1837 में, भारत का पहला रेलवे आर्थर कॉटन द्वारा चेन्नई में रेड हिल्स और चिंदराप्रीपेट के बीच चलाने के लिए डिजाइन किया गया था [1]। रेलवे एक नई तकनीक थी जो सिर्फ यूरोप में थी और यह आदमी आर्थर कॉटन एक ब्रितानी कॉलोनी में इसे बना रहा था।
उस समय ट्रेन किसी इंसान की सवारी नहीं थी, 16 साल बाद मुंबई और ठाणे के बीच पहला यात्री रेलवे बनाया गया और मुंबई का भविष्य शनैः शनैः बदलने लगा।
रेल क्यों बैलगाड़ी क्यों नहीं, घर में बैठे हर उपलब्धि को कोसने वाले हमारे कीबोर्ड योद्धा ये सवाल जरूर पूछते अगर वो उस ज़माने में होते, और उनके पास आज कि तरह सस्ता इन्टरनेट और कीबोर्ड होता। शायद बैलगाड़ी रेडहिल्स-चिंद्रीपिपेट और मुंबई-ठाणे जैसे छोटे मार्गों के लिए पर्याप्त भी होता। परन्तु, वही छोटे मार्ग पूरे राष्ट्र को एक करने का खाका बन जायेंगे, और यूरोप के लिए तैयार की गई नई तकनीक भारत की जीवन रेखा बन जायेगी। कौन इसकी कल्पना कर सकता था?
सर कॉटन एक प्रतिभाशाली, दूरदर्शी और दक्षिण भारत में आश्चर्यजनक काम करने वाले व्यक्ति थे।
प्रौद्योगिकी विकास रैखिक रूप से काम नहीं करता है हमारे पास रेलवे लाइनें होने से पहले बैलगाड़ी होने ज़रूरी नहीं हैं। नयी तकनीक के शुरुआती दिनों में हमें उसके कम प्रयोग के बारे में सोचने की ज़रूरत नहीं है, हर महान आविष्कार और प्रौद्योगिकी पहले सीमित दायरे में उपयोगी होती है और फिर समय आने पर उसके प्रयोग ऐसे-ऐसे जगह होते हैं जिनकी शुरुआत में कल्पना भी नहीं की जा सकती।
डॉ विक्रम साराभाई ने भी आर्थर कॉटन जैसा ही काम किया, जब उन्होंने रॉकेटो के साथ भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी। यही रॉकेट तकनीक आगे चल कर भारत के लिए आश्चर्यजनक चीज़ें करेगी, वो चाहे मौसम का पूर्वानुमान हो, या सॅटॅलाइट ब्रॉडकास्ट या चीन और पाकिस्तान को डराने का काम। रॉकेट विकसित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ आधारभूत संरचना की जरुरत नहीं थी, जितना था उससे बस शुरुआत करने की ज़रूरत थी। नब्बे के दशक में सॉफ्टवेयर हब बनने के लिए सर्वश्रेष्ठ कंप्यूटरों की ज़रूरत नहीं थी, बस शुरुआत करने की ज़रुरत थी। उसी तरह, बुलेट ट्रेनों पर चलने से पहले हमें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रेलवे लाइनों की ज़रूरत नहीं है। जैसे रेलवे लाइनों ने देश का भविष्य बदल दिया, उसी प्रकार नई तकनीक- उपग्रहों से लेकर बुलेट ट्रेनों तक कंप्यूटर से रोबोटों और मिसाइलों तक– सब हमारे भविष्य को अप्रत्याशित तरीके से बदल सकते है।
हम प्रौद्योगिकी विकास के प्रारंभ होने से पहले सभी के पास भोजन, नौकरी और सुरक्षा होने तक इंतजार नहीं कर सकते। वास्तव में, यह प्रौद्योगिकी विकास ही है जो हर किसी को भोजन, रोजगार और सुरक्षा दिला सकता है। जापान एक अमीर देश नहीं था जब उन्होंने बुलेट ट्रेनों को बनाना शुरू किया। वे बाद में समृद्ध हो गए और ऐसा ही चीन और हर दूसरे देश के साथ हुआ, जो उन्नत तकनीक के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हुए।
जब 1969 में अमेरिका ने मानव को चाँद पर भेजा तो अमेरिका में भी गरीब लोग थे। पर उन्होंने बाज़ी खेली और जेपीएल और अन्य परियोजनाओं की परिणामस्वरूप प्रगति, परोक्ष रूप से सिलिकॉन वैली और अन्य क्षेत्रों को बनाने में मददगार हुई।
लोकतंत्र की एक समस्या ये भी है कि हर किसी के पास आवाज़ है और हम सबको सुनते हैं, समझते हैं और अनुमान लगाते रहते हैं। यही कारण है कि हम एक गणराज्य हैं – एक प्रतिनिधि लोकतंत्र। यहाँ लोग नेताओं को को तो समझ सकते हैं, लेकिन नीतियों और प्रौद्योगिकी को समझना जबकि वो प्रारंभिक दौर में हो, ये अटपटा भी है और बेवकूफाना भी।
हमें जापान से 0% ऋण मिला है और दोनों पक्ष इस व्यवस्था से लाभ उठा रहे हैं। बुलेट ट्रेनों में निवेश न करने से हमारे ट्रैक्स को अधिक सुरक्षित नहीं बनाया जा सकता। हमारे सुरक्षा बजट से कोई पैसा नहीं ले रहा है और यह इस क्षेत्र में विकास के ऐसे स्तर को छू सकता है जिसकी हम अभी कल्पना नहीं कर सकते। किसने सोचा होगा कि रेड हिल्स और चिंदराप्रीपेट के बीच की एक जर्जर ट्रेन देश को बदल देगी?
समस्यायें हमेशा होगी परन्तु एक महान तकनीक पर काम शुरू करने के लिए अब से बेहतर कोई समय नहीं है। तमिल में एक कहावत है: यदि आप समुद्र में तैरना चाहते हैं, तो आप तरंगों की समाप्ति के लिए इंतजार नहीं कर सकते।