मसूद अजहर के साथ चीन को इतनी मोहब्बत क्यों है? साफ है कि सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर) में लगाए गए ६२ अरब डॉलर एक वाजिब कारण है जिसके चलते चीन पाकिस्तान की राजनीतिक गलतियों को ढो रहा है। पाकिस्तान ने आर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन में चीन के कार्य को बढ़ावा दे चीन के इस उपकार का धन्यवाद दिया है जबकि शिनजियांग प्रांत में मुस्लिम उइघुर समुदाय पर लगातार अत्याचार हो रहे है।
हाल ही में, चीन ईरान तक पहुंच चुका है, जो कि संपूर्ण दक्षिण-पूर्व एशिया पर प्रभाव बनाने की पहेली का छोटा सा हिस्सा है। पूर्व में दक्षिण चीन सागर विवाद और हिंद महासागर में सैना के विकास का अवसर तलाश रहे चीन का अगला अपेक्षित कदम पश्चिम-ऐशीयायी इस्लामी राष्ट्रों से संवाद कर उनको अपनी ओर आकर्षित करना होगा, और पाकिस्तान इस कार्यवाही में सिर्फ एक मोहरा है (पाकिस्तानी भले ही खुद को राजा के रूप में देखना चाहता हैं) डॉकलाम गतिरोध के बाद, अगर कोई यह सोचता है कि चीन सयुंक्त राष्ट्र के समक्ष अज़हर मसूद को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर देगा तो वह व्यक्ति अभी भी अपरिपक्व विश्लेषक के रूप में देखा जा सकता है। चीन, जैसा कि बार-बार देखा गया है, किसी भी अन्य कूटनीतिक प्रतिबद्धताओं से ऊपर अपने राष्ट्रीय हितों को रखता है, भले ही उसके संरक्षित आतंकवादी भारत में तबाही करने के लिए साधनों को तैयार कर रहे हो।
सरकार अपनी राजनैतिक शक्तियों की सीमा में पूर्ण प्रयास कर रही है, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन के अलावा हर देश का भारत के दावों पर समर्थन है। अब, जब यहाँ चीन और भारत की बात आती है, तो एक व्यापक सैन्य संघर्ष की आवश्यकता नहीं है, जिसके कारण दोनों देशों को समान क्षति पहुचेगी। चीनी उत्पादों का बहिष्कार करने के बारे में सोचना है तो अच्छा परन्तु अवास्तविक है।
हालांकि, कोई भी इससे इनकार नहीं कर सकता है कि चीन को निर्यात के लिए भारत की जरूरत है, जितना कि भारतीय व्यापार को चीन के सस्ते उत्पादों की जरूरत है। हालांकि जब व्यापार की बात आती है तो हम भारतियों को ये स्वीकारना होगा बड़ी विनम्रता के साथ कि पलड़ा चीन का ही भारी है।
आज, लगभग हर दूसरा सेलेब्रिटी चीनी ब्रांड, उत्पादों और कंपनियों का विज्ञापन करता है। मध्यवर्ती उपभोक्ता के रूप में, हम जिन उत्पादों को खरीदते हैं उन्हें कहां निर्मित किया जाता और कहां संकलित किया जाता इसके बारे हम बहुत कम चिंता करते है। हम अपनी व्यक्तिगत दिनचर्या के जाल में इतने फस गए है कि हमें हमारे बाजार में चीनी उत्पादों की बढ़ती उपस्थिति की आलोचना में भी कम रूचि हो गई है।
हालांकि,
हाल ही में, दिवाली पर, मैंने मेरे शहर के सबसे बड़े बाजारों में से एक में लोगों को देखा जिन्होने चीन के अपेक्षा भारतीय लाइटों की खरीद की। माना कि विकल्प कम थे, लेकिन बहुत से लोगो ने उसी का प्रयोग करने का प्रयास किया जो उनके पास उपलब्ध था। अब भारतीय बाजार के अधिपतियों, यानी हम लोगों को वैकल्पिक विकल्पों पर विचार करना चाहिए, जब उत्पादों का दिनचर्या में खपत की बात आती है। मोबाइल फोन से लेकर दीवाली की रोशनी तक, हमें उन उत्पादों की ओर देखना चाहिए जो पहले भारत में बने हुए और नहीं तो चीन के अलावा बने किसी और देश के उत्पादों को खरीदना चाहिए।
यह केवल देशभक्ति के बारे में नहीं है, बल्कि यह भारत की अर्थव्यवस्था का भी मामला है। चीनी उत्पादों कि मांग ह्हमे रोकनी चाहिए आपूर्ति को ठप करने के लिए और मांग तब तक बंद रखनी चाहिए जब तक आपूर्तिकर्ता को बात समझ ना आ जाए। और बात यह समझ आनी चाहिए कि चीनियों की तरह, भारतीयों को भी वैश्विक स्तर पर, नैतिकता की तुलना में अपने राष्ट्रीय हित अधिक मूल्यवान हैं। अपनी वित्तीय स्थिति और इसके कर्ज-जीडीपी अनुपात को कम करने के लिए, चीन अपनी नवीनतम मिसाइलों और हथियारों पर निर्भर नहीं रह सकता है, इसलिए हम भारतीयो को भी अपने देश के हित के लिए जो हम कर सकते हैं, वह करना चाहिए। हमें अपने इतिहास से यह जानने के लिए पर्याप्त उदाहरण मिल जाएगें कि कैसे ब्रिटिश राज ने भारत देश की आर्थिक संरचना को खत्म करने के लिए आपूर्ति-और-मांग का इस्तेमाल किया, और भारत की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया।
भारत सरकार को भी पहले पहल करने की जरूरत है। कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन अभी भी सरकार को जनता को उत्पादन और निर्माण में सहायता प्रदान करनी होगी। जैसे कि लोगों को कौशल प्रदान करें, अपने उत्पाद बनाने की प्रेरणा दे, राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं करवाए और अपने देश के विकास में मदद करे। कोई हमसे पूर्ण बहिष्कार की मांग नहीं कर रहा है, तथा २०१८ के जैसे भूमंडलीकृत विश्व में यह संभव नहीं है, लेकिन अक्सर, देश के आर्थिक मामलों में कुछ कूटनीतिज्ञों द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है, और इन सभी मामलों पर हमें भविष्य में अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। मोबाइल फोन से लेकर दीवाली की रोशनी तक, कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे भारत में निर्मित नहीं किया जा सकता और हम उपभोक्ताओं की देशीय उत्पादों के प्रति भारतीय बाजारों में बढती मांग को देखते हुए, हम अगले दशक के अंत तक १.४ अरब की बाज़ार राशि तक पहुंचने के लिए तैयार है।
हर बार की तरह एक अन्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) आएगी और चली जाएगी और चीन में मसूद अज़हर के दत्तक राजनैतिक दलों में बने रहेंगे, और इसके लिए कोई भी चीनी को दोषी नहीं ठहरा सकता, किसी देश में एक राजनयिक पक्ष के लिए राष्ट्रीय खज़ाने से ६२ अरब डॉलर की राशि का भुगतान करने के लिए एक बड़ी राशि है जिसका प्रयोग हाल ही में दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में से एक में एक सैन्य गतिरोध कार्यवाही के दौरान उन्हें अपमानित किया। भारत के राष्ट्रपति ने हाल ही के अपने भाषण में यह स्पष्ट किया कि चीन विदेशों में एक आक्रामक नीति का प्रयोग करेगा, और यह भी स्पष्ट है, कि कोई भी कूटनीतज्ञ चीन को इस आक्रामक नीति से हटने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।
चीन कोई ऐसा कार्य न करे, इसके लिए सरकार अपने प्रयास जारी रखेगी, और इस सब के बीच, अच्छे नागरिकों की तरह, हम उस खेल का एक हिस्सा बन सकते है जिसे चीन अच्छी तरह से समझता हैं, अर्थशास्त्र।