यात्रा पर निकलेंगे, बस उसका दायरा ज़्यादा बड़ा होगा। 27 अक्टूबर 2017 को शुरू होने वाली इस यात्रा की दूरी कुल 3000 किलोमीटर होगी।
दोनों प्रशांत किशोर और जगन जानते हैं की इस लंबी दूरी से वोटर्स के साथ कैसा रिश्ता बनाया जा सकता है। जिस परिवार ने तमिलनाडू पर वर्षों तक राज किया, उससे सीखते हुये जगन बाबू ने एक विशाल मीडिया साम्राज्य की स्थापना की है, जिसका अपना न्यूज़ चैनल और समाचार पत्र भी है। इसपर खर्चे की उन्हे कोई परवाह नहीं, और इसलिए इनहोने तेलुगू दैनिकों के जाने माने संपादक, एबीके प्रसाद को अपने समाचारपत्र ‘साक्षी’ के मुख्य संपादक के तौर पर नियुक्त भी किया।
जगनमोहन रेड्डी ने भी यात्रा की है, हालांकि उसे एसयूवी में इनहोने की, जब ये जेल से ठीक चुनाव के पहले बाहर आए। इसे ‘ओदरपु [सान्त्व्ना] यात्रा का नाम दिया गया, ताकि उन परिवारों को जगन बाबू दिलासा दे सके, जिनकी मृत्यु वाईएसआर की मृत्यु में सदमे से हुई थी। अब मुझसे मत पूछना की इतने लोग एक मुख्यमंत्री के लिए कैसे मर सकते हैं, और वो भी आंध्र में। इतने बचकाने सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं।
ये योजना दोतरफा है, एक तरफ प्रशांत किशोर संगठन को व्यवस्थित करेंगे, और इसे वर्तमान आवश्यकताओं के हिसाब से बदलाव के अनुकूल बनाएँगे, जबकि जगन बाबू यात्रा कर जनता से समर्थन मांगेंगे। निस्संदेह ये अपनी यात्रा पूरी करने पर आमादा है, वो भी चुनाव से ठीक पहले। हालांकि प्रशांत किशोर को मजबूत तर्क की आवश्यकता पड़ेगी यदि इन्हे जगन बाबू को उम्मीदवार के चुनाव के लिए सम्झना हुआ तो। दूसरा फायदा जो इनके पास है, वो है इनकी धर्मनिरपेक्षता। क्योंकि रेड्डी हैं, तो ये हिंदुओं को भाएंगे, और क्योंकि कई पारिवारिक सदस्यों ने ईसाई धर्म अपनाया था, इसलिए वे इसाइयों के भी मुरीद होंगे, और जहां ये दोनों समीकरण ठीक बैठते हों, ऐसे में मुसलमान भला इस पार्टी की तरफ क्यों आकर्षित नहीं होंगे?
अब नायडू बाबू कैसे इस चुनौती का सामना करते हैं, ये अलग बात है। ये जगन की तरह कमरतोड़ यात्रा तो नहीं कर सकते, और इनके बेटे अभी इस लायक भी नहीं है। तो इन दोनों को युद्धस्टर पर अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा। वैसे भी भाजपा को मजबूत करने के लिए अमित शाह यदा कदा यात्रा करते ही रहते हैं, तो यह तेदेपा के लिए चिंता का विषय है, न की वाईएसआर काँग्रेस पार्टी का।
अभी भी जगनमोहन रेड्डी को कई लोग एक भ्रष्ट राजनेता के तौर पर जानते हैं। पर कई केस दर्ज होने के बावजूद जब ये लालू, मुलायम, करुणानिधि और जयललिता जीत सकते हैं, तो ये क्यों नहीं? राजशेखर रेड्डी को चुनकर और नायडू बाबू को हराकर आंध्र के लोगों ने पहले ही इस परंपरा की नींव रखी है। क्या जगनमोहन रेड्डी इस कसौटी पर खरे उतार पाएंगे? ये तो वक़्त ही बताएगा।