यह साल का वह समय है जब फिर से मेनस्ट्रीम मीडिया अपने बेबुनियाद ख़बरों को फैलाने के कारोबार में लग चुकी है। गुजरात चुनाव में महीने भर का समय बचा है और उनके लिए गुजरात सरकार के ख़राब प्रदर्शन की खबरों को प्लांट करने का इससे बेहतर समय भी नहीं है। इस रणनीति को मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा 2014 से मोदी सरकार आने के बाद से लगातार आजमाया जा रहा है। लेकिन सच देखा जाये तो मेनस्ट्रीम मीडिया इस रणनीति के साथ हर बार असफल हुई है, लेकिन विकल्प के आभाव में अपने एजेंडे के प्रचार के लिए ये फर्जी ख़बरों का सहारा भी लेते हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया की विश्वसनीयता में आज के जितनी कमी कभी नहीं थी, और यह दुःखद है कि इसकी गरिमा को बहाल करने के लिए कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाये गए। इसे अब नए सिरे से शुरुआत करने की आवश्यकता है। गुजरात चुनाव के दौरान आने वाले दिनों में मेनस्ट्रीम मीडिया उन तमाम लेखों, ख़बरों और कर्कश भरे उन टीवी डिबेट से भरी होंगी जिसमें यह बताया जायेगा कि कैसे भाजपा के हाथ में गुजरात की सत्ता पूरी तरह गलत है। आंकड़ों को घुमाया जायेगा, जमीनी ख़बरों को मोड़ा जायेगा, बड़े स्तर पर फर्जी खबरे चलाई जाएंगी, सभी मूल रूप से इसीलिए होंगे ताकि गुजरात चुनाव के बाद सत्ता में भाजपा की वापसी ना हो सके।
मोदी के दिल्ली जाने के बाद से ही गुजरात भाजपा उस बड़े जगह को भरने में संघर्ष कर रही है। जो गुजरात कभी शांति और विकास के मॉडल के रूप में जाना जाता था, हाल ही के समय में वहाँ भारी विरोध प्रदर्शन, आगजनी और दंगे देखे गए हैं। पाटीदार और ठाकुर समाज द्वारा आरक्षण के लिए किये गए आंदोलन और उना में हमले के बाद दलितों द्वारा किये गए आंदोलन के दौरान प्रदेश नेतृत्व से प्रतिक्रिया अपेक्षित थी। आनंदीबेन और विजय रूपानी, दोनों ही मोदी सरकार में कुशल मंत्री थे, लेकिन दोनों में मोदी के करिश्में और दूरदृष्टि की कमी थी। विशेष रूप से आनंदीबेन इस पुरे मामले में प्रभावशाली नहीं दिखी। उन पर यह आरोप भी लगा कि उनके बच्चों द्वारा उनके प्रभाव का प्रशासन में अनुचित इस्तेमाल किया गया है। उन पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे। इन सभी कारको ने आनंदीबेन को मुख्यमंत्री के पद से हटाने के लिए एक बहाने का काम किया। आनंदीबेन के खराब प्रशासन के बाद विजय रूपानी का आना एक स्वागत योग्य कदम था। वह एक कुशल और प्रभावी नेता के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन उन्होंने स्वयं कहा था कि ‘आप सूर्य को दीपक नहीं दिखा सकते’, और यही बात है कि विजय रूपानी नरेंद्र मोदी नहीं हो सकते। भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि कांग्रेस अभी अपने में ही उलझी हुई है। अहमद पटेल को राज्यसभा के लिए पुनः उम्मीदवार बनाने के दौरान कांग्रेस बिखर गई थी। भाजपा के एक विकल्प के रूप में देखने पर, गुजरात कांग्रेस केवल एक उपद्रव कारक वाली पार्टी के रूप में देखा जाता है, जिसके पास ना कोई नेतृत्व है, ना दिशा और ना ही कोई दृष्टि है।
यह देखते हुए कि गुजरात चुनाव को मात्र एक महीने बचे हैं, दलित युवक पर ब्लेड से हमला या अमित शाह के बेटे का व्यापार में लाभ जैसे राजनीति से प्रेरित ख़बरें लगातार सुर्खियों में बने रहेंगे। जिस तरह विपक्ष अपनी चतुरता दिखाकर कुछ निम्न स्तर के प्रोपगंडा को फैलाता है तो यह एक अच्छी बात है कि वोट देने वाली जनता अब समझदार हो चुकी है और सब कुछ समझती है। मतदाता अब प्रत्येक मुख्य चुनाव से पहले विपक्ष द्वारा फैलाये जा रहे झूठ और धोखे के मायाजाल को अच्छे से देख सकते हैं। विपक्ष ने भाजपा की जीत को विफ़ल करने के लिए चर्च में हमले से लेकर, बीफ़ विवाद और अवार्ड वापसी तक का परीक्षण किया लेकिन ज्यादातर मामलो में यह व्यर्थ ही साबित हुआ। गुजरात में भाजपा के रथ को रोकने के लिए विपक्ष में बैठे कांग्रेस की रणनीति यह है कि जितने भी सामाजिक संगठन जो भाजपा के रास्ते में रोड़ा हैं उन्हें साथ जोड़ा जाए। पिछली बार कांग्रेस ने ऐसी कोशिश 80 के दशक में किया था, जब माधवसिंह सोलंकी ने केएचएएम (क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी, मुस्लिम) का सिक्का उछाला था और इस सामाजिक गठबंधन ने चुनाव में विपक्ष को साफ़ कर दिया था। कांग्रेस ने खुद को पाटीदार आंदोलन, दलित और ओबीसी समुदाय के हुए विरोध प्रदर्शन से जोड़ने की कोशिश की है। लेकिन दुर्भाग्य से इन समूहों की मांगें परसपर विरोधाभासी है, जिसकी वजह से कांग्रेस का यह सामाजिक गठबंधन शुरू ही नहीं हो पाया। पाटीदार समूह यह मानते हुए कि दशकों से आरक्षण की नीतियों की वजह से उनके साथ धोखा हुआ है, इसीलिए अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। वहीं दलित नेता भी इसके लिए एक हो गए हैं। इसके अलावा अल्पेश ठाकुर जैसे नेता हैं जो लगातार ओबीसी/एससी/एसटी समुदाय के लिए रियायत की मांग कर रहे हैं।
हाल ही में लोकनीति-सीएसडीएस के हुए सर्वे ने कुछ ऐसे दिलचस्प आंकड़ों दिए है जो गुजरात की हवा बयान कर रहे हैं। भाजपा को जहाँ 59% लोगों ने अपनी पसंद का बताया वहीं कांग्रेस को वापस सत्ता में चाहने वाले 29% ही थे। नरेंद्र मोदी के कमजोर परछाई होने के बाद भी मुख्यमंत्री विजय रूपानी को सर्वे में 24% लोगो का समर्थन मिला। कांग्रेस की ओर से शीर्ष समर्थन 2% का रहा। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी/एससी/एसटी नेता अल्पेश ठाकुर और दलित नेता जिग्नेश मेवलानी अपने जाति समुदाय में तो काफी लोकप्रिय हैं लेकिन अन्य जाति समूह द्वारा उन्हें संदेहास्पद नजरों से देखा जा सकता है, यह एक तरह से भाजपा की मदद करेगा। विभिन्न समुदायों से समर्थन के मामले में भी भाजपा कांग्रेस से मीलों आगे है। केवल दलित और मुस्लिम समुदाय ही कांग्रेस के लिए बेहतर कर सकते हैं लेकिन भाजपा ने यहाँ भी कांग्रेस की तरक्की में सेंध लगा दी है। यदि लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वे सच होता दिखता है तो यह निश्चित है कि अमित शाह का मिशन 150+ पूरा होगा।