मई 2016 में, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान के दौरे पर गए थे, तब उन्होंने भारत, ईरान और अफगानिस्तान के मध्य एक त्रिपक्षीय अनुबंध के रूप में, ईरान के चाभर बंदरगाह को विकसित और संचालित करने के लिए 500 मिलियन डॉलर देने का वादा किया था। भारत द्वारा 2003 में, ईरान के चाभर बंदरगाह पर महत्वपूर्ण सुधार करने को लेकर विचार किया गया था। उस समय भारत, अफगानिस्तान और अन्य भूमिगत मध्य एशियाई देशों के बाजारों तक पहुँचने के लिए निरन्तर नए मार्गों की तलाश कर रहा था। लेकिन ईरान पर गुप्त परमाणु योजना चलाने के कारण अंतर्राष्ट्रीय रुप से प्रतिबंध लगा दिया गया, जिससे इस भारतीय परियोजना को पूरा करने में काफी समय लग गया। उसी अवधि के दौरान भारत ने अमेरिका के साथ मिलकर एक असैनिक परमाणु समझौते को पूरा करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिससे कुछ समय के लिए यह विचार स्थगित हो गया।
2013 में, ईरान के बाद, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जर्मनी इन सभी देशों को इस परियोजना में दिलचस्पी उत्पन्न होने लगी और ईरान के तेहरान में चलाए जा रहे, परमाणु कार्यक्रम पर अंतरिम सहमति से ईरान देश पर लगाए गए प्रतिबंधों में से, कुछ प्रतिबंधों को हटा दिया गया। रविवार को भारत ने गुजरात के कांदला बंदरगाह से, ईरान देश के चाभर बंदरगाह के जरिए अफगानिस्तान को नौवाहन (शिपमेंट) के माध्यम से पहली बार गेहूँ निर्यात किया।
भारत सरकार द्वारा अगले कुछ महीनों में अफगानिस्तान को नौवाहन (शिपमेंट) के माध्यम से छह बार और गेहूँ का निर्यात किया जाएगा, भारत, अफगानिस्तान के लोगों के लिए अनुदान के आधार पर 1.1 मिलियन टन गेहूँ की आपूर्ति करने के लिए वचनबद्ध है।
यह बात अत्यधिक ध्यान देने योग्य है कि भारत द्वारा ईरान देश के चाभर बंदरगाह के माध्यम से, गेहूँ की पहली खेप (शिपमेंट) भेजने के कुछ ही सप्ताह पहले, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रम्प ने काबुल के लिए एक नई अमेरिकी रणनीति को रेखांकित किया और भारत देश को आर्थिक रूप से एक मजबूत भूमिका वाले देश के रुप में उल्लेखित किया। इसके अलावा, अमेरिका के विदेश सचिव रॉक्स टिल्लर्सन, जब भारत यात्रा के दौरान नई दिल्ली आए थे, तब उन्होंने अफगानिस्तान में भारत की एक मजबूत आर्थिक उपस्थिति के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के समर्थन को मजबूत बनाने का प्रयास किया।
भारत, अफगानिस्तान का एक शीर्ष निर्यात गंतव्य है। 2016 में, भारत का अफगान निर्यात में लगभग 46 प्रतिशत हिस्से का योगदान था (कुल व्यापार में से अफगानिस्तान के 483 मिलियन डॉलर में से 220 मिलियन डॉलर भारत को गए)। हालांकि, आयात के मामले में भारत के लिए, अफगानिस्तान एक महत्वपूर्ण स्रोत नही है। उसी वर्ष आयात में, अफगानिस्तान का भारत में कुल योगदान, सिर्फ 2.0 प्रतिशत तथा पिछले वर्ष अफगानिस्तान में 3.77 अरब डॉलर का आयात हुआ, जिसमें सिर्फ 73.6 करोड़ डॉलर भारत से आए।
चाभर बंदरगाह का मार्ग, भारत को अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने और रणनीतिक रूप से सम्बन्ध स्थापित करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है, चाभर बंदरगाह पाकिस्तान सीमा से दूर पड़ता है, जो अपनी भूमि को अफगानिस्तान के साथ व्यापार करने के लिए इस्तेमाल नहीं करने देता हैं। काबुल और नई दिल्ली, दोनों के इस्लामाबाद के साथ कूटनीतिक संबंध अच्छे नहीं हैं। अफगानिस्तान में नौवाहन के माध्यम से गेहूँ निर्यात करना, विदेशों में भारत की बढ़ती शक्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। चाभर बंदरगाह के अतिरिक्त, भारत ने एक नए हवाई मार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान के साथ सीमित हवाई व्यापार की शुरुआत की है।
एक ओर चाभर बंदरगाह का व्यापारिक मार्ग अफगानिस्तान के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हुआ है, पर दूसरी ओर अफगानिस्तान की सुरक्षा की स्थिति निरन्तर नीचे गिरती जा रही है, जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। काबुल और अन्य प्रमुख अफगान शहरी केंद्रों तक पहुँचने के लिए व्यापारियों को पश्चिमी अफगानिस्तान के इलाकों से होकर गुजरना होगा, जिन इलाकों पर तालिबान और अन्य आतंकियों ने अपना अधिकार जमा रखा है। पाकिस्तान, जो कभी मूक युद्ध के दौरान अमेरिका का सहयोगी हुआ करता था, वहीं पाकिस्तान, अफगानिस्तान में हुए सोवियत संघ गृह युद्ध की हार के बाद, अब तालिबानियों का संरक्षक बन गया है।
मुजाहिद्दीन, जिसका अमेरिका ने समर्थन किया था, जातीय आधार पर विभाजित हो गया है। प्रभावी पश्तून और केन्द्र सरकार को समर्थन करने वाली कुछ जातियों (ताजिक, उज्बेक, हजारी जैसी अल्पसंख्यक जातियों) के बीच गृह युद्ध की शुरुआत हो गयी है। 1990 में, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात समेत पाकिस्तान ने भी तालिबान के इस्लामिक अमीरात को मान्यता दी थी।
9/11 के बाद, जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में युद्ध छेड़ा तो कई तालिबानी नेता अफगानिस्तान से पाकिस्तान चले गए, जहाँ उन नेताओं को पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के द्वारा खुफिया रुप से सेवा और सुरक्षा प्रदान की गई। कोई भी इस बात से इंकार नहीं कर सकता है कि पाकिस्तान, तालिबान को संरक्षण देने में लगा है। तालिबान से जुड़े विभिन्न आतंकवादी संगठनों ने कई बार पाकिस्तान में भी कई भयावह हमलों को अंजाम दिया है, लेकिन फिर भी पाकिस्तान ने उससे कोई सबक नहीं सीखा। आज भी पाकिस्तान में कई आतंकवादी संगठन ऐसे हैं, जो निरन्तर भारत और अफगानिस्तान जैसे देशों पर हमले करने की तैयारी में हैं।
पाकिस्तान, अफगानिस्तान पर भारत के प्रभाव से चिंतित है।
भारत एक ऐसे स्वतंत्र काबुल की इच्छा रखता है, जो इस्लामी अतिवादियों को बढ़ावा न देता हो। वही दूसरी ओर पाकिस्तान एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करने की इच्छा रखता है, जो अफगानिस्तान में भारत की महत्वाकांक्षाओं का विरोध कर सके।
हालांकि, भारत को अभी पूर्ण सावधानी बरतने की आवश्यकता है और पाकिस्तानियों द्वारा किए गए, किसी भी विध्वंसक प्रयास का डटकर सामना करने के लिए हर वक्त तैयार रहने की भी जरुरत है, लेकिन भारत का गेहूँ बम, पाकिस्तान को गोलियों की एक तेज बौछार की तरह लगा होगा। भारत ने पाकिस्तान को अपने एक सफल प्रयास से पीछे छोड़ दिया है। पाकिस्तान के पास मानचित्र पर उसके अनोखी स्थिति के कारण एक बड़ा हथियार था, जो अब भारत ने हमेशा के लिए बन्द कर दिया है।