सासानी साम्राज्य के पतन के बाद आक्रमणकारियों की सेना जिनके सर पर खून सवार था उनके द्वारा पारसियों के क्रूर उत्पीड़न का इतिहास गवाह रहा है। आठवीं और दसवीं सदी के बीच कुछ भाग्यशाली पारसी नरसंहार से बचकर संजन राज्य तक पहुंचे जहाँ राजा विजयादित्य का शासन था। जब पारसियों ने उनसे शरण मांगी तो राजा ने उन्हें दिखाया कि उनके राज्य पहले से ही भरे हुए हैं और उन्होंने शरणार्थियों को स्वीकार करने पर असमर्थता जताई। पुजारी ने मुट्ठी भर चीनी लिया और उसे दूध में मिला लिया और कहा कि उनका समुदाय इस चीनी की तरह ही व्यवहार करेगा जो दूध में पूरी तरह घुल जाएगा और उसमें मिठास लाएगा। राजा ने उन्हें शरण दी और पारसी भारत की संस्कृति का अहम हिस्सा बन गए, भारत की बाकी आबादी के साथ शांतिपूर्वक रहने लगे। विजयादित्य उर्फ़ जदी राणा के मार्ग का अनुसरण करते हुए भारत आज भी शरणार्थियों को शरण देते आया है। चाहे वो तिब्बती भिक्षु हो, बांग्लादेश शरणार्थी, श्रीलंका के गृह युद्ध से आए अप्रवासी हो, या अफगान से भागे हुए शरणार्थी, भारत ने सभी को आश्रय दिया है।
जिस देश को धर्म के आधार पर ही 3 टुकड़ों में बांटा गया, वह सभी शरणार्थियों को उनके धर्म के साथ शरण प्रदान करता है। हालांकि, शरण देने की परंपरा कभी राष्ट्रीय सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं करती है – जदी राणा की फीलोसोफ़ी जिसे बनाए रखा गया। भारत रोहिंग्या मुद्दे के मामले में सतर्क है, क्योंकि भारत में आने वाले अन्य शरणार्थी समूहों के विपरीत आतंकवादी गतिविधियों में रोहिंग्याओं की सक्रिय भागीदारी है। अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए), अराकन रोहिंग्या नेशनलिस्ट आर्गेनाईजेशन (आरएनओ), रोहिंग्या एकता संगठन (आरएसओ) जैसे रोहिंग्या विद्रोहियों है। इनके अलकायदा, आईएसआईएस, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन से वैश्विक आतंकी संगठनों से संबंध है। 2002 में एक वीडियो सामने आया था जिसमें अफगानिस्तान में रोहिंग्या मुसलमानों का एक समूह तालिबान शिविरों में प्रशिक्षण ले रहा था। हाल ही में एनआईए और एनएसए जैसे भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कुछ गंभीर सूचनाएं दी है, जिसमें पता चला है कि रोहिंग्या मुसलमान संभावित रुप से खतरा बन सकते हैं।
● दिसंबर 2016 में रोहिंग्या आतंकवादी समूह हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी आर्काना का नेता मौलाना अब्दुल कुडूस ने लश्कर ए तैयबा के सह-संस्थापक और जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद से मिलकर भारत-म्यांमार और थाईलैंड-म्यांमार सीमा में जिहाद आंदोलन के लिए पूर्ण सहयोग की बात की थी। आईएसआई और पाकिस्तानी तालिबान थाईलैंड-म्यांमार सीमा में मारिसॉट में एक विशाल आतंकी शिविर को धन मुहैया कराकर इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं। मौलाना अब्दुल कुडूस का पाकिस्तान तालिबान से भी करीबी संबंध है।
● इससे पहले अक्टूबर 2016 में आई रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर में रोहिंग्या आतंकी समूह अका-मुल-मुजाहिदीन (एएमएम) का लश्कर-ए-तैयबा जैश-ए-मोहम्मद से संबंध है। एएमएम, हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी की एक शाखा है और इसके नेताओं को पाकिस्तान में प्रशिक्षित किया गया है।
● इस मुद्दे पर भारत के म्यांमार को समर्थन देने की वजह से 1 जून 2017 को हाफिज सईद ने रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत के खिलाफ युद्ध के लिए अपने जिहाद आंदोलन में शामिल होने का आग्रह किया। लश्कर-ए-तैयबा ने म्यांमार के बौद्धों के विरुद्ध बदला लेने के लिए रोहिंग्या मुस्लिमों को भर्ती की है।
● 17 सितंबर 2017 को दिल्ली पुलिस की विशेष दल ने अलकायदा के ऑपरेटर को गिरफ्तार किया जिसे पूर्वी भारत में म्यांमार सेना से लड़ने हेतू रोहिंग्या मुसलमानों की भर्ती के लिए एक आतंकवादी मोर्चा स्थापित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। 2013 में सैन्य दखल के दौरान रोहिंग्यओं के म्यांमार से भागने के बाद से ही अलकायदा उनकी की भर्ती का प्रयास कर रहा है।
सबसे हाल की खबर यह आई है कि रोहिंग्या मुसलमानों का संबंध आईएसआईएस के साथ भी है। नागालैंड पुलिस के खुफिया विभाग ने वहां रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा संभावित हमले की चेतावनी दी थी।
नागालैंड पुलिस ने बताया कि दीमापुर में यदि रोहिंग्या को वहां से बाहर करने का प्रयास किया जाता है तो वहाँ के एक इमाम में रोहिंग्या मुस्लिमों को वहां के क्षेत्रीय लोगों के खिलाफ हथियार तक उठाने की अपील की है। इमाम ने नागालैंड में जिहाद आंदोलन शुरु करने के लिए बांग्लादेश से हथियार, गोला बारूद और धन इकट्ठा किया था। 20 आईएसआईएस आतंकी राज्य में घुस चुके हैं और आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। बीएसएफ के जनरल वी के गौर के अनुसार आतंकी आईएसआईएस के अलावा जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा, जमात-ए-इस्लामी, अलकायदा, छात्र शिविर इत्यादि के हैं। आईएसआईएस आतंकवादियों ने मुस्लिम देशों से राहत देने वाले राहत मजदूरों के रूप में खुद को ढालकर रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में घुसपैठ की है। जिहाद आंदोलन में शामिल होने के लिए युवा शरणार्थियों को लालच दिया जाता है। समूह में बहुत से लोग पाकिस्तान समर्थित हैं और भारत-बांग्लादेश मित्रता के विरोधी हैं।
रोहिंग्या-आईएसआईएस का संबंध कोई नया नहीं है। 2015 में सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली हिसियन लूंग ने इंडोनेशिया और मलेशिया के मुस्लिमों को सीरिया में आईएसआईएस के लिए लड़ाकों की भर्ती कराने वाली कटिबाह नुसंतरा नामक यूनिट का उल्लेख किया था। जिहाद लड़ने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों की भर्ती हेतू इस समूह ने ऑनलाइन संदेश पोस्ट किए थे। सितंबर 2017 में मलेशियन आतंकवाद प्रमुख अयूब खान मैडिन पिचे ने कहा कि आईएसआईएस अधिक सेनानियों की भर्ती के लिए रोहिंग्या संकट का इस्तेमाल कर रहा है, विशेष रूप से दक्षिण पूर्वी एशिया से। इंडोनेशिया डिफेंडर्स फ्रंट ने जिहादियों को रखाइन जाकर रोहिंग्या की तरफ से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। ऐसा माना जा रहा है कि आईएसआईएस मध्य पूर्व से अपने गढ़ को खो रहा है और दक्षिण पूर्व एशिया में अपने क्षेत्र के विस्तार की कोशिश कर रहा है।
यद्यपि रोहिंग्या समर्थक दावा करते हैं कि रोहिंग्या ने अपने बचाव के लिए हथियार उठाए हैं लेकिन उनके आंदोलन की प्रकृति इस्लामिक विस्तार के अनंत लक्ष्य से प्रेरित दिखता है। 2012 के रखाइन दंगे में रोहिंग्या मुस्लिमों के गिरोह ने रखाइन के एक बौद्ध महिला का बलात्कार कर दिया था और 12 बौद्ध भिक्षु को जला दिया था। इस घटना के बाद जिहादियों के खिलाफ सबसे बुरी सैन्य कार्रवाई की शुरुआत हुई। हालांकि कुछ धर्मनिरपेक्ष मानवतावादी दावा कर रहे हैं कि म्यानमार सेना ने रोहिंग्या हिंदू और रोहिंग्या मुसलमानों दोनों को परेशान किया है, लेकिन हाल ही में आई एक रिपोर्ट कुछ अलग ही कहानी बयां कर रही। ‘ये बॉ क्या’ के एक गांव में 28 हिंदुओं की कब्र बरामद हुई है। कब्र में 20 महिलाएं, 2 पुरुष और 10 वर्ष से कम उम्र के 6 बच्चों की लाश मिली है। एआरएसए के रोहिंग्या आतंकवादियों ने हिंदुओं को बेरहमी से और शवों को गड्ढे में फेंक दफना दिया था। उस क्षेत्र के रोहिंग्या हिंदुओं ने एएफपी को बताया कि रोहिंग्या मुस्लिम आतंकवादी उनके गांव में 25 अगस्त को घुसी और उनके रास्ते में आने वाले लोगों को मारना शुरू कर दिया, कई लोगों की हत्या की और कुछ लोगों को जंगल में ले गए। बाद में अन्य सर्च ऑपरेशन के बाद हिंदुओं की लाशों की संख्या 45 तक पहुंच गई।
सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आतंकवादी समूहों के साथ रोहिंग्या के संबंधों का खुलासा करते हुए विस्तृत रिपोर्ट के साथ केंद्र सरकार ने 40000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को देश से निष्कासित करने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। सुप्रीम कोर्ट ने 21 नवंबर तक मामले की सुनवाई स्थगित कर कहा कि इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे के आलावा मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ भी संतुलित करके संभाला जाना चाहिए। महिलाओं, बच्चों बीमारो और बुजुर्गों को मामले में छूट दी जानी चाहिए। वहीं दूसरी तरफ 51 प्रमुख व्यक्तियों ने रोहिंग्या मुसलमानों को निष्काषित नहीं करने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा है, क्योंकि उनका मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा की खातिर किसी को अपने मानवाधिकार के किसी समूह से वंचित नहीं करना चाहिए। इस सूची में शशि थरूर, प्रशांत भूषण, पी चिदंबरम, सागरिका घोष, करण थापर, योगेंद्र यादव, तीस्ता सीतलवाड़, स्वरा भास्कर आदि प्रमुख धर्मनिरपेक्षों के नाम शामिल है।
हालांकि विभिन्न मानवतावादी और उदारवादियों ने रोहिंग्या को निर्वासित करने के लिए केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है, वहीं सरकार ने उन्हें पहले ही निष्काषित करना शुरू कर दिया है। ढाका ट्रिब्यून द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बीएसएफ ने 18 रोहिंग्या मुसलमानों को सतखीरा बॉर्डर के माध्यम से वापस बांग्लादेश भेजा है। उत्तर 24 परगना के बशीरहाट में गणराजपुर सीमा सुरक्षा बल शिविर के लोगों ने इन 18 शरणार्थियों को बांग्लादेश में वापस भेजने को मजबूर कर दिया। पिछले 3 हफ्तों में बीएसएफ ने विभिन्न चेक पोस्ट के माध्यम से चार बार में 57 शरणार्थियों को बांग्लादेश में निष्काषित किया। घटनाओं के मद्देनजर बांग्लादेश ने अपनी पश्चिमी सीमा में सुरक्षा कड़ी कर दी है क्योंकि उनके लिए यह चिंता का विषय है कि सैकड़ों रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थी को उनके क्षेत्र में धकेला जा रहा है। भारत-बांग्लादेश के पोरस सीमा में कड़ी सुरक्षा के कारण बीएसएफ ने किसी भी नए रोहिंग्या घुसपैठ को सफलतापूर्वक बंद कर दिया है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में बीएसएफ पर रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ को रोकने के लिए मिर्च और अचेत हथगोले के इस्तेमाल का आरोप लगाया गया है।
आतंकवादी गतिविधियों में शामिल रहने के लिए रोहिंग्या का लंबा इतिहास रहा है जो कि 1947 में शुरू हुआ था। यहां तक कि 1948 में बर्मा के स्वतंत्र होने से पहले अराकान के मुस्लिम नेताओं ने 1947 में जिन्ना से मुलाकात की और उन्हें पूर्व में मेयु क्षेत्र को शामिल करने का प्रस्ताव दिया, जिसे जिन्ना ने ठुकरा दिया। जिहाद और अलगाववाद आंदोलन को जारी रखने के लिए रोहिंग्या नेताओं ने मुजाहिद समूह का गठन किया जो आज भी जारी। क्षेत्र में कई अतिवादी और विद्रोही आंदोलन को देखा जिसने म्यानमार सरकार को 1960 के दशक, 1978 ,1991-92, 2012, 2015 और 2016-17 में निश्चित रूप से नियमित अंतराल पर सैन्य कार्रवाई के लिए मजबूर किया। कुछ हद तक अपने उत्पीड़न के लिए रोहिंग्या स्वयं जिम्मेदार हैं।
चर्चा को समाप्त करते हुए मैं कुछ जानकारियां साझा करता हूँ :-
● यदि किसी व्यक्ति पर जुल्म होता है और उसे अपना क्षेत्र छोड़ना पड़ता है तो वह एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण स्थान पर रहने का प्रयास करेगा। भारत में सबसे विवादित और राज्य क्षेत्र जम्मू और कश्मीर राज्य है। 10000 रोहिंग्या मुस्लिम सुरक्षित और शांतिपूर्ण जगह के बजाए भारत में सबसे विवादित क्षेत्र में क्यों गए ?
जम्मू कश्मीर में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी लोगों के संबंध आईएसआईएस, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे समूहों के साथ है जो कश्मीर में लगातार अशांति पैदा कर रहे हैं।इस षड्यंत्र को देखने के लिए भारतीय उदारवादी क्या नासमझ हैं?
● ढाका ट्रिब्यून ने बताया कि बांग्लादेश में इस गंभीर स्थिति के बीच 16000 रोहिंग्या महिलाएं गर्भवती हैं। जब भी महिलाएं शरणार्थी शिविरों में एक दुखी जीवन जी रहे हैं और क्रूर उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं तो वह गर्भवती होना कैसे स्वीकार कर सकते हैं। क्या यह आबादी जिहाद का एक हिस्सा है?
● क्या रोहिंग्या शरणार्थी किसी भी तरह से सांत्वना इकट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं? रोहिंग्या महिला की गोद में रोते बच्चे की छवि को देखिए। महिला स्पष्ट रुप से बच्चे को रुलाने के लिए उसे चिमट रही है।