हमारे देश में ट्रेन की पटरी उखड़ने से या मानव रहित ट्रेन फाटक जैसे अनेक कारणों से होनेवाले हादसों में अनेक लोगों को अपनी जान गवानी पड़ती है। इसपर सरकारें मुआवजा तो जारी कर देती है लेकिन इसे रोक पाने में असफल रही है और कोई ठोस और सक्षम कदम उठाने में कामयाब नहीं हो पाई है। लेकिन मोदी सरकार के सबसे कुशल और कार्य दक्ष मंत्रियों में से एक पीयूष गोयल इसपर लगातार काम कर नयी तकनीक भारतीय रेल के लिए जल्द ही उपयोग में लाने जा रहे है। हालाँकि इस तकनीक पर काम पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु के वक्त से शुरू हो चुका था लेकिन पीयूष गोयल ने इसे जल्द से जल्द पूरा करने में अहम रोल निभाया है।
पियूष गोयल को दो महीने पहले सितम्बर में रेल मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। इसके पहले उनपर ऊर्जा और बिजली विभाग की जिम्मेदारी थी और इस मंत्रालय में पियूष गोयल ने 18 हजार गांवों में जहाँ आज़ादी के बाद से बिजली नहीं पहुंची थी वहां बिजली पहुंचाकर बहुत ही उल्लेखनीय कार्य किया है और प्रधानमंत्री मोदी के ‘हर घर बिजली’ के सपने को समय रहते ही पूरा कर दिया है। ऐसे में प्रधानमंत्री को रेल विभाग में बढती अव्यवस्था को रोकने के लिए पियूष गोयल जैसे कुशल मंत्री की दरकार थी यही कारण था की उन्हें कोयले के साथ रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है।
इसरो (ISRO) की मदद से विकसित की गयी नई तकनीक
आने वाले समय दुर्घटनाओं को कम करने के लिए सरकार एक सराहनीय प्रयास कर रही है। इसके चलते भारतीय रेल के लिए इसरो ने उपग्रह आधारित चिप प्रणाली विकसित की है जो अब सडक मार्ग से सफर करने वाले लोगों को मानव रहित रेल फाटकों पर आगाह करेगी कि ट्रेन आ रही है। रेलवे ट्रेनों के इंजनों में इसरो में विकसित इंटिग्रेटेड सर्किट (आईसी) चिप लगाएगा। इससे जब ट्रेन किसी मानव रहित फाटक के नजदीक पहुंचेगी तो हूटर सडक मार्ग उपयोग करने वाले लोगों को आगाह करेगा। गुवाहाटी और मुंबई के लिए राजधानी के रेल मार्गों पर 20 मानव रहित रेल फाटकों पर हुटर लगाए जाएंगे। परियोजना के अनुसार चरण बद्ध तरीके से इस प्रौद्योगिकी से और भी ट्रेनों को सुसज्जित किया जाएगा।
रेल मंत्रालय और इसरो के बीच हुआ था समझौता
दरअसल, मानव रहित रेल फाटकों पर लोगों की सुरक्षा रेलवे के लिए एक बडी चिंता है और रेलवे इससे निबटने के लिए विभिन्न तरीके खोज रहा था। अभी देश में तकरीबन 10 हजार मानव-रहित फाटक हैं और रेलवे से जुडे हादसों में से तकरीबन 40 फीसद इनके ही कारण हो रहे हैं।
रेल मंत्रालय और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने 17 मार्च 2016 को रिमोट सेंसिंग और ग्राफ़िक सूचना प्रणाली के उपयोग से सम्बंधित एक ज्ञापन के समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। इस करार के मुताबिक इसरो मानव रहित समपार एवं अन्य उपयोग के लिए तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) बनाएगा। अंतरिक्ष तकनीक का इस्तेमाल, रिमोट सेंसिंग तथा भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) आधारित सरकारी ऐप्लिकेशन निर्माण के लिए रेल मंत्री ने अपने बजट में विशेष उल्लेख किया था।
कैसे कार्य करेगी रिमोट सेंसिंग युक्त यह तकनीक?
इसके तहत फाटकों से करीब 500 मीटर पहले आईसी चिप के माध्यम से हूटर सक्रिय हो जाएगा। इससे सडक मार्ग का उपयोग कर रहे लोग और उनके साथ ही फाटक के नजदीक ट्रेन चालक भी सचेत हो जाएगा। जैसे -जैसे ट्रेन रेल फाटक के नजदीक पहुंचेगी, हूटर की आवाज तेज होती जाएगी। ट्रेन के पार होते ही हूटर शांत हो जाएगा। सडक मार्ग उपयोग करने वालों को सचेत करने के साथ ही उपग्रह आधारित प्रणाली का उपयोग ट्रेन पर निगाह रखने और रियल-टाइम के आधार पर उसके आवागमन के बारे में बताने के लिए भी होगा। इस प्रणाली से मुसाफिरों और अन्य लोगों को बहुत मदद मिलेगी क्योंकि अभी ट्रेन की स्थिति और आवाजाही का पता लगाने के लिए ऐसी व्यवस्था भारत में नहीं है। फिलहाल यह काम मैन्युअली किया जाता है।
इसके अलावा यदि असावधानी के कारण कोई दो गाड़ियाँ एक ही साथ एक ही पटरी पर आ जाती हैं तो चालक को समय रहते इस बात की सूचना देकर दुर्घटनाओं को रोका भी जा सकेगा। मानव रहित फाटक और क्रासिंग आदि पर भी सेटेलाइट के जरिये ही निगरानी रहेगी। दरअसल, इसरो रिमोट सेंसिस के मामले में दुनिया में अव्वल माना जाता है। इसरो की मदद से भारतीय रेलवे ऐसा सिस्टम डेवलप करने की योजना बना रही है, जिससे पूरे देश में इस बात का पता रखा जा सके कि कौन सी ट्रेन किस पटरी पर किस स्टेशन के पास से होकर निकल रही है।
सात उपग्रहों की सहायता से रखी जाएगी ट्रेनों पर नजर
इसके लिए पांच उपग्रहों को इसरो अन्तरिक्ष में स्थापित कर चुका है, लेकिन अभी भी इस श्रृंखला के दो और उपग्रहों का प्रक्षेपण शेष है। इसके उपरांत ही इसरो की ये स्वदेशी जीपीएस तकनीक एकदम बेहतर ढंग से काम करने में सक्षम हो सकेगी। अब इसरो ने रेलवे को जो तकनीकी सहयोग देने का भरोसा दिया है, वो सब संभवतः इसी जीपीएस तकनीक पर आधारित होंगे। ऐसे में, यह देखना होगा कि इस स्वदेशी जीपीएस तकनीक द्वारा प्रदत्त सहयोग रेलवे के लिए कितने गुणवत्ता पूर्ण ढंग से लाभकारी सिद्ध होते हैं। चूंकि भारतीय रेल का नेटवर्क बहुत बड़ा है, इस नाते इसे आधुनिक बनाना इसरो के लिए काफी चुनौती पूर्ण होगा।
पर्याप्त धन न होने के कारण ये कार्य लम्बे समय से अटका हुआ था। ऐसे में इसरो के साथ हुआ भारतीय रेल का यह समझौता एक अत्यंत समझदारी युक्त कदम है। हालांकि अभी इसे सिर्फ एक शुरुआत ही माना जाना चाहिए। क्योंकि, इसरो ये सहयोग करने में यदि आज सक्षम हो पा रहा है तो इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि इसरो स्वदेशी जीपीएस तकनीक पूरी तरह से हासिल करने के काफी निकट पहुँच चुका है। इसरो की इस तकनीक की मदद से रेलवे में सुधार करने और नजर रखकर होनेवाले हादसों में भारी मात्रा में कमी आएगी और वर्ल्ड क्लास तकनीक के इस्तेमाल से सुरक्षा की दृष्टि से भी भारतीय रेलवे के अच्छे दिन जल्द ही आने वाले है।