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विमुद्रीकरण और जीएसटी पर आख़िरकार एक ग़ैर भाजपा नेता ने की समझदारी वाली बात

Shubham Upadhyay
द्वारा Shubham Upadhyay
8 October 2017
in मत
0
जय पांडा, विमुद्रीकरण
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व्यूज़
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जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन के संकट को रोकने के लिए 8 नवंबर 2016 को अपने भाषण में यह घोषणा किया कि 4 घंटे के बाद 500 और 1000 के नोट का कोई मूल्य नहीं होगा, तब इस घोषणा ने आम जनता और राजनीतिज्ञों को स्तब्ध कर दिया था। तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों ने बिना किसी देरी के आरोप लगाना शुरू कर दिया कि यह कदम भारत की असंगठित अर्थव्यवस्था जो कि मुख्य रूप से नगद पर आधारित है उसपर असर डालेगा और आम जनता को परेशानी होगी। जनता दल(यू), तेलुगु देशम पार्टी और बीजू जनता दल जैसे दलों ने विमुद्रीकरण के इस साहसिक निर्णय का पूरा समर्थन किया और नितीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहा था कि वह बहादुरी से शेर की सवारी कर रहे हैं। पत्रकारों के बीच अर्णव गोस्वामी जो कि उस वक़्त टाइम्स नाउ के साथ जुड़े थे, उन्होंने इस कदम मुखर होकर समर्थन किया था वहीं राजदीप सरदेसाई, सगारिका घोष और बरखा दत्त जैसे पत्रकारों ने विमुद्रीकरण जोरदार विरोध किया था। तीसरे तरह के लोग भी इसमें शामिल थे। इसमें कांग्रेस भी थी, जिसने सैद्धांतिक रूप से पहले तो इस कदम का समर्थन किया लेकिन इसके परिणामों से वो परेशान थे। जैसे जैसे दिन बीतते गए इस कदम के लिए उनका विरोध बढ़ता गया और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो यह कहा कि यह एक संगठनात्मक लूट है लूट का कानूनीकरण किया गया है।

मुख्यधारा के मीडिया द्वारा लगातार कतार में लोगो के मरने की झूठी और अत्यधिक अतिरंजित रिपोर्ट पेश करने के बाद भी देश के जनता के बीच यह कदम बहुत सफल साबित हुआ। विमुद्रीकरण के बाद हुए चुनावों के द्वारा इसकी पुष्टि भी की जा सकती है। भाजपा ने इसके बाद उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के चुनावों में शानदार प्रदर्शन किया, इसके अलावा उन्होंने महाराष्ट्र और दिल्ली में निकाय चुनाव में जीतने के साथ साथ उड़ीसा में अपनी गहरी पैठ बनाई।

लंबे समय से प्रतीक्षा में रखे वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) रूपी बड़े सुधार भी एनडीए सरकार के कार्यकाल में ही हुआ। जीएसटी, जिसके बारे में सबसे पहले पी. चिदंबरम द्वारा पेश किया गया था, जिनपर यूपीए सरकार के दौरान मंत्री रहते हुए घोटाले का दाग लगा था। जीएसटी जिसे लोकसभा में 2014 में ही पारित हो चुका था उसे विपक्षी दलों द्वारा की गई ओछी राजनीति की वजह से प्रभाव में आने में 3 साल लग गए  आखिरकार 1 जुलाई 2017 में जीएसटी प्रभाव में आया। उम्मीद है कि जीएसटी हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद को आगे बढ़ाने, छोटे एवं मध्यम उद्योग को मुख्यधारा में लाने और कर की चोरी रोकने महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

इन दोनों क़दमों को कुछ महीनों के ही अंतराल में प्रभाव में लाया गया, जो कुछ समय तक अर्थव्यवस्था में अवरोध का कारण कहा जा सकता है किन्तु यह निश्चित तौर पर माना जा सकता है कि इससे देश को लंबे समय तक लाभ मिलेगा। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में लिखे अपने लेख द्वारा बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद ने इन्ही सटीक बातों पर प्रकाश डाला है।

जो प्रधानमंत्री मोदी का विरोध कर रहे हैं वो हालिया 2 चीजों पर अटक गए हैं :

पहला तो यह कि आरबीआई ने 16 लाख करोड़ के रुपयों के वापसी के जो आंकड़े जारी किये हैं उस पर वो कह रहे हैं कि 90% से ज्यादा रकम वापस आ गई है और विमुद्रीकरण असफल साबित हुआ है। वहीं दूसरा यह कि जीडीपी की विकास दर संकुचित होकर 5.7% में आ गई है। अपने लेख में जय पांडा ने यह बताया कि विमुद्रीकरण के दौरान अवैध नगदी रखने वाले लोगो ने अपने पैसों को वापस सिस्टम में लाने के लिए जन धन खतों का बड़े स्तर पर दुरुपयोग किया है जिससे निपटने के लिए आरबीआई द्वारा लगातार केवाईसी के मानदंडों में परिवर्तन किया जा रहा था।

यदि 90% मुद्रा विमुद्रीकरण के बाद प्रणाली में वापस आ गई है, तो क्या भारत में नकदी के रूप में कोई काला धन नहीं था ?

जिस किसी को भी यह अंदाजा है कि रियल स्टेट का कारोबार कैसे चलता है वो अच्छे से जानता है कि नगद के रूप में कितने ही करोड़ का काला धन दैनिक रूप से उत्पन्न होता है। किसी भी संपत्ति की कीमत कम कर आंकना लगभग भारत के हर हिस्से में आम बात है और  हर बिल्डर पूंजीगत लाभ कर को बचाने के लिए कुल कीमत का कुछ हिस्सा नगद के रूप में लेता है। बैंकिंग प्रणाली में वापस आये 15 लाख करोड़ का तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि यह सब वैध है, जैसा कि हार्वड से पढ़े हमारे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने कहा था, उन्होंने यह भी कहा था कि विमुद्रीकरण काले धन को सफ़ेद करने का साधन है। विमुद्रीकरण असल में सड़े हुए सिस्टम को साफ़ करने की दिशा में पहला कदम था, ऐसा सिस्टम जो लंबे समय से बेकार पड़ा था और किसी भी नेता ने इसको साफ़ करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया था। जिस कांग्रेस ने अपने पुरे कार्यकाल में कभी प्रणाली में प्रचलित काले धन को साफ़ करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया वही हथौड़ी और चिमटे लेकर इसकी आलोचना में लगी हुई है। जय पांडा ने यह बताया कि मनरेगा में भी शुरआती गिरावट के बाद बढ़ोतरी हुई है, इससे संकेत मिल रहा है कि विमुद्रीकरण से संबंधित चीजे वापस सामान्य हो रही है।

जीएसटी की बात करे तो, जय पांडा ने उल्लेख किया है कि जीएसटी एक रचनात्मक बदलाव साबित होगा जो भारत के वृद्धि दर को 8% तक ले जा सकता है। किसी भी बड़े सुधार के दौरान परेशानियां होती है और जीएसटी कोई अपवाद नहीं है। जीएसटीएन (GSTN) पोर्टल में तकनीकी समस्याएं और विस्तारित समय सीमाएं बाध्य है, सुधार की चाह रखने और जीएसटी के प्रभाव को देखने लिए थोड़े धीरज की आवश्यकता है। अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में अधिक उद्यमों की भागीदारी, पारदर्शिता में वृद्धि, समग्र आपूर्ति श्रृंखला के प्रक्रिया में कमी, यह सब लंबे समय के फायदेमंद साबित होने जा रहा है। यह जरूर है कि जो लोग लंबे समय से कर चोरी करते आ रहे हैं, जो लोग काले धन को अपराध नहीं समझते, वही लोग विमुद्रीकरण और जीएसटी जैसे क़दमों का समर्थन नहीं कर रहे और सरकार का कड़ा विरोध कर रहे हैं।

क्या कांग्रेस पार्टी, जिसने आज़ादी के बाद से सबसे अधिक समय तक देश में शासन किया है, इन सवालों के जवाब दे सकती है ? सबसे पहला यह कि अनौपचारिक क्षेत्रों को इतना बढ़ने क्यों दिया गया, उसमें कोई प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया गया ? भारत की अधिकतर जनता के पास बैंक खाते क्यों नहीं थे ? कांग्रेस आरोप लगा रही है कि निजी निवेश आगे नहीं बढ़ पा रहा हैं। आखिर निजी निवेश क्यों आगे नहीं बढ़ पा रहा है, इसका कारण है कि क्रेडिट प्रवाह में सहजता नहीं थी और इसका मुख्य कारण है बैंकिंग क्षेत्र में भारी मात्रा में गड़बड़ी और इसमें बड़ा हिस्सा एनपीए (गैर निष्पादित संपत्ति) का है। आखिर भाजपा को हमेशा सूट-बूट की सरकार और व्यापारियों के समर्थक होने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस पार्टी ने क्यों इतने एनपीए बनाने की इजाजत दी ? एयरलाइन में गड़बड़ी को जानने के बाद भी किंगफिशर एयरलाइन्स को कर्ज देने के लिए डॉ. महमोहन सिंह ने आईडीबीआई बैंक पर दबाव क्यों बनाया ? किसकी सरकार के दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी के 5% तक बढ़ गया था ?

आखिरी बात यह बताना चाहूँगा कि जो कांग्रेसी और सोशल मीडिया के योद्धा जो जय पांडा पर भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन का आरोप लगा रहे हैं वो इसीलिए क्योंकि वो विमुद्रीकरण का समर्थन कर रहे हैं और यही उनके लिए मुश्किलें पैदा कर रही है। जय पांडा उन चुनिंदा सांसदों में एक हैं जिन्होंने संसद में निरंतर अवरोधों की वजह से हुए समय के बर्बादी के कारण उसके अनुपात में अपना वेतन वापस कर दिया था। जय पांडा ने ‘सिटिजंस अगेंस्ट मॉन्युट्रिशन’ (कुपोषण के खिलाफ नागरिक) और प्रवासी मजदूरों के मुद्दों को उठाने के लिए कुछ पहल भी किया है

कांग्रेस के कठपुतलियों और वामपंथियों को जय पांडा के सिर्फ अपनी राय रखने पर आरोप लगाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।

Tags: अर्थव्यवस्थाजय पांडाबीजेडीविमुद्रीकरण
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