गुजरात में सियासी ड्रामा अपने पूरे शबाब पर है। गुजरात चुनाव जितना दिलचस्प आज है इसके पहले कभी न था क्योंकि इसके पहले 2012 तक चुनाव सीधा-सीधा कांग्रेस विरूद्ध मोदी के नाम पर लड़ा और जीता जाता था। बीजेपी यहाँ सीधे मुकाबले में कभी नहीं रही है। गुजरातियों को गुजराती अस्मिता के लिए जाना जाता है और गुजरात ने मोदी के विकास के मॉडल को अच्छी तरह समझ लिया था यही कारण था की गुजराती मोदी के नाम से ही वोट देते रहे है। बीजेपी के उम्मीदवार बीजेपी की बजाये मोदी के नाम पर वोट माँगा करते थे लेकिन इस बार गुजरात चुनाव रोमांचक हुआ है तो उसका बड़ा कारण है पाटीदार आन्दोलन के नेता हार्दिक पटेल। अब पाटीदार आन्दोलन किस लिए हुआ? इसे किसने खड़ा किया और इसका मकसद क्या है यह जनता अच्छी तरह समझ रही है और जो लोग नहीं समझ पा रहे है वह लोग भी गुजरात के नतीजे आने के बाद सारा सियासी ड्रामा समझ जायेंगे।
पिछले एक माह से हार्दिक और कांग्रेस के बीच यह ड्रामा आये दिन नया मोड़ लेता दिखाई देता है तो इसका कारण हार्दिक की आरक्षण मांगों को मानने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं थी। क्योंकि हार्दिक की पाटीदार के लिए आरक्षण देना संविधान के दायरे के बाहर है क्योंकि पहले ही 49.5 प्रतिशत आरक्षण गुजरात में लागू है जिसमें OBC- 27%, SC – 15%, ST – 7.5%. ज्ञात हो की पटेल समुदाय का एक हिस्सा (अंजना) पटेल समाज पहले से ही ओबीसी समाज में सम्मिलित किया जा चुका है। संविधान के एक अनुच्छेद के अनुसार 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। आरक्षण के इसी पेंच पर हार्दिक पटेल यानी PAAS और कांग्रेस के बीच का पेंच फंसा था जिसके लिए आये दिन हार्दिक कांग्रेस को अल्टीमेटम दिए जा रहे थे और आखिरकार आज इस पेंच पर फार्मूला निकाल कांग्रेस ने अपना आखिरी पत्ता भी खोल दिया है।
कहा जा रहा है की हार्दिक और कांग्रेस के बीच आरक्षण को लेकर कांग्रेस ने हार्दिक की मदद से एक फार्मूला खोज निकाला है ऐसा दावा कांग्रेस कर रही है लेकिन कांग्रेस इसे जनता के सामने या मीडिया को बताने से इनकार कर रही है लेकिन हार्दिक गुट के नेताओं ने यह फार्मूला लीक करके कांग्रेस के बड़े दावे की हवा निकाल कर रख दी है। जिसपर बीजेपी इस फार्मूला को लेकर कांग्रेस पर तगड़ा पलटवार करने में जुट गयी है। बीजेपी को कही न कही यह अंदेशा था ही की हार्दिक की मांगों को मानना कांग्रेस के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है। और यही वजह है की बीजेपी को फ़ार्मुले का पता चलते ही अब बीजेपी फ्रंटफुट पर आकर हमलावार हो गयी है।
क्या है हार्दिक कांग्रेस का आरक्षण का फार्मूला?
दरअसल जिस फार्मूला का डंका बजा कर कांग्रेस फूले नहीं समा रही है वह फार्मूला जातीय आधार पर नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर तय किया गया है। इस फोर्मुले के अनुसार पाटीदार का आर्थिक सर्वेक्षण किया जायेगा और आर्थिक आधार पर ही पटेलों को आरक्षण दिया जायेगा। माने आज तक जो जातीय आरक्षण सिस्टम था उसके बिलकुल विपरीत यह आर्थिक आधार का आरक्षण कांग्रेस शुरू करने के सपने दिखा रही है। जिसका भारतीय संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। इसके साथ हार्दिक ने कहा कि पटेल आरक्षण फॉर्मूला ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाएगा । उन्होंने कहा कि हम नहीं चाहते पटेल आरक्षण से किसी दूसरे समुदाय का हक मारा जाए । हार्दिक ने कहा विशेष हालात में 50 फीसदी से ज्यादा का आरक्षण भी दिया जा सकता है । जबकि ओबीसी, एससी और एसटी कोटे के आरक्षण को छेड़छाड़ किये बिना ऐसा कोई फार्मूला निकलना मुमकिन नहीं है।
फार्मूला जमीन पर लागू करना क्यों है मुश्किल?
दरअसल एक मनगढ़ंत फार्मूला बनाकर कांग्रेस पाटीदार समाज को ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात और देश की जनता को बेवकूफ बनाने का प्रयास कर रही है और इसी कारण से कांग्रेस अपना फार्मूला समझाने से कतरा रही है। लाख पूछने के बाद भी कांग्रेस प्रवक्ता फार्मूला बताने से घबरा रहे है क्योंकि कागज पर बड़ा आसान सा दिखाई देनेवाला यह फार्मूला असल में जमीनी हकीकत से कोसो दूर है।
तीन मुख्य कारण जो हार्दिक-कांग्रेस के झूठे आरक्षण फोर्मुले की हवा निकाल देने के लिए काफी है वो इस प्रकार है :
सबसे पहली बड़ी बात, दरअसल संविधान के अनुसार 50% के बाहर राज्य और केंद्र सरकार आरक्षण नहीं दे सकती है। अनुच्छेद 31C के अनुसार अगर विशेष हालत में किसी समुदाय को आरक्षण दिया जा सकता है लेकिन इसके लिए उस समुदाय की आर्थिक हालत का हवाला देकर राज्य की जातीय समिति से इसे पारित करवाना अनिवार्य है तथा केंद्र के विचाराधीन इसे केंद्र और सुप्रीम कोर्ट की सहमती से ऐसा किया जा सकता है लेकिन अगर पाटीदार समाज की बात करें और कांग्रेस की सरकार राज्य में रहते हुए केंद्र की सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट इससे सहमत होगी यह बहुत मुश्किल है।
दूसरी बड़ी बात जिससे यह साबित होता है की कांग्रेस का यह फार्मूला पूरी तरह से बेबुनियाद और असंवैधानिक है वह यह की अब तक जितनी सरकारों ने आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढाने का प्रस्ताव रखा है इसे सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया है। यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने यह प्रस्ताव रखा हो इसके पहले भी सरकारों ने ऐसा प्रस्ताव रखा है लेकिन कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया था। और रही बात पटेल समुदाय की तो पटेल समुदाय आर्थिक दृष्टि से समृद्ध समाज माना जाता है। ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण का ढोल पीटने वाला यह कांग्रेस हार्दिक पटेल का फार्मूला सही मायनों में एक असंवैधानिक झूठ है जिसका सीधा रिश्ता गुजरात चुनाव जीतने से है।
तीसरी सबसे बड़ी बात यह की हमारे देश में संविधान ने जातीय आधार पर आरक्षण दिया है कही भी संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का उल्लेख नहीं बल्कि आर्थिक आधार पर आरक्षण पूरी तरह से असंवैधानिक है। अगर कांग्रेस आर्थिक आधार पर आरक्षण देती है तो फिर इसका पाटीदार समाज से कोई लेना देना नहीं रह जायेगा और यह पूर्णता सभी समाज पर लागू होगा क्योंकि आर्थिक आधार पर फिर ब्राह्मण, क्षत्रिय बाकी समाज भी आर्थिक आधार पर सम्मिलित किये जाने की मांग रखेंगे जिससे राज्य का माहौल बुरी तरह बिगड़ने की पूरी उम्मीद है।
आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना इतना आसान होता तो देश में जातीय आरक्षण को मिटाना इतना मुश्किल नहीं होता लेकिन यह असंवैधानिक माना गया है। क्योंकि अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भगवत के इसी आर्थिक आधार के बयान पर उन्हें कांग्रेस ने आड़े हाथों लिया था और खुलकर इसका विरोध किया था जिसका खामियाजा बीजेपी को बिहार चुनाव हारकर चुकाना पड़ा था। इसके पहले सुब्रमण्यम स्वामी समेत तमाम बड़े नेताओं ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन किया है जिससे जातीय आरक्षण को ख़त्म किया जा सकता है। संविधान की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए कोई भी सरकार ऐसा करने से बचती रही है।
आजकल राजनीति में एक नया ट्रेंड चल पड़ा है जब किसी पार्टी के पास मुद्दों की कमी देखी जाती है वह पार्टी आपस में सियासी ड्रामा करती नजर आती है जिसका ट्रेलर हम उत्तर प्रदेश चुनाव में देख चुके है जहाँ चाचा-भतीजे के सियासी ड्रामे ने प्रदेश की जनता का दो महीनों तक मनोरंजन किया था और आखिरकार तमाम ड्रामे के बावजूद अखिलेश सरकार को उत्तर प्रदेश की गद्दी से हाथ धोना पड़ा। कुछ ऐसा ही सियासी ड्रामा गुजरात चुनाव के मद्देनजर पिछले एक साल से देखने को मिल रहा है। भले इस ड्रामे को पाटीदार आरक्षण आन्दोलन के नाम से खड़ा किया गया हो लेकिन लगभग यह तो तय ही था की जिस तरह हार्दिक बीजेपी के विरुद्ध आन्दोलन करते नजर आ रहे है कहीं न कहीं आन्दोलन के सहारे कांग्रेस की राजनीति साधने का एक तरीका मात्र है।
कांग्रेस और हार्दिक का मकसद गुजरात चुनाव जीतना भर है और हार्दिक-कांग्रेस मिलकर केवल पाटीदार समाज को ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात को बेवकूफ बनाकर गुजरात चुनाव जीतने के लिए एक नाटक रच रहे है ताकि आने वाले समय में गुजरात चुनाव जीतकर मोदी –शाह के विकास रथ को रोका जा सके। इसमें हार्दिक इस आन्दोलन के जरिये अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकना चाह रहे है। लेकिन गुजरात की जनता कांग्रेस-हार्दिक के इस झूठे फोर्मुले को जल्दी ही समझेगी और शायद इसका खामियाजा कांग्रेस को गुजरात के विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है ।