वेलिंग्टन में स्थित डिफेंस सर्विसेज़ कॉलेज में 11 नवम्बर 1998 में दिये गए एक लैक्चर के दौरान भारत के प्रथम फील्ड मार्शल श्री सैम मानेकशॉ ने कहा था ‘अगर यहाँ की लड़कियां मेरे भाषा को माफ करे, “अगर किसी को निहायती उल्लू बनना हो, तो अभी ही बन जाये”
हम सभी को पता है की ‘चीनियों का भरोसा नहीं किया जा सकता’ और हाल ही में डोकलम में उनसे भिड़ंत जारी है। लेकिन अभी दो हफ्ते पहले जो फैसला लिया गया, उससे निस्संदेह फील्ड मार्शल सैम हुरमुसजी फ्रामजी जम्सेत्जी मानेकशॉ की आत्मा जहां भी होगी, मंद मंद मुसका रही होगी।
भारत सरकार द्वारा लगभग दो हफ्ते पहले जारी किए गए निर्देश के अनुसार भारतीय थल सेना के उपाध्यक्ष को गंभीर कमियों को दूर करने के लिए 40000 करोड़ तक की सरकारी निधि तय की है, जिसके तहत सेना के उपाध्यक्ष को हर प्रकार की रसद, बारूद और असलाहों की कमी को दूर करने का सुनहरा अवसर प्राप्त होगा। सेना ने अभी तक 46 किस्म के गोला बारूद और 10 प्रकार के अस्त्रों और उनसे संबन्धित मंचों में गंभीर कमियाँ ढूँढी है।
पाकिस्तान और चीन के सीमाओं पर दो तरफा तनाव के बीच केंद्र ने सेना को बिना लाल फीताशाही में फंसे, एक छोटे, पर भीषण युद्ध के लिए तैयार रहने के वास्ते आवश्यक उपकरण खुद से खरीदने की पूरी छूट दी है। विशेषकर जब डोकलम में युद्ध जैसे हालत पनप रहे हों और चीनियों ने तिब्बत क्षेत्र में कई तोपें और टेंक्स तैनात किये हों। 1962 में सबसे बड़ी गलती भारत सरकार की यह थी की उन्होने कोई विशेष तैयारी नहीं की थी ।
चिकित्सक को सही यंत्र चुनने दो भाई!
रक्षा क्षेत्र में भारतीय सेनाओं को जो दिक्कत झेलनी पड़ती है आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी में, उनमें प्रमुख थी समय से रक्षा संबंधी अस्त्र और शस्त्र न पहुँचना, जिनके पीछे नेताओं की पैसों की भूख और लाल फीताशाही प्रमुख कारण थे, जिसकी वजह से सेना के मजबूरी में हाथ बंधे थे। पर आज मोदी सरकार ने वो हाथ खोलकर इस देश की सेना पर बहुत बड़ा कल्याण किया है, और उन्हे अपने हिसाब से अपनी कमियाँ पूरी करने का मौका भी दिया है। ये बात तो किसी तरह से महात्मा गांधी में मौजूद नहीं थी, तो फिर मोदी जी की महेश शर्मा [जो इन्ही के सरकार के विवादास्पद मंत्री हैं] ने गांधीजी से तुलना कैसे की? पर ये बातें बाद में।
40 दिन के भीषण युद्ध के लिए तैयार रहिए
अपनी पुस्तक ‘द बैटर एंजेल्स ऑफ आवर नेचर’ में स्टीवन पिंकर इस बात पर ज़ोर देते हैं की हज़ार वर्ष पहले के मुक़ाबले दुनिया अब ज़्यादा शांत और सौम्य है, क्योंकि अब लोग सिर्फ आत्मरक्षा और आधुनिक, पर रक्षात्मक युद्धनीति में विश्वास रखते हैं। भारत हमेशा से शांतिप्रिय देश रहा है, जिसका अर्थ है की हमारे हमला करने का हिसाब है निल बट्टे सन्नता। पर जैसे चार्ल्स डार्विन कहते हैं, की केवल ताकतवर ही बच सकता है, इसलिए हमें अपनी अखंडता और सभ्यता की रक्षा के लिए योग्य और तत्पर रहना होगा। इसलिए ये आवश्यक है की भारत कम से कम 40 दिन के भीषण, और दोतरफा युद्ध के लिए तैयार रहे।
इस प्रोपोज़ल के अनुसार भारतीय सेना के उपाध्यक्ष को 22 प्रकार के अस्त्र और छह प्रकार की माइन्स से इनके वित्तीय क्षमताओं के अनुसार सुसज्जित करना चाहिए।
समस्या का निवारण
शक्तिशाली देश सीधे युद्ध पर नहीं जाते, बल्कि छद्म युद्ध या बाहुबल के प्रदर्शन पे ज़ोर देते हैं। भारत और चीन के मसले में, दोनों ही युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हैं और दोनों ही परमाणु हथियारों से लैस हैं, और ऐसे में युद्ध किसी खतरे से खाली नहीं होगा। क्योंकि भारत और चीन दोनों ही परमाणु शक्तियों से लैस हैं, इसलिए ये दोनों युद्ध पर तब तक नहीं उतरेंगे जब तक इनमें कोई पहले युद्ध नहीं करता।
खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल सेना के उचत्तम अधिकारियों से मुखातिब होते हुये कहा था की सम्पूर्ण युद्ध की संभावना अब कम है और आने वाले युद्ध छोटे, पर सटीक और भीषण होंगे। इसीलिए उरी हमलों के तुरन्त बाद भारतीय सेना ने आपातकालीन खरीददारी करते हुये 19 अलग अलग अनुबंधों से 12000 करोड़ रुपये के गोलाबारूद और अन्य हथियारों को खरीदने में खर्च किए।
लेखक के विचार:-
जैसा पहले भी कहा है, जहां भी सैम बहादुर इस वक़्त होंगे, वो इस निर्देश से काफी खुश होंगे। अब क्योंकि भारतीय सेना को रक्षा अधिग्रहण परिषद या केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति से नहीं गुजरना पड़ेगा, इसलिए सारी आपातकालीन ख़रीदारी सीधे सेना के उपाध्यक्ष के अंतर्गत की जाएंगी, जिससे सेना को तैयारी में ज़्यादा वक़्त भी नहीं लगेगा। क्योंकि आवश्यक तोपों से युद्ध में निर्णायक मोड़ आते हैं, इसलिए इनका होना बेहद आवश्यक हैं।
जय हिन्द