आज फिर बंगाल एकेश्वरवाद के कट्टरपंथी आग में जल रहा है। समय समय में बंगाल में अपनी मौजूदगी और अपनी शक्ति प्रदर्शन दिखाने के नाम पर समुदाय विशेष के कट्टर जिहादियों द्वारा बहुसंख्यक समुदाय पर हमले किये जाते रहे हैं। बंगाल में हिन्दू समुदाय को आतंकित कर रखा हुआ है। अभी हाल ही में एक 10वीं कक्षा के विद्यार्थी की सोशल मीडिया में मुस्लिमों के पवित्र स्थल पर कथित आपत्तिजनक पोस्ट करने और उस पोस्ट के वायरल होने के बाद अचानक ही मजहबी उन्मादों द्वारा दंगे भड़का दिए गये और आज उसी दंगों में बंगाल जल रहा है। मामले के तूल पकड़ते ही छात्र को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन उन्मादियों को तो सिर्फ सांप्रदायिक तनाव का बहाना चाहिए था जिससे वो अन्य समुदाय को आतंकित कर सकें।
पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना जिले के बशीरहाट के बादुरिया इलाके में हाल ही में जो हुआ वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही लेकिन आँखें खोलने वाला है। फेसबुक पर डाली गई एक कथित आपत्तिजनक पोस्ट के बाद यह मामला आगजनी और हिंसा का रूप ले चुका है। मुस्लिम समुदाय के 2000 से अधिक उपद्रवियों की भीड़ ने दुकानों और मकानों के अलावा पुलिस की कई गाड़ियों में भी आग लगा दी। एसपी, एएसपी और कुछ अन्य पुलिस अफसरों समेत लगभग चालीस लोग घायल हो गए। उपद्रवियों ने तो बंगाल-बांग्लादेश वाले बॉर्डर पर भी पूरा जाम लगा दिया है। हंगामे के दौरान एक हिन्दू व्यक्ति की अर्थी निकलने के समय अर्थी और समुदाय के लोगो पर भी इन जिहादियों ने पथराव किया। धर्मान्धों की भीड़ ने तो पुलिस प्रशासन से उस बालक की मांग तक कर डाली, ताकि उस बालक को लोकतंत्र से नहीं बल्कि भीड़तंत्र से सजा मिले। आखिर कौन है ये लोग जिन्हें संविधान, सरकार, प्रशासन और लोकतंत्र से ज्यादा भीड़तंत्र पर विश्वास है ? आखिर मजहबी अंधेपन में इतना भी कैसे डूबे हुए हैं कि इन्हें संवैधानिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं ?
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— Republic (@republic) July 6, 2017
बंगाल की गंभीर हालात को देखते हुए स्वयं राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को फोन कर जवाब माँगा है।
ममता बनर्जी को देश में मुस्लिमों के सबसे बड़े पक्षधर के रूप में माना जाता है, बांग्लादेश से घुसपैठ करने वाले मुस्लिमों के तुष्टिकरण के लिए उन पर पहले भी विपक्ष द्वारा आरोप लगते रहे हैं। इस बार की घटना पर भी उनकी चुप्पी बहुत कुछ कहती दिख रही है। एक समुदाय विशेष को वोट बैंक की राजनीति के लिए बढ़ावा देने का परिणाम आज बंगाल भुगत रहा है। मुस्लिम समुदाय के इस आतंक के बाद बहुत से हिन्दू घर छोड़ कर जाने को विवश हैं और प्रशासन आँखें मूँद कर बैठा हुआ है। धर्म के नाम पर जलते बंगाल को देखते हुए सीआरपीएफ के भी जवानों की तैनाती करनी पड़ी। कानून-व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती यही होती है, सांप्रदायिक टकराव या दंगे पर काबू पाना। ऐसे मौकों पर भीड़ सिर्फ अराजक नहीं, उन्मादी भी होती है।
सबसे बड़ी बात यह है कि ये उन्मादियों और जिहादियों की भीड़ कभी मजहब से आगे बढ़कर काम क्यों नहीं करती ? अपने समाज की तरक्की, कुप्रथा को दूर करना और शिक्षा के हक़ के लड़ने के बजाय सिर्फ और सिर्फ मज़हब के नाम पर दंगे करना ही इनका काम रह गया है। ‘सच्चर कमिटी की रिपोर्ट बताती है कि भारतीय मुसलमान कितने पिछड़े हैं, लेकिन ये बंगाल जैसी घटनाएं बताती है कि भारतीय मुसलमान क्यों पिछड़े हैं।’
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से इसकी रिपोर्ट मांगी है, वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी ने दिखाने के लिए दंगे रोकने की टीम बनानी की बात कही है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि दादरी और बाबरी पर रोने वाले एक समुदाय विशेष की इन हरकतों के बाद चुप क्यों हैं ? गौहत्या के नाम पर घंटों प्राइम टाइम चलाने वाले आज धर्मान्धों की अराजकता पर चर्चा करने से क्यों बच रहें हैं ?
अब इसमें जुड़े लोगों को किसी एक पंथ से जोड़ने का क्या औचित्य है, इसे सिर्फ और सिर्फ़ पागल लोगों का उन्माद कहा जा सकता है, ऐसे लोग चाहे किसी भी वर्ग के हों, लॉ एंड आर्डर मानना चाहिए, अन्यथा उन्हें पकड़ कर सजा दी जाये