भाई, सौ की सीधी एक बात , प्रश्न ये नहीं की राहुल गांधी ने चीनी राजदूत, लूओ ज़्हाओई से क्यों मुलाक़ात की, पर यह, की अगर मुलाकात हुई, तो उसे गुप्त क्यों रखा गया?
इतना की जब भारतीय मीडिया में ये खबर लीक की गयी, जिसकी सूचना चीनी दूतावास के वेबपेज से प्राप्त हुयी [बाद में इसे शर्म के मारे चीनी दूतावास ने डिलीट भी कर दिया], तो काँग्रेस के प्रवक्ताओं ने हँगामा मचा दिया, और विरोधाभासी स्वर में मीडिया की इस चालाकी की भर्तस्ना करने में जुट गयी। यह तो छोड़ो, इनहोने तो अपने ही वफादार चैनलों को इस रिपोर्ट का प्रसारण करने के लिए मोदी भक्त की उप्मा भी दे दी।
पर एक बात मेरे समझ में नहीं आई, ऐसी भी क्या राज़ की बात है, जो इस मुलाकात को इतने गुप्त तरीके से निपटाया गया? क्या नरेंद्र मोदी को अपदस्थ कराने की कोई नयी चाल थी? अगर नहीं तो चीनी राजदूत और काँग्रेस उपाध्यक्ष के बीच इस मुलाकात का औचित्य क्या था, जब दोनों देशों के बीच रिश्ते वैसे ही तल्ख हों, जिसका मुख्य कारण भारत-भूटान-चीन तरीकों में व्याप्त चीनी गुंडई हो।
ज़रा इस पर भी गौर कीजिएगा, इस मुलाकात से ठीक कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक कमजोर प्रधानमंत्री की उपाधि से सुशोभित किया था।
अब गड़बड़ी तो सामने आ ही गयी, सो समय था युवराज का बचाव करने का। अब काँग्रेस प्रवक्ता और राहुल गांधी ये पूछ रहे हैं की जब चीन भारत में घुसपैठ कर रहा था, तो हमारे सरकार के मंत्री उनसे क्यों मिल रहे थे? पर वो यह बताना भूल गए, की राहुल गांधी की तरह चुपचाप मिलने के बजाए वे मंत्री खुले आम चीनियों से वार्ता कर रहे थे, और जिस तरह से इस मसले को काँग्रेस पार्टी ने संभाला है, उससे कई अनसुलझे सवाल सामने निकलके सामने आ रहे हैं।
कुछ ही दिन पहले, सण्डे गार्जियन में प्रकाशित एक लेख में ये दावा ठोंका गया था की 2014 में मोदी की प्रचंड विजय और काँग्रेस की करारी हार से आहात लुटयेंस दिल्ली की पलटन ने छद्म, पर सम्पूर्ण युद्ध की नीति अपनाई, जिसमें निशाना मोदी सरकार है और इस मुहिम के प्रणेता श्रीमान राहुल गांधी।
इनका मुख्य उद्देश्य तो पीएम मोदी की छवि बिगाड़नी है, चाहे राष्ट्रिय स्तर पे, या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे। वरना और क्या कारण है की निरंतर रूप में अंतर्राष्ट्रीय मीडिया नरेंद्र मोदी और भारत सरकार की बेवजह, निराधार निंदा करती है?
इनका दूसरा उद्देश्य नरेंद्र मोदी की बतौर सुधारक वाली छवि को अहम मौकों पर विपक्ष का ठेंगा दिखाकर बिगाड़ना भी है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण कई बार संसद में देखने को मिला है। सौ की सीधी एक बात, इतना ज्ञान बाँचने का सार यही है की विपक्षी गुट साम दाम दंड भेद की नीति अपनाते हुये नरेंद्र मोदी को 2019 में सत्ता में वापसी से रोकना चाहती है। पर बदकिस्मती तो देखिये, इनकी इन चालों के बावजूद पीएम मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है, और इनकी पार्टी निरंतर चुनाव पे चुनाव जीती जा रही है। विदेश में भी इनका डंका सर चढ़कर बोल रहा है!
अपने नापाक मंसूबों में नाकाम होकर अब लगता है की राहुल गांधी के नेतृत्व में काँग्रेस वो जयचंद बनने चली है, जो अपने स्वार्थ के लिए अपने देश को बेचने पर तैयार हो जाये!
विश्व में चीन अपने गुंडई के लिए कुख्यात है। आए दिन अपने पड़ोसियों के साथ उसका बार्डर विवाद तो विश्वप्रसिद्ध है। कईयों के साथ ये युद्ध भी लड़े हैं, और पड़ोसी देशों से युद्धों में मिली जुली सफलता भी हाथ लगी है। तिब्बती हों या तुर्की, मोंगोल हो या कोई और सभ्यता, किसी के अधिकारों और न्याय की चीन ने परवाह नहीं की।
भारतीय तो जाने दो, काँग्रेस को तो यह कतई न भूलना चाहिए की कैसे चीनियों ने हमारे वर्षों के सद्भाव और ‘हिन्दी चीनी भाई भाई’ के नारे के साथ विश्वासघात किया था। 2003 तक चीन ने तो सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था। अभी भी चीन सिक्किम में उग्रवादी आंदोलन भड़काने की धम्की देता है, अगर भारत ने भूटानी डोकलम क्षेत्र को चीन के सुपुर्द नहीं किया। इतना ही नहीं, चीनी अखबार कश्मीर में तीसरी देश के सेना को भेजने की भी धम्की देते हैं। मौके की नज़ाकत को देखते हुये, और चीन के नेपाल में माओवाद को मदद देने के रास्ते जो अंदरूनी बखेड़ा खड़ा करने की नापाक कोशिश की है, उसके बावजूद राहुल गांधी किस मुंह से चीनी राजदूत से गुप्त मुलाक़ात करने गए? कहीं इरादों में खोट तो नहीं?
हर कदम और हर मोर्चे पर पीएम मोदी द्वारा पटखनी खाने के बाद, शायद लोकतान्त्रिक तरीके से 2019 में प्रधानमंत्री बनने के हास्यास्पद सपने को राहुल गांधी पहचान चुके हैं। शायद वो यह भी जानते है की मोदी के व्यक्तित्व के धूल बराबर भी नहीं ठहरते हैं। तो वे भारत के शत्रुओं को एक कर मोदी को सत्ता से हटाने के मंसूबे पाल रहे हैं, और राहुल गांधी के लिए अब 7, लोक कल्याण मार्ग का रास्ता झोंगणनहाई, चीन और रावलपिंडी में पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय से होते हुये जाता है। इसीलिए राहुल गांधी मोदी का विरोध करने वाले किसी भी गुट को अपना मुखर समर्थन देते हैं, विशेषकर जिसके भारत विरोधी बयानों की दुनिया भर में पहचान हो।