अभी कल ही इंटरनेट पर नरेंद्र मोदी की सरकार की एक ओईसीडी सर्वे द्वारा 73% विश्वास मत मिलने की उपलब्धि की चर्चा ज़ोरों शोरों से चल रही थी। ये हमारे देश के लिए गर्व की बात है, इसलिए हमें इस खोज के बारे में थोड़ी और जानकारी लेनी चाहिए।
क्या है ओईसीडी?
ओईसीडी माने ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेव्लपमेंट [आर्थिक सहकारी और विकास संगठन], जिसकी स्थापना 1948 में इस उद्देश्य से की गयी थी की प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की गलतियाँ दोबारा नहीं दोहराई जाएंगी। हारे हुये मुल्कों के साथ सहायता और सद्भाव की भावनाएँ दिखाई जाएंगी, न की बरबादी और दंड की। इस संगठन की सफलता को देखते हुये यूएस, जापान और कनाडा ने भी इसमें हिस्सा लिया, और आज 39 सदस्य देशों से सुसज्जित है ये संगठन। हम आपको पहले ही बता दें की यद्यपि भारत ओईसीडी का हिस्सा नहीं है, परंतु ओईसीडी भारत, और उसके जैसे देश जैसे चीन, ब्राज़ील इत्यादि को एक अहम आर्थिक महाशक्ति और एक महत्वपूर्ण साझेदार के तौर पर स्वीकार करता है। (Source: http://www.oecd.org/about/history/)
ये ओईसीडी की ‘सरकार पर एक नज़र’ सर्वे क्या है?
जिस खोज की वजह से अभी इंटरनेट के बाज़ार में गहमागहमी फैली हुई है, उसका नाम है ‘ओईसीडी : गोवेर्न्मेंट्स एट ए ग्लान्स सर्वे 2017’ [ओईसीडी : ‘सरकार पर एक नज़र’ सर्वेक्षण 2017] सर्वे के प्रथम कुछ पन्ने(http://www.oecd.org/gov/government-at-a-glance-22214399.htm) यह बताते हैं की यह एक प्रकार का जीपीएस है, जिससे कई मानकों पर सरकारें अपना उचित आंकलन कर सकती है, और प्रगति के पथ पर अपने स्तर पर आगे बढ़ सकती है।
इसमें भारत के लिए खुश होने वाली क्या बात है भला?
इस सर्वे रिपोर्ट के पेज 214-215 पे एक नयी खोज मिलेगी, जो जनता का अपने सरकार में कितना विश्वास है, इस तथ्य का आंकलन करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार विश्वास को एक सकारात्मक अनुभूति माना जाता है, जिससे एक व्यक्ति या एक संगठन के कार्यों का आंकलन संभव है, और आगे यह भी बताती है की विश्वास की ऊंची दरें ये संकेत देती है की जनता का अपने सरकार में अटूट विश्वास है, उसे लगता है की उक्त सरकार निष्पक्ष, विश्वसनीय, उत्तरदायी और लोक सेवाएँ देने में समर्थ और योग्य साबित होती है, और साथ ही साथ उक्त देश की आशाओं और मंज़िलों को एक नयी उड़ान देने के लिए तत्पर भी है। इस सूचक के लिए आवश्यक जानकारी गैलप वर्ल्ड पोल से एकत्रित की जाती है, जो हर देश के हिसाब से लगभग 1000 नागरिकों का नमूना इकट्ठा करती है।
तो इन खोजों के अनुसार 73% भारतीय को वर्तमान सरकार माने मोदी सरकार में अटूट विश्वास है, जो इस वक़्त दुनिया में तीसरी सबसे भरोसेमंद सरकार है, और इससे आगे केवल स्विट्ज़रलैंड और इंडोनेशिया की सरकार है। ये तो वाकई में खुश होने वाली बात है, नहीं?
पर वो क्या है न, जैसे कुत्ते को देसी घी हजम नहीं होता, वैसे ही कुछ लोगों को जनता का मोदी सरकार में अटूट विश्वास फूटी आँख नहीं सुहाता। ऐसे छील्पकौव्वों ने ये जताने की कोशिश की है की जनता का विश्वास मनमोहन सरकार में ज़्यादा था, जो 82% के उचत्तम स्तर पर था और मोदी सरकार में यह विश्वास गिरकर 73% तक पहुँच गया है। पर हमने तो सुना था जीत बहुमत की होती है? असल में, ये नमूनें बड़े सफाई से सच्चाई छुपाने में माहिर हैं, क्योंकि 2012 में हुये एक ऐसे ही सर्वे(http://www.pewresearch.org/fact-tank/2013/11/21/confidence-in-government-falls-in-much-of-the-developed-world/) में मनमोहन सरकार में विश्वास 55% के न्यूनतम स्तर तक पहुँच गया था [यह 27% की गिरावट दुनिया में दूसरी सबसे तीव्र गिरावट थी 2007-2012 के समय के लिए, रिपोर्ट के अनुसार]
तो अगर कुछ भी हुआ है, केंद्र सरकार में विश्वास पिछले 3 सालों में दिन दुगनी, रात चौगुनी तरक्की करते हुए दिखा है। ऐसे ही नहीं मोदी सरकार जनता की प्रिय सरकार है।
इस नाटकीय बदलाव का कारण क्या है?
अब चूंकि ओईसीडी रिपोर्ट ने मोदी सरकार में जनता के विश्वास के स्पष्ट कारण बताने से मना किया है, तो हम क्या कर सकते हैं की कुछ बुद्धि का इस्तेमाल कर संभावित कारणों को क्रमबद्ध तरीके से सजा सकते हैं:-
- 2007 में यूपीए अपने प्रथम सत्रह के मध्यकाल में आ गया था; उस समय देश के मूड में उफान था, क्योंकि नरेगा और आरटीआई जैसे क़ानूनों को 2005 तक पारित कराया गया था। शहरी भारतीयों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह लोकप्रिय थे, क्योंकि उनकी छवि एक साफ सुथरे, सुधारवादी प्रधानमंत्री की थी, जिसका असर 2009 के चुनाव के परिणाम में भी पड़ा, जब यूपीए ने अपने सीटों में सुधार किया।
- पर शायद वो तूफान से पहले की खामोशी थी। जब भारतीय जनता मनमोहन की साफ सुथरी छवि पर फिदा हो रही थी, पर्दे के पीछे तो कुछ और ही चक्कर चल रहा था। यूपीए प्रथम में दरअसल सीएजी द्वारा सामने लायी गयी यूपीए द्वितीय के करोड़ों रुपये के घोटालों की नींव आखिर जो पड़ रही थी।
- फिर सैलाब की तरह अन्ना हज़ारे का आंदोलन और निर्भया कांड सामने आया। भ्रष्टाचार और यौन शोषण के विरुद्ध हुये भीषण आंदोलनो ने मानो पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। सारी सरकारी नीतियों को मानो लकवा मार गया था और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई सरकार है ही नहीं, सिर्फ कुछ सरकारी ठेकेदार हैं, जिनके इशारों पर सब काम हो रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है की सरकार की छवि क्यों जनता की नज़रों में बदनाम होती चली गयी।
- 2013-14 का सत्र आया, और राष्ट्रीय मंच पर नरेंद्र मोदी का आगमन हुआ, जिनहोने मझधार में फंसे देश को सहारा दिया और उसे अच्छे दिन की उम्मीद भी दिखाई। देश ने उस आदमी में विश्वास दिखाया जिसने कहा ‘न खाऊँगा, न खाने दूँगा’ और उसे प्रधान सेवक के तौर पर 2014 में नियुक्त किया। पिछले 30 सालों में जिस स्तर से कोई पार्टी विजय नहीं दर्ज़ कर पायी, उस स्तर से इनहोने विजय हासिल की।
- भले ही मीडिया, विपक्ष और कुछ कुटिल बुद्धि के लोग आपको कुछ और सोचने पर मजबूर करना चाहे, पर सत्य तो यह है की मोदी सरकार ने अपने और अपनी सरकार में जनता का विश्वास बरकरार रखा है। सबसे महत्वपूर्ण तो यह बात है की देश को यकीन है की कोई तो है जो अपना शत प्रतिशत से भी ज़्यादा देकर इस देश को सुधारने में लगा हुआ है, जिससे उनका भविष्य सुधर सके। जन धन योजना, स्वच्छ भारत अभियान, पहल योजना, उज्ज्वला योजना, विमुद्रीकरण और जीएसटी(https://twitter.com/5forty3?lang=en) जैसी योजनाओं ने भारत में एक अहम बदलाव लाने में सफल रहीं हैं। और अगर यह सर्वे सबूत के तौर पर काफी नहीं है, तो 2014 के बाद के जितने चुनाव हुये है, दिल्ली और बिहार को छोडकर, वो तो सच में सबूत है।
- एक देश के तौर पर भारत हमेशा से आशावादी रहा है। और क्या कारण हो सकता है की हर मोर्चे पर असफल होने वाली मनमोहन सरकार में 2012 में भी 55% का अटूट विश्वास रखा गया था? अब हमारे पास एक ऐसे कुशल नेता हैं, जो हमारी आशाओं के अनुरूप चलकर हमारे भारत को एक बार फिर विश्वगुरु बना सकते है।
भारत माता की जय!