गुजरात चुनाव प्रचार आखिरी चरण में है और दो कट्टर विरोधी दलों, कांग्रेस और भाजपा के दांव अपने चरम पर हैं। स्थानीय निकाय चुनाव और विश्वविद्यालय चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विश्वसनीय सिपहसलार अमित शाह के लिए एक कसौटी के रूप में पेश किया जाता रहा है। इसलिए गुजरात में सीटों या वोटों की संख्या के बंटवारे में एक छोटी सी कमी को दोनों के लिए एक असफलता के रूप में देखा जाएगा और जीएसटी एवं विमुद्रीकरण के खिलाफ आम आदमी के गुस्से के रूप में पेश किया जाएगा। गुजरात, प्रधानमंत्री मोदी का घरेलू मैदान है और बीजेपी पिछले 22 वर्षों से इस राज्य पर शासन कर रही है। करिश्माई पूर्व मुख्यमंत्री मोदी का स्थान प्राप्त करने में न तो आनंदीबेन पटेल समर्थ हो पाए और न ही मुख्यमंत्री विजय रुपानी, और विद्वान इसे भाजपा के व्यूह में कमजोर स्थान के रूप में देखते हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस २०१४ के बाद से हारती ही रही है। राज-वंश के विभिन्न कुकर्मों को व्यापक रूप से उजागर हुए है, और यह राज परिवार के खिलाफ चल रहे जनता के गुस्से का ही नतीजा है कि कांग्रेस ने एक के बाद एक राज्य में अपना शासन खोया है। कांग्रेस के नए राजा जिनका राज्याभिषेक कल ही हुआ है, उन्होंने या तो अपनी बुद्धि का प्रदर्शन सही तरीके से अभी तक नहीं किया है या वे बुद्धिहीन ही हैं।
जहाँ तक चुनाव प्रचार की बात है, गुजरात चुनाव प्रचार भी विकास के नाम शुरू होने वाले किसी अन्य अभियान की तरह ये अभियान भी सेक्स सीडी के साथ गंदा हो गया, वोट बैंक के लिए मुसलमानों के घरों चिह्नित किये गए और फिर ये अभियान राहुल गाँधी के अकस्माक जनेऊधारी ब्राह्मण बनने के बाद एक अलग ही स्तर पर चला गया।
इस सब के बीच में, द वायर और द कारवां जैसे मीडिया संगठन चुनाव के महत्वपूर्ण साझेदार बन गए। इन मीडिया संगठनों को नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को किसी भी कीमत पर बदनाम करने का काम सौंपा गया। वे मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए अकसर अधकचरे और घटिया लेख लिखते रहते हैं। इन लेखों में विश्वसनीयता की कमी होने के बावजूद, कांग्रेस और मोदी से घृणा करने वालों और प्रशांत भूषण जैसे नेताओं द्वारा इन्हें बढ़ावा दिया जाता है।
ऐसा ही एक मामला है जस्टिस लोया की मृत्यु का – जस्टिस लोया की मृत्यु के ३ साल बाद, द कारवां नामक मीडिया संगठन द्वारा इस मामले को पुन: खोलने का प्रयास किया गया, जस्टिस लोया, जो कि अपराधी सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे।
सबसे पहली बात सोहराबुद्दीन शेख कौन था? सोहराबुद्दीन एक खतरनाक और कुख्यात अपराधी था। उसकी मौत के समय उसके खिलाफ ६० से अधिक मामले दर्ज थे। उसके खिलाफ गुजरात और राजस्थान की संगमरमर फैक्ट्रियों से जबरन वसूली करने, हथियारों की तस्करी करने और हत्याओं के कई मामले दर्ज थे। इसके अलावा उसके छोटा दाऊद और अब्दुल लतीफ गिरोह के साथ काफी अच्छे संबंध थे, जो दोनों ही भारत के अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम के करीबी थे। सोहराबुद्दीन वैश्विक आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से भी जुड़ा हुआ था और उस पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए लश्कर से बातचीत करने का भी आरोप भी था। २३ नवंबर २००५ को सोहराबुद्दीन अपनी पत्नी कौसर बी के साथ बस में यात्रा करते हुए गुजरात एटीएस द्वारा पकड़ा गया। कथित तौर पर, पकड़े जाने के तीन दिन बाद, एक नकली मुठभेड़ में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के कहने पर उसकी हत्या कर दी गई। अमित शाह उस समय गुजरात के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री थे।
इस हाई प्रोफाइल मामले की सुनवाई जस्टिस ब्रिजगोपाल हरिकशन लोया ने की थी। वह मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत की अध्यक्षता कर रहे थे। जस्टिस लोया का १ दिसंबर २०१४ को सुबह ही निधन हो गया था, जब वे अपने सहयोगी की बेटी की शादी में शामिल होने नागपुर गए थे। करीब सुबह ४ बजे उन्हें स्वास्थ्य सम्बंधी समस्या का एहसास हुआ और इसके बाद उन्हें दाण्डे अस्ताल ले जाया गया, जो कि, जिस अतिथिगृह में लोया रुके थे वहां से ३ किलोमीटर दूर था। जब उन्हें अस्पताल लाया गया तब अस्पताल के मालिक डॉ पी जी दाण्डे ने पुष्टि की जस्टिस लोया अभी जीवित हैं, उनका ईसीजी परीक्षण किया गया, जिसमें उनके टी स्पाईक को देखकर उन्हे मेडीट्रीना में भर्ती कराने की सलाह दी गई, जो एक ह्रदय रोग चिकित्सालय था। मेडीट्रीना अस्पताल पहुँचने के बाद जस्टिस लोया की मौत हो गई थी। उनका पोस्टमार्टम किया गया और रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि जस्टिस लोया की मृत्यु की वास्तविक वजह दिल का दौरा ही थी। अब ३ साल के बाद जब गुजरात में विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है, तब हमें कारवां की एक रिपोर्ट प्राप्त हुई है, जिसमें कहा गया है कि जस्टिस लोया के पिता और बहन को उनकी मौत के पीछे संदेह है और वे इस केस की दोबारा जांच करवाना चाहते हैं। इस रिपोर्ट पर जस्टिस लोया के बेटे अनुज ने शीघ्र ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उनके पिता की मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई है और उन्हें विश्वास है कि उनके पिता की मौत के पीछे कोई साजिश नहीं है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कारवां द्वारा लगाया गया आरोप गुजरात के महत्वपूर्ण चुनावों में केवल अमित शाह को अपराधी साबित करने का एक प्रयास मात्र था।
द वायर और कारवां के संचालक क्रमशः सिद्धार्थ वरदराजन और हरतोश सिंह बाल हैं। ये दो मोदी से घृणा करने वाले पत्रकारों के रूप में पहले से ही विख्यात हैं, भारतीय राजनीति के क्षेत्र से मोदी और अमित शाह को समाप्त कर, कांग्रेस को वापस सत्ता में लाने के लिए और मोदी तथा शाह को सत्ता से हटाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे कांग्रेस की लहर वापस लाने के लिए कुछ विस्फोटक खबरें लाकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनकी ये सभी घटिया चालें जनता के सामने उजागर होती जा रहीं हैं।
आश्चर्य होता है कि क्यों जब सोहराबुद्दीन जैसा कोई आतंकवादी या खतरनाक अपराधी मार दिया जाता है तब कुछ लोग चिल्ल-पों क्यों मचाने लगते हैं। अगर सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ को फर्जी मुठभेड़ों में भी मारा गया है, तो कम से कम इतना तो जरुर समझना चाहिए कि देश से उन जैसे दो अपराधी ही तो कम हुए!