18 दिसंबर 2017 को दो राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के परिणाम घोषित किए गए। इन दोनों राज्यों के चुनावों के दौरान, सभी की निगाहें मात्र गुजरात चुनावों के नतीजे पर टिकी हुई थीं, क्योंकि गुजरात में पहली बार चुनाव को लेकर इस तरह का उच्च प्रचार अभियान देखने को मिला, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के नए अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा भी पूरे गुजरात राज्य में कई रैलियों का आयोजन किया गया। गुजरात, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का एक गढ़ है जिसकी पिछले 22 वर्षों से गुजरात राज्य में सरकार है। कांग्रेस ने इस 22 साल पुराने सत्ता-विरोधी फैक्टर को भुनाने के लिए सभी प्रकार की रणनीतियाँ बनाने की कोशिश की, लेकिन अंततः इन सभी कोशिशों के बावजूद कांग्रेस, बीजेपी को हराने में नाकाम रही। बीजेपी, जिसने विधानसभा चुनावों के दौरान 182 सीटों में से 99 सीटें जीतकर गुजरात में अपनी सत्ता बनाए रखी और सिर्फ एक सीट के अंतर से अपने शतक से चूक गई।
चाहे वह प्रचार का चरण था या चुनाव का चरण था या परिणाम का दिन था, गुजरात इस पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान एक प्रमुख केंद्र बिन्दु बना रहा और वहीं हिमाचल प्रदेश को चुनाव के सभी चरणों के दौरान काफी हद तक नजरअंदाज किया गया। हालांकि, हिमाचल प्रदेश चुनाव के परिणाम गुजरात चुनाव के मुकाबले कहीं ज्यादा उल्लेखनीय थे। क्यों? क्योंकि हिमाचल प्रदेश उन सभी राज्यों की सूची में शामिल होता है जहां कांग्रेस, भाजपा के समक्ष अपनी समस्त शक्ति खो चुकी है। हिमाचल प्रदेश चुनाव में कांग्रेस को मिली एक करारी हार के बाद कांग्रेस अब केवल चार राज्यों की सत्ता में ही सिमट कर रह गई है, जिसमें कर्नाटक, पंजाब, मेघालय और मिजोरम शामिल हैं। दूसरी तरफ भाजपा है जो देश भर के 19 राज्यों में सत्ता में है, उनमें से ज्यादातर राज्यों में भाजपा की खुद की सरकार है और कुछ राज्यों, जैसे कि आंध्र प्रदेश, बिहार और जम्मू-कश्मीर, में गठबंधन की सरकार है।
भाजपा ने एक अनोखा रिकॉर्ड अपने नाम किया – यह पिछले 24 वर्षों के दौरान पहली बार हुआ है कि जब पूरे देश के 19 राज्यों में एक ही पार्टी या एक ही राजनीतिक गठबंधन सत्ता में है।
यह देखना वास्तव में अविश्वसनीय है कि मात्र तीन सालों में भाजपा इस तरह से कैसे उभरी है? 2014 के आम चुनाव से पहले, बीजेपी सिर्फ निम्नलिखित राज्यों जैसे कि राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, गोवा और छत्तीसगढ़ में ही सत्ता में थी और पंजाब, नागालैंड और सिक्किम में भाजपा की गठबंधन की सरकार थी। इस दौरान, कांग्रेस की सरकार 13 राज्यों में थी। 2014 के आम चुनावों के बाद, देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 18 बार चुनावों का आयोजन हुआ है और जिसमें से 11 चुनावों में भाजपा विजयी रही है। कांग्रेस इन 18 राज्यों में से केवल दो राज्यों अर्थात पंजाब और पांडिचेरी में ही जीत हासिल करने में सफल हो सकी है।
भारत के शीर्ष 10 सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, जैसे उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। आंध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ भाजपा की एक छोटी भागीदारी के साथ गठबंधन की सरकार है।
देश के दस सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों की सूची में कर्नाटक एकमात्र ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस की सरकार है। इस सूची में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु दो ऐसे बड़े राज्य हैं जहां कांग्रेस या भाजपा किसी की भी सरकार नहीं है। तृणमूल कांग्रेस (तृणमूल) की पश्चिम बंगाल में सरकार है और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके, अन्ना द्रमुक) की तमिलनाडु में सरकार है।
इसके अलावा, भाजपा तब भी सरकार बनाने में सक्षम रही जब परिस्थितियां इसके विपरीत थीं। उदाहरण के लिए, देश का उत्तर पूर्वी हिस्सा एक ऐसा क्षेत्र रहा है जहां सत्ता के मामले में भाजपा लगभग न के बराबर ही रही है। हालांकि आज उत्तर पूर्वी सात राज्यों में से असम में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ साथ हाल ही में गठित पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) का भी एक हिस्सा है, जिसमें भाजपा नेता हिमांता विश्व शर्मा संयोजक की भूमिका निभा रहे हैं। हालाँकि भाजपा के पक्ष में व्यापक परिणाम नहीं आए लेकिन फिर भी यह काग्रेस को चकमा देकर गोवा, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में सरकार बनाने में सक्षम रहा।
सभी राज्यों का चुनाव महत्वपूर्ण है और भाजपा ने सभी राज्यों के चुनावों को गंभीरता से लिया है। मोदी सरकार के लिए शुरूआत में कुछ नए सुधार लागू करने में एकमात्र समस्या यह थी कि कांग्रेस का राज्यसभा में बहुमत था। इस बहुमत के कारण, अक्सर विपक्षी दलों ने संसद की कार्यवाही को बाधित किया जिसके परिणामस्वरूप कई बिलों को लागू नहीं किया जा सका। प्रत्येक राज्य के चुनाव के साथ, भाजपा को राज्यसभा में अपनी ताकत बढ़ाने का अवसर मिला है जो समान नागरिक संहिता जैसे सुधारों को लागू करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
नीतीश कुमार द्वारा महागठबंधन को तोड़े जाने के बाद, जब बिहार में उन्होंने सरकार बनाने के लिए भाजपा को आमंत्रित किया तब भारत की 67 प्रतिशत जनसंख्या भाजपा के शासन में आ गया। हाल ही में हुई हिमाचल प्रदेश की जीत के कारण अब यह प्रतिशत बढ़कर 67.57 प्रतिशत हो गया है।
ठीक इसके विपरीत, कांग्रेस ऐसी हालत में आ गई है जहां काग्रेस की खुद की सरकार सिर्फ दो बड़े राज्यों कर्नाटक और पंजाब में रह गई है। 2018 में कर्नाटक में चुनाव होने जा रहे हैं जो 2019 में लोकसभा चुनावों से पहले चुनावी दंगल में उतरने वाला पहला बड़ा राज्य होगा।
2018 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, और त्रिपुरा राज्यों में होने वाले चुनावों को देखना भी काफी दिलचस्प रहेगा। फिलहाल, जहाँ छत्तीसगढ़, राजस्थान और नागालैंड में भाजपा की सरकार है। वहीं मेघालय और मिजोरम में कांग्रेस सत्ता में है। और त्रिपुरा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सरकार है। अगर अगला साल कांग्रेस के लिए कर्नाटक में हार के साथ शुरू होता है, तो 2018 कांग्रेस पार्टी के लिए और भी अधिक मुश्किल वर्ष साबित होगा। जहां तक भाजपा का सवाल है, तो 2018, भाजपा को देश की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक पार्टी के रूप में अपनी स्थिति को और सुदृढ़ करने का अवसर देता है। 2018 निश्चित रूप से एक और महत्वपूर्ण वर्ष होगा और, वर्ष 2018 में पूरे देश में आयोजित होने वाले चुनाव, 2019 लोक सभा चुनावों के लिए अग्र-दूत होने का काम करेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कई मौकों पर कांग्रेस मुक्त भारत के बारे में बात की है। कांग्रेस मुक्त भारत के लक्ष्य को पाने में केवल चार राज्य शेष रह गए हैं। क्या भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के लक्ष्य को हासिल करने में सक्षम होगी? ठीक है, हमें 2018 में पता चल जाएगा।