पूर्व उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन बखेड़ा खड़ा कर दिया, जब उन्होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुटकी लेने का प्रयास किया। राज्यसभा टीवी को दिये अपने साक्षात्कार में अंसारी ने कहा की देश के अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना बहुत तेज़ी से बढ़ रही है, जिसके लिए उन्हे मोदी जी से बड़ा ही तीखा जवाब भी वापस मिला, जब उन्होने पूर्व उपराष्ट्रपति के नाम एक विदाई भाषण दिया। पर पूर्व रॉ अफसर और रॉ पर छपी एक बेहतरीन पुस्तक ‘मिशन रॉ’ के लेखक, श्री आर के यादव ने श्री हामिद अंसारी के बतौर ईरानी राजदूत [1990] जो राज़ खोले, उसने तो इनका अलग ही रूप हमारे सामने ला खड़ा किया।
श्री आर. के. यादव, जो टिवीटर पर काफी सक्रिय हैं, ने ट्वीटों की एक लंबी कड़ी में श्री अंसारी के 1990 के कार्यकाल [जिसमें ये तेहरान में बतौर ईरानी राजदूत ठहरे थे] के बारे में कई अहम जानकारियाँ जनता से साझा की।
अपनी पुस्तक में इनहोने श्री अंसारी के बतौर ईरानी राजदूत जो मुसीबतें रॉ अफसरों को तेहरान में झेलनी पड़ी है, उस पर विशेष रूप से इनहोने दो पृष्ठ समर्पित किए हैं। ‘बीजार्र रॉ इंसिडेंट्स’ नाम के अध्याय में इनहोने बताया है की कैसे रॉ के मिशन पर लगे स्टाफ की पत्नियाँ श्री अंसारी के एक रॉ अफसर के ईरानी इंटेलिजेंस एजेंसी के अफसरों द्वारा अपहरण होने पर कोई कारवाई न करने से काफी नाराज़ थी। यह पुस्तक तब प्रकाशित हुई थी जब अंसारी खुद उपराष्ट्रपति हुआ करते थे। उपराष्ट्रपति के तौर पर निर्वाचित होने से पहले अंसारी एक भारतीय विदेश सेवा [आईएफ़एस] अफसर थे, जिनकी पोस्टिंग्स यूएई [संयुक्त अरब अमीरात], अफ़ग़ानिस्तान, ईरान, सऊदी अरब तक ही सीमित थी।
“अंसारी की तेहरान में तैनाती के कुछ ही महीनों के बाद, एक युवा निजी सहायक [पीए], जो कपूर के नाम से जाना जाता था, को तेहरान एयरपोर्ट से ईरान के कुछ इंटेलिजेंस अफसरों ने अगवा कर किया, जब वो भारत के लिए वापस लौट रहा था। उसे तीन दिन तक प्रताड़ित किया गया और बेहोशी की दवाएं दी गयी, और फिर एक सुनसान सड़क पर फेंक दिया गया। स्टाफ को हैरान करते हुये अंसारी ने इस बात की पड़ताल की मांग ईरान सरकार से बिलकुल नहीं की। ” “एक रॉ अफसर थे डी बी माथुर, जो तेहरान के पास स्थित क़ौम में प्रशिक्षित किए जाने वाले कश्मीरियों के बारे में अंदरूनी जानकारियाँ इकट्ठा करते थे। अंसारी साहब की देखरेख में संवेदनशील दस्तावेज़ नियमित रूप से भारत भेजे जाते थे, जिनमें से कई रेपोर्ट्स का अंसारी विरोध करते थे। ऐसे ही एक सुबह माथुर को ईरानी इंटेलिजेंस अफसरों ने अगवा कर लिया। अंसारी ने बड़ी बेफिक्री से इसके बारे में नई दिल्ली को बताया, पर ईरान सरकार से इस विषय पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई।“
उक्त स्टाफ बौखलाया हुआ था। दो दिन के बाद, 30 से ज़्यादा स्टाफ सदस्यों की बीवियों ने इनके कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया, और हैरानी की बात देखिये, श्री हामिद अंसारी ने इनसे मिलने से भी इनकार कर दिया। श्री माथुर की पत्नी और बाकी औरतों ने उनके कार्यालय में घुसते हुये उन्हे उनके निष्क्रियता के लिए हड़काया।
“तेहरान से एक रॉ अफसर ने इस विषय पर नई दिल्ली में श्री आर के यादव को अवगत कराया। अगले दिन श्री यादव जी ने नेता प्रतिपक्ष, श्री अटल बिहारी वाजपयी से मुलाक़ात की, जिनहोने इस विषय पर तुरंत भारतीय प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से बात की, जिनहोने त्वरित कारवाई का आश्वासन दिया। कुछ ही घंटों में माथुर को सकुशल रिहा कर दिया। माथुर को थर्ड डिग्री टॉर्चर से गुजरना पड़ा था, पर उन्होने कुछ भी उगलने से इंकार कर दिया। उन्होने 72 घंटों के भीतर भारत सपरिवार और सकुशल भेज दिया गया।
“कई रॉ अफसर अंसारी के स्वभाव से असहज महसूस करते हैं। बाद में एक वरिष्ठ रॉ अफसर को नई दिल्ली से जांच करने के लिए बुलाया गया। उन्होने तत्कालीन रॉ सेक्रेटरी को अपनी भेजी गयी रिपोर्ट में अंसारी के रवैये को साफ साफ दोषी ठहराया”
“ बाद में, दूतावास के सुरक्षा अधिकारी मुहम्मद उमर से ईरानी इंटेलिजेंस अफसरों ने मुलाकात की, जिनहोने उसे उनके लिए काम करने का प्रस्ताव रखा। उमर ने इससे साफ इंकार कर दिया, और अपने वरिष्ठ अफसर को खबर दी, जिनहोने ड्यूटी के अनुसार अपने सीनियर अंसारी को इसके बारे में बताया। कुछ ही हफ्तों बाद, उमर को इन अफसरों ने अगवा किया, बहुत बुरी तरह पीटा और ईरान के बाहर एक सुनसान स्थान पर ले जा कर फेंक दिया। एक बार फिर इस बारे में अंसारी ने कारवाई करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, उल्टे उसने पीड़ित उमर को ही चुप रहने की सलाह दी। अंसारी ने तत्कालीन रॉ अध्यक्ष वेणुगोपाल की सहायता से उमर को भारत तक बिना किसी ठोस आधार के प्रत्यारोपन के निर्देश जारी करवाए। इसपर रॉ के अफसरों ने विरोध का बिगुल फूँक दिया। वेणुगोपाल जी ने समझदारी दिखाते हुये अंसारी की हाँ में हाँ मिलाने से इंकार कर दिया।
यहाँ ये बताना अहम होगा की अंसारी जी ने तत्कालीन ईरानी सरकार से काफी अच्छे संबंध स्थापित किए थे, और उसे किसी भी हालत में बिगाड़ना नहीं चाहते थे, इसीलिए उन्होने इन अपहरण की घटनाओं को कभी गंभीरता से तत्कालीन सरकार के सामने उठाया ही नहीं।“
असल दुनिया की जासूसी फिल्मी जासूसी की तरह कतई नहीं होती, जैसे आपको हॉलीवुड में दिखाते होंगे। फिर भी गुप्तचर अपने जान और इज्ज़त, दोनों को जोखिम में डालकर शत्रुओं के इलाके से अपने देश की सरकारों के लिए संवेदनशील जानकारी जिस तरह इकट्ठा करते हैं, वो अपने आप में काबिल ए तारीफ है। इसीलिए गुप्तचर नीति के असफलता और सफलता ने विदेश नीति का खाका बुनने में एक अहम भूमिका निभाई है, कई लड़ाइयों और युद्धों का मुंह मोड़ा है, और विश्व के इतिहास पर अपनी गहरी [और कभी कभी छुपी] छाप छोड़ी है।
वैश्विक नेताओं को हर दिन अहम निर्णय लेने पड़ते हैं, और सही निर्णय के लिए सही जानकारी का होना बहुत अहम है। आपके दुश्मन के पास कितनी बड़ी सेना है? अपने गुप्त हथियार बनाने में वो कितने सक्षम हैं? क्या वो किसी और देश के साथ एक व्यापार सम्झौता कर सकते हैं? क्या उनके सेनाध्यक्ष किसी प्रकार के तख्तापलट की तैयारी में है?
ऐसे कई युद्ध आए दिन लड़े जाते हैं, कई मोर्चों और कई जगहों पर, और इसमें पराजय का मूल्य है उक्त गुप्तचर की जान। हमेशा हम यह सुनते हैं की हर आतंकी हमले के पीछे 99 असफल आतंकी हमले होते हैं, पर कभी ये सोचा है की वो 99 हमले क्यों असफल होते हैं?
जवाब है रॉ, आईबी, सेना की इंटेलिजेंस जैसे कई एजेंसियां, जो जानकारी इकट्ठा करती है, उनका उचित आंकलन करती है, और उनसे उक्त नेतृत्व को सही फैसले लेने के लिए रास्ता प्रदान करती है। ऐसे में दूतावास और राजदूतों का धर्म होता होता है ऐसे इंटेलिजेंस संबन्धित कार्यों का सफल क्रियान्वयन कराना।
पर जब राजदूत हमारे इस पूर्व उपराष्ट्रपति जैसे निष्क्रिय और उदासीन स्वभाव अपनाए, वो भी तेहरान जैसे इंटेलिजेंस होट्स्पोट में, तब ये लड़ाई और भी मुश्किल बन जाती है, और भी मुश्किल।