“व्हिस्की में विष्णु बसे, रम में श्रीराम, जिन में माता जानकी और ठर्रे में हनुमान, सियावर रामचंद्रा की जय!”
ऊपर लिखी गयी पंक्तियों को हम समाजवादी पार्टी के संसद श्री नरेश अग्रवाल की शायरी भी कह सकते हैं। इस आदमी [जो खुद हिन्दू है] के अंदर इतनी हिम्मत थी की राज्य सभा में इस तरह के भांड और अपमानजनक टिप्पणियाँ कर सकें। शायद अपने मन में ये गौरक्षा से जुड़ी हिंसा पर अपना विरोध जता रहे थे जब उन्हे यह पंक्तियाँ याद आई और बड़े तबीयत से इसे बक भी दिया। मुझे सोच के अजीब लगता है की ऐसे टटपुंजियों को हम संसद में निर्वाचित भी करते हैं, चाहे राज्य सभा के लिए ही क्यों न हो। आइये ज़रा देखें इनके बोल और उस लड़के की पोस्ट में अंतर को, जिसके कारण पश्चिम बंगाल में विरोध के नाम पर बसीरहट में हिंसा और आगजनी कारवाई गयी थी।
याद है बसीरहट में क्या हुआ था? और उसमें हुई हिंसा के पीछे का कारण जानते हैं आप? चलिये आपको फिर याद दिलाता हूँ। कक्षा 11 में पढ़ने वाले एक युवा लड़के ने पैगंबर मुहम्मद का एक आपत्तीजनक चित्र फ़ेसबुक पर डाला था। बस, बात आग की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गयी और वहाँ की आहत मुस्लिम समुदाय ने इसके खिलाफ विरोध के नाम पर बसीरहट दंगे करवाए। अब बेचारा ये बच्चा एक सांसद तो था नहीं, इसीलिए इसे ‘शान्तिप्रिय’ समुदाय की भावनाएँ आहत करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया।
अब यहाँ भले ही कोई भी उस लड़के के कृत्यों को सही नहीं ठहरा रहा हो, पर क्या यही बात नरेश बाबू पे लागू नहीं हो सकती? क्या उन्होने जो कहा वो कम भड़काऊ नहीं है? क्या इससे करोड़ों हिंदुओं की भावनाएँ आहत नहीं हुई?
पर क्या एक्शन लिया गया इनके खिलाफ? कुछ नहीं, सिर्फ एक माफीनामा इनहोने निकाला। बस, यहीं पर सब कुछ खत्म हो जाएगा। कोई इन्हे पकड़कर जेल में नहीं डाल सकता। क्यों भाई? क्योंकि राज्य सभा के माननीय उपसभापति महोदय ने इनके शब्द जो रेकॉर्ड से हटा दिये। ऐसे में देश के कानून पर अब गंभीर सवाल उठने लगे हैं, जो नरेश अगरवाल की बकैती पर आँखें मूँद लेगी, पर चूंकि युवा और ईमानदार नागरिक इनकी पकड़ में आ जाते हैं, इसलिए उनकी शामत तो पक्की आनी है।
आईपीसी के इन चुनिन्दा धाराओं को उनपर लगाया जाता है, जो किसी भी संप्रदाय के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। मुझे तो ऐसी कोई वजह नहीं लगती की क्यों नरेश अग्रवाल को इन धाराओं में दर्ज न किया जाये:-
a)-धारा 504 – जानबूझकर बेइज्जती करना, जिससे शांति भंग हो। जो भी जानबूझकर किसी व्यक्ति की बेइज्जती कर उसे भड़काता है, ये जानते हुये की ऐसे कृत्य से किसी प्रकार का अपराध या लोक शांति भंग हो सकती है, उसे दो साल तक सश्रम कारावास [जुर्माना सहित या रहित] की सज़ा सुनाई जाएगी।
b)-धारा 153 [अ]: आईपीसी की धारा 153 [अ] कहती है जो चाहे मुंह जुबानी, या लिखित शब्दों, या किसी भी प्रकार के चिह्न से किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय, जन्मसाथ या समुदाय के विरुद्ध किसी भी प्रकार का वैमनस्य, घृणा या शांति भंग जैसी भावनाओं को विभिन्न धार्मिक या भाषागत या फिर क्षेत्रीय मायनों पर बढ़ावा देने का दोषी पाया जाता है, जिससे समुदाय में शांति भंग होने की संभावना है, उसे तीन साल तक सश्रम कारावास [जुर्माना सहित या रहित] की सज़ा सुनाई जाएगी।
c)-धारा 295 [अ] Indian Penal Code (IPC):– इसके अनुसार, जो भी जानबूझकर, बदनीयती से किसी विशेष संप्रदाय या वर्ग के लोगों के धार्मिक भावनाओं को आहत करता है, चाहे शब्दों से या मुंह जुबानी, उसे तीन साल के सश्रम कारावास की सज़ा दी जाएगी, चाहे जुर्माने के साथ या उसके बिना।
पर इस कायर मनुष्य के खिलाफ आगे कोई भी एक्शन लिया जाएगा, इसकी कम ही उम्मीद है, क्योंकि पार्लियामेंट के भद्रजन इनकी माफी से काफी प्रसन्न है। ये एक पन्ने का माफीनामा, जो अभी सार्वजनिक नहीं है, वो जैसे पहले से ही बेइज़्ज़त हिंदुओं का और मज़ाक उड़ाता है। इससे एक निहायती वाहियाद परंपरा को बढ़ावा मिलता है – की आप हिन्दू देवी देवताओं को सबके सामने बेइज़्ज़त करके बच निकल सकते हैं। इससे बेकार कुछ हो सकता है क्या?