वैश्विक वामपंथी मीडिया हमेशा ही परंपरावादी नेताओं के प्रति रूखी रही है। उदारवादी सोच रखने वाले नेताओं को ये सिर आँखों पर बैठाते हैं, और इनके हर गुनाह को नज़रअंदाज़ कर इन्हें लोकतन्त्र के मसीहा के तौर पर चित्रित करते हैं, पर जो इस दोगलेपन पे उंगली भी उठा दे, तो उसे रूढ़िवादी, संकीर्ण सोच रखने वाला, विद्रोही, आतंकी, न जाने किन किन उपमाओं से सुशोभित करते हैं! इसलिए स्वाभाविक है, की अपरम्परागत नेता नरेंद्र मोदी को उनके सम्पूर्ण मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हाथ धोके ये मीडिया उनके पीछे पड़ी रहती थी, 2014 के लोकसभा चुनाव तक।
ये तो छोड़िए, अभी डोनाल्ड ट्रम्प को मीडिया का प्रकोप जो झेलना पड़ा था राष्ट्रपति बनने से पहले, उससे तो सभी परिचित हैं। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर इनका अगला शिकार हमारे उत्तर प्रदेश के तेज़ तर्रार मुख्यमंत्री, श्री अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ हों।
हाल ही में न्यू यॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में एलेन बैरी [साउथ एशिया ब्यूरो मुखिया] ने भारत के राजनैतिक पटल पर गोरक्षनाथ मठ पर एक लेख छपवाया, जिसका शीर्षक था ‘भारत की राजनैतिक सीढ़ियाँ चढ़ता एक उग्रवादी हिन्दू मंदिर का सरगना’ शीर्षक से ही बेइज्जती की बू आ रही है, क्योंकि सिर्फ योगी आदित्यनाथ पर हमला थोड़े न किया गया है, बल्कि नाथ संप्रदाय पर एक सुनियोजित हमला किया गया है, और साथ ही साथ हमारे मंदिरों को उग्रवादियों की पनाह बताया गया है। अब हम भी एक बार पूछें, भला एक शांत मंदिर उग्रवादी कैसे हो सकता है? ऐसे विचार सिर्फ अधकचरे मानसिकता से लबलबाए, हिन्दू विरोधी, घमंडी और राजनैतिक चाटुकारों के पास ही मिल सकते हैं। यूरोप में आतंक मचा रहे खूंखार दरिंदों को पनाह देने के लिए ये सिर के बल खड़े हो जाएंगे, पर अपने आप को पवित्र सिद्ध करने के लिए निरीह हिंदूओं या डोनाल्ड ट्रम्प जैसे अक्खड़ नेताओं से जूझ पड़ेंगे।
पाश्चात्य मीडिया ने एक बड़ी गहरी दिलचस्पी दिखाई है हमारे देश के लिए खतरा बनने वाले आतंकियों को क्रांतिकारी सिद्ध करने में और अब एक कदम आगे बढ़कर हिन्दू आतंकवाद के आडंबर को ऐसे घटिया शीर्षकों से सार्थक सिद्ध करने में जुट गयी है। जिस गोरक्षनाथ मठ में हजारों भक्तों को सांसारिक दुविधाओं से मुक्ति दिलाने और धर्म का असल अर्थ समझने में अपना समस्त जीवन व्यतीत करता है, उसे एक उग्रवादी मंदिर की संज्ञा दी गयी है। इससे बढ़िया दोगलापन आपको पाश्चात्य मीडिया के अलावा हमारे भारत के अंग्रेज़ी मीडिया के अधिकांश चैनलों में ही देखने को मिलेगा। इस्लामिक आतंकियो और सनातनी संतों को एक ही चश्मे से देखकर एक ही तराज़ू में तोलना हास्यास्पद नहीं तो क्या है भाई? ये तो सर्व विदित है की पाश्चात्य मीडिया अपने उसूलों और आदर्शों से पहले ही विमुख हो चुका है, और अब तो अगर मुमकिन है, तो ये और भी रसातल में गिरे चला जा रहा है।
गोरक्षनाथ मठ पर अपने कायराना हमले के अलावा इस लेख में कुछ संदेहास्पद स्त्रोतों से ये लेखक अपने झूठ को बारंबार सच में तब्दील करने का दुस्साहस भी करती है। ये लेख एक विजय यादव के बारे में बताती है, जो बड़े गर्व से एक मुसलमान को पीटने के किस्से सुनाता है। अब चूंकि पाश्चात्य मीडिया निस्संदेह अपनी विषैली विचारधारा के जरिये मनगढ़ंत झूठ रचने में माहिर है, सो अगर वाकई में ऐसा कुछ हुआ है, और जो लेख में लिखा है, वो शत प्रति शत सत्य है, तो फिर इसके बारे में पत्रकार ने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी? अरे भाई, फिर इनका एजेंडा कैसे सफल होता? इन बातों से साफ ज़ाहिर है की विजय यादव लेखक/लेखिका के दिमाग की ज़बरदस्त कारस्तानी, जिसका मुख्य उद्देश्य केवल और केवल योगी आदित्यनाथ को बदनाम करना और उनके सरकार की मिट्टी पलीद करना है, और साथ ही साथ इस कीचड़ में नरेंद्र मोदी का नाम भी घसीटना है।
इस लेख में तो इनके भारतीय चाटुकारों के भी मत शामिल है, और इनमें से एक सिपहसालार ने बड़ा ही उम्दा विश्लेषण दिया है, और वो हैं सदानंद धुमे। इनके अनुसार, ‘इनहोने उसे सामान्य बनाया है, जो कल तक कपड़ा राज्य मंत्री तक के लिए नासूर था। सब कुछ कितनी जल्दी सामान्य हो गया है।‘ अरे साफ साफ बोलो न भाई, की आपको और आपके आकाओं को ज़बरदस्त मिर्ची लगी है इनके आने से, कौन सा 10 जनपथ से अभी बुलावा आएगा?
अभी ज़्यादा वक़्त भी नहीं हुआ है, जब धर्मनिरपेक्ष यूपीए सरकार अपनी सारी ताकत और संसाधन प्रखर हिन्दू नेताओं को आतंकवाद के झूठे केस में फंसाकर हिन्दू/भगवा आतंकवाद के झूठ को सच साबित करने में झोंक रही थी। टाइम्स नाऊ के अनुसार, इनहोने अपने इस अभियान में आरएसएस प्रमुख श्री मोहन भागवत को भी लपेटे में लेने की पूरी तैयारी कर ली थी। अब ऐसे वक़्त से महज तीन साल में एक भगवधारी, विद्वान महंत [योगी आदित्यनाथ ने गणित में बी.एससी. भी किया है] देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले, तो निस्संदेह धुमे जैसे सिपाही नाखुश ही होंगे।
पर हमारे सनातनी हिंदुओं को इस तरह के शब्दों से ज़्यादा विचलित नहीं होना चाहिए। जिस नाथ संप्रदाय से योगी आदित्यनाथ आते हैं, उसने कई अवसरों पर योद्धाओं सा कौशल रखने वाले महंत भी दिये हैं, और जब जब आवश्यकता पड़ी, तब तब अपनी जान हथेली पर रखकर इस्लामिक आतताइयों से डटकर मुकाबला भी किया। ऐसे में एक हिन्दू योद्धा महंत की उपाधि योगी आदित्यनाथ पर खूब जँचती है। कलियुग में धर्म का योद्धा होना बड़े गर्व की बात है, क्योंकि आसुरिक प्रवृत्ति के लोग देवों की भूमि भारत को कलंकित करने के लिए कटिबद्ध खड़े हैं। ऐसे में नाथ संप्रदाय के एक महंत को धर्म की रक्षा करने के लिए एक योद्धा का वेश धारण करने से कतई नहीं हिचकना चाहिए।
इस लेख के पश्चात न्यू यॉर्क टाइम्स की जितनी बेइज्जती हुई, उससे इनहोने एक चीज़ तो आखिर सही कर ही दी, और वो है:-
लेख का शीर्षक बदल दिया गया है:- ‘तेजतर्रार हिन्दू महंत अब भारत के राजनैतिक सीढ़ियाँ चढ़ रहा है।‘