29 नवंबर 2017 उम्मीद से और भी ज्यादा रोमांचक हो गया। नेहरू के वंशज, राहुल गाँधी ने हिंदुओं के बीच अपनी छवि को सुधारने और भाजपा के हिंदुत्व के जवाब में अपने एजेंडे “सॉफ्ट हिंदुत्व” को फैलाने के लिए सोमनाथ मंदिर का दौरा किया । लेकिन, उनका यह “सॉफ्ट हिंदुत्व” एजेंडा हिंदू सभ्यता पर दशकों से चले आ रहे कट्टरपंथी शासन के लिए अपनी बुराइयों को छिपाने वाला महज एक मुखौटा है। दुर्भाग्य से उनका हिंदूओं को लुभाने वाला यह फॉर्मूला राजनीतिक दृष्टिकोण से उनकी सबसे बडी चूक बन गई। एक ऐसा रजिस्टर जिसमें मंदिर में प्रवेश करने वाले सभी गैर-हिंदुओं के नामों की सूची रखी जाती है, उस रजिस्टर में राहुल गाँधी और उनके सहयोगी के नाम पंजीकृत किए गए। कांग्रेस इस प्रकरण में अपनी गलती न मानते हुए केवल राजनीतिक लाभ पाने की मंशा से भाजपा पर आरोप मढने लगे , लेकिन तथ्य यह है कि राहुल गाँधी ने न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख को सार्वजनिक रूप से गलत साबित नहीं किया है, जिसमें उन्हें कैथोलिक अनुयायी के रूप में वर्णित किया गया है।
कांग्रेस पार्टी ने, अपने नुकसान की भरपाई करने के प्रयास पर जोर देते हुए कहा कि राहुल गाँधी केवल एक हिंदू ही नहीं बल्कि एक जनेऊधारी हिंदू भी हैं। यह दावा थोड़ा सा संदेहास्पद लगता है, क्योंकि उनकी दादी इंदिरा गाँधी ने पारसी जाति में शादी करके ‘गैर-हिंदू धर्म’ को अपनाया था, इसलिए उन्हें पुरी के जगन्नाथ मंदिर में जाने की इजाजत नहीं दी गई थी। इस प्रकार, स्वाभाविक रूप से यह सिद्ध होता है कि राजीव गाँधी हिंदू नहीं थे और यह बहुत ही चौंकाने वाली बात है कि एक गैर-हिंदू पिता और कैथोलिक माँ का बेटा जनेऊ-धारी हिंदू कैसे हो सकता है।
उदारवादी लोग और उनके समर्थक जो कि राहुल गाँधी को धर्मनिरपेक्ष भारत को फासीवादी शक्तियों से बचाने के लिए चुने हुए मसीहा के रूप में देखते हैं, वे अब इस बात पर टेसुएं बहा रहे हैं कि एक नेता का धर्म उसका व्यक्तिगत मामला है तथा उसे जाँच का विषय नहीं होना चाहिए।
कुछ लोग तो यहाँ तक कह रहे हैं कि धर्म को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए और इसके बाद इन्हीं लोगों ने ‘अल्पसंख्यक खतरे में’ जैसा अभियान चलाया, साथ ही कॉलेज के मुद्दों के चलते एक लड़के द्वारा किये गए आत्महत्या का राजनीतिकरण किया और पहलू खान के मुद्दे को भी बढ़ा चढ़ाकर दर्शाया जो कि शायद एक गो-तस्कर था, सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका धर्म इनका हथियार था। सच्चाई यह है कि अगर उदारवादी सोच को आगे बढ़ाने के लिए धर्म का इस्तेमाल करना ज़रूरी हो, तो वे इसे दोनों हाथों से पकड़ लेते हैं और यदि यही अगर हिंदुओं के हित में हो, तो यही मामला अचानक एक निजी मामले में बदल जाता है।
एक राजनेता का धर्म एक गंभीर विषय है, विशेषकर एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में एक चुने हुए व्यक्ति के रूप में उसकी धर्मों के प्रति क्या विचारधारा है, यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्या एक आई.एस.आई.एस (ISIS) सहानुभूतिवादी को लोकतांत्रिक चुनाव लड़ने देना चाहिए, क्या तब कोई भी यह कहेगा कि उनका धर्म एक निजी मामला है? बिल्कुल नहीं।
शायद कुछ लोग चाहते हैं कि हम राहुल गाँधी के धार्मिक विश्वास को अनदेखा कर दें, क्योंकि यह निःसंदेह कई समस्याओं को उजागर कर सकता है । वास्तव में, राहुल गाँधी की धार्मिक आस्था कुछ सांप्रदायिक कानूनों का व्याख्यान कर सकती है, जो कि सोनिया गाँधी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार द्वारा हमारी सभ्यता की नींव को कमजोर करने के लिए लागू की गयी हैं ।
हाल के समय में राहुल गाँधी मंदिरों के दौरे पर रहे हैं। लेकिन एक समय था जब इसी व्यक्ति ने संयुक्त राज्य अमेरिका से कहा था कि हिंदू कट्टरवाद, लश्कर-ए-तैयबा की तुलना में भारत के लिए ज्यादा बड़ा खतरा है। ऐसा हो सकता है कि राहुल गांधी के धार्मिक विश्वास ने उन्हें इस तरह से सोचने पर मजबूर किया हो? और उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि हिंदू कट्टरवाद उनके अब्राह्मिक भाइयों की अपेक्षा में बड़ा खतरा था। इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए, कि यह सोनिया गांधी की यूपीए सरकार थी जिसने आर.टी.ई जैसे सांप्रदायिक कानून लागू किए थे, जिसने ईसाई पादरियों के अपने निजी नि: शुल्क स्कूलों को चलाने के लिए हजारों हिंदू स्कूलों को बंद करने के लिए प्रेरित किया। ऐसा भी हो सकता है कि राहुल गांधी की विचारधारा बताती है कि क्यों सोनिया के नेतृत्व वाली यूपीए ने “एन्डोमेंट ऐक्ट” को लागू किया जो धर्मनिरपेक्ष राज्य को हमारे मंदिरों को लूटने और हमारे देवताओं के निवास स्थान को अपवित्र करने की शक्ति प्रदान करता है।
यूपीए ने 2008 की शुरुआत में एक ऐसी कहानी तैयार करने की कोशिश की जिसमें मुंबई हमले के लिए आरएसएस को दोषी ठहराया गया, जो कि अब किसी से छुपी नहीं है । और यह भी रहस्य नहीं है कि यूपीए ने हिंदू धर्म को हिन्दू आतंकवाद के रूप में पेश किया। यूपीए सरकार के दौरान, ईसाई पादरियों द्वारा सामूहिक रूप से किये जाने वाले धर्म-परिवर्तन को नज़रअंदाज़ किया। यूपीए ने पूरी तरह से इस खतरे को नजरंदाज कर दिया जो कि भारत में गैर-कानूनी ढंग से रहने वाले बंगलादेशी और रोहिंग्याओं की वजह से उत्पन्न हुआ और साथ ही उन्हें वापस अपने देश भेजने के लिए भी तैयार नहीं थे । इससे राष्ट्र में एक ऐसे घटिया धर्मनिरपेक्ष भाव कि उत्पत्ति हुई जो कि इस भारत राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाले विचार को ही तोड़ता है।
राहुल गाँधी के धर्म का ऐसे इस नाटकीय तरीके से उजागर होना, कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव में ताबूत में अंतिम कील साबित हो सकता है।
कुछ लोग इसे विचित्र संयोग या अन्य लोग दैवीय प्रतिशोध कह सकते हैं कि जिस मंदिर के जवाहर लाल नेहरू कड़े विरोधी थे, वह उनके वंश की राजनीतिक उम्मीदों में बड़ा खतरा बन गया। कांग्रेस अपने नुकसान की भरपाई करने का हर संभव प्रयास कर रही है। हालांकि, इस बात की संभावना कम है कि कांग्रेस इसकी भरपाई कर पाए। ऐसा लगता है कि कांग्रेस के लिए राहुल गाँधी अभिशाप हैं, जिससे आगामी कई वर्षों तक कांग्रेस ग्रसित रह सकती है। ऐसा कहा जा सकता है कि राजनीतिक विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए भगवान भी मोदी के साथ हैं।