एक न्यूज़ एक्सपोज ने इस्लाम के सबसे स्याह पक्षों में से एक पर से आखिरकार पर्दा उठा ही दिया, और साथ ही साथ इस बात से भी पर्दा उठा दिया की कैसे कुछ मौलवी तलाक़शुदा महिलाओं की शादियाँ बचाने के लिए एक रात यौन संबंध बनाने से भी कोई गुरेज नहीं करते। आपको सुनने में भले ही यह हास्यास्पद लगे, पर 21वीं सदी में ऐसा अभी भी होता है। आधुनिक इस्लाम की कुरीतियों में सबसे कुख्यात कुरीति है निकाह हलाला। यह ऐसी कुरीति है जहां एक तलाक़शुदा महिला किसी गैर मर्द से निकाह करती है, फिर यौन संबंध बनती है और फिर उससे तलाक लेती है, जिससे वो अपने पूर्व पति से निकाह कर सके। ये ऐसी कुरीति है जहां महिला को उस आदमी से यौन संबंध बनाने पड़ते हैं, जिसे वो जानती तक नहीं है, सिर्फ इसलिए ताकि वो अपने तलाक़शुदा पति से दोबारा मिल सके।
पर आजकल तो निकाह हलाला तो कई मौलवियों के लिए मानो एक व्यवसाय बन चुका है, जो कई भोली भाली औरतों का शोषण करते हैं, और उन्हे अपने साथ यौन संबंध बनाने पर विवश करते हैं।
निकाह हलाला के सौदे खुद मौलवी तय करते हैं, जो इस पूरे प्रक्रिया के लिए बीस हज़ार से डेढ़ लाख रुपये के बीच वसूलते हैं। इन्हे न अपने उम्र का लिहाज है, न अपने वैवाहिक स्थिति की इज्ज़त का कोई ख्याल।
राष्ट्रीय टीवी पर मुरादाबाद से एक इमाम ने खुले आम कबूला है की इनहोने ऐसे कई निकाह हलाला अपने स्तर पर करवाए हैं! इस बार तो इनहोने यौन संबंध सहित सम्पूर्ण पैकेज की पेशकश कर दी, जिसकी कीमत इनके शब्दों में, ‘1 लाख रुपये’ थी। अभी और सुनिए, उक्त इमाम ने तो इस बात की भी गैरंटी दे दी थी की दुल्हन के साथ एक रात बिताने के बाद जैसे ही वो शरिया कानून के अनुसार अपने पूर्व पति के पास जाने योग्य बन जाएगी, वैसे ही वो उसे तलाक दे देगा। जब उनसे यह पूछा गया, की क्या उन्होने अपनी बीवी को इस बारे में कोई जानकारी दी है, या क्या उन्हे इससे कोई आपत्ति हो सकती है, तो उन्होने उत्तर दिया की न तो इनहोने ऐसा कुछ अपनी पत्नी को बताया है, और न ही उन्हे इस बारे में जानने में कोई दिलचस्पी रखनी चाहिए।
दूसरा मामला है जामिया नगर, दिल्ली, के एक इमाम का, जिनकी दो बीवियाँ होते हुये भी इनहोने अपने आप को निकाह हलाला में मिलने वाले पैसे के नाम पर एक तीसरी बीवी के लिए नामित किया। प्रति हलाला के दर से वे 40 से पचास हज़ार रुपये वसूलते हैं और इस बात का वादा भी करते हैं की संबंध बनाने के बाद ही रात के 2-3 बजे के बीच वे उक्त दुल्हन को तलाक दे देंगे।
यहाँ तो ऐसे कई मौलाना भी हैं जो बिना शादी के भी हलाला करते हैं। वे तो यह दावा करते हैं की वो किसी भी औरत के साथ संबंध बनाकर एक दो दिन तक सोते हैं और फिर उन्हे छोड़ देते हैं। 1-1.5 लाख रुपये के दाम पर 60-65 साल के मौलवी ऐसी घिनौनी करतूतें करने तक तो तैयार हैं। यहाँ तो ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जहां कभी जुए में पत्नियाँ गंवाई गयी है, जिसके तहत तलाक देकर उन्हे जीतने वाले मनुष्य के साथ हलाला कराने के लिए बाध्य किया जाता है, ताकि वो उनसे दोबारा शादी कर सके! क्या इन मुस्लिम औरतों के कोई हक नहीं, कोई हकूक नहीं?
यह हलाला की कुरीति न तो शरिया का अंग है, और न ही कुरान का हिस्सा है। खुद कुरान क्या कहता है इस बारे में, ज़रा ये भी जान लीजिये :-
“तलाक दो दफा होता है। उसके बाद, या तो आप उसे स्वीकारने योग्य स्थिति में रखें या फिर उसे सम्मान सहित छोड़ दे। और जब तक आप को यह नहीं लगता की वो दोनों अल्लाह की बनाई गयी सीमाओं के अन्तरगत नहीं रह पाएंगे, तब तक उन्हे आपने जो कुछ भी दिया है, उसे वापस छीनने का अधिकार नहीं है। पर अगर आपको डर है की यह अल्लाह की हदों में नहीं रह पाएंगे, तो फिर आगे कुछ भी हो, उसके लिए उक्त महिला जिम्मेदार नहीं होंगी। अल्लाह की कुछ हदें होती है, उन्हें न लाँघें, और जो इन हदों को लाँघेगा, वो इसके लिए खुद जिम्मेदार होगा।‘
‘और अगर उसने तीसरी बार तलाक दिया है, तो वो उससे तब तक नहीं ब्याह सकती जब तक उसने किसी गैर मर्द से निकाह न किया हो। और जब तक उस गैर मर्द ने उसे या तो तलाक न दिया हो, या फिर अल्लाह को प्यारा न हुआ हो, तब तक अल्लाह की नियामत की तहत तलाक़शुदा जोड़ा एक नहीं हो सकता। ये अल्लाह की तय कुछ हदें है, जो वे उन लोगों को समझाता हैं, जो उन्हे जानते और पहचानते हैं”
ऊपर के कथनों से यह तात्पर्य है की अगर एक पति अपनी पत्नी को तलाक कह कर तलाक देने का प्रयास करता है, तो वो इददह के अंतर्गत अपने तलाक के फैसले को वापस ले सकता है। इददह माने अलगाव का वो समय जो तलाक से पहले आता है। अगर तलाक की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, तो उक्त जोड़ी दोबारा शादी करने के लिए योग्य है। ऐसा वो एक बार और कर सकते हैं। पर अगर तलाक तीसरी बार हुआ हो, तो न वो इददह में एक हो सकते है और न ही पूर्व पत्नी के दूसरे आदमी से शादी करके उसे तलाक देने के बाद तक, ताकि इस तलाक को गंभीरता से लिया जा सके।
तो मूलरूप से, हलाला की रीति का निर्माण सिर्फ इसीलिए हुआ है, ताकि निकाह और तलाक की अहमियत को दर्शाया जा सके। इसके पीछे का उद्देश्य तो वैसे एक मनुष्य को अपनी बीवी के साथ कुछ भी करने से रोकना था। पर समय के गुजरने के साथ, इसे तोड़ मरोड़ कर उन्ही कुरीतियों को बढ़ावा देने के लिए उपयोग में लाया जाता है, जिनसे रोकने के लिए इस हलाला की मूल नींव रखी गयी थी।
निकाह हलाला पर हालांकि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे इस्लामिक देश में भी प्रतिबंध लगा हुआ है, पर ये कुरीति अभी भी भारत में व्याप्त है।
इस कुरीति को अब भारत में भी अवैध घोषित्त करना पड़ेगा, और साथ ही साथ इसे अवैध साबित करने के लिए एक कानून पारित करना पड़ेगा, क्योंकि ये सिर्फ एक उपदेश नहीं होना चाहिए। इसे काबू में लाने के लिए एक ऐसा कानून पारित करना पड़ेगा, जिससे जो भी ऐसा पाप दोबारा करेगा, उसे सलाखों के पीछे रातें गुज़ारनी पड़ेगी, क्योंकि यह बलात्कार से किसी भी प्रकार से कम नहीं है। ऐसे लोगों को न सिर्फ कानून के दायरे में लाना होगा, बल्कि इनके विरुद्ध कारवाई भी करनी पड़ेगी।
और साथ ही साथ हमारे कथित सभ्य समाज को भी अपने मजहब, पंथ और राजनैतिक संकीर्णता से ऊपर उठकर महिलाओं और मानव अधिकारों के लिए आगे आना पड़ेगा। आप कैसे किसी महिला को किसी भाड़े के गैर मर्द के साथ सिर्फ इसलिए सोने के लिए कह सकते हैं, क्योंकि उसे अपने तलाक़शुदा पति के पास वापस जाना है? ये न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि ऐसे कुरीतियों का भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में कोई स्थान नहीं है।