मोदी सरकार की नयी औद्योगिक नीति

औद्योगिक नीति मोदी

२०१४ के ऐतिहासिक चुनाव अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में जोर देते हुए कहा था कि, “मेरा मानना है कि सरकार को व्यापार नहीं करना चाहिए और उनका ध्यान ‘मिनिमम गवर्मेंट एंड मैक्सिमम गवर्नेंस’ पर होना चाहिए”। जिसमें उन्होंने संकेत दिया कि वे अर्थव्यवस्था को राज्य नियंत्रण के बंधन से और अधिक मुक्त करने के लिए तैयार कर रहे हैं, जिन नियंत्रणों की वज़ह से दशकों तक भारत की अर्थव्यवस्था काफी धीमी रही है। यह नीति महात्मा गांधी की स्वदेशी विचारधारा की पक्षसमर्थक है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पंचायती राज नीति का भी समर्थन करती है। मोदी जी को सत्ता में आए हुए तीन साल हो चुके हैं। आर्थिक मोर्चे पर कई सुधार हुए हैं, जिससे सत्ता के विकेंद्रीकरण को बढ़ावा मिला है और विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई के निवेश में वृद्धि करके कई अन्य विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के लिए अधिक निजीकरण की अनुमति देकर, बाजार को और भी स्वतंत्र बनाया गया है। हाल ही में, नरेंद्र मोदी सरकार ने एक नए सुधार की घोषणा की है जो सरकार द्वारा सबसे बड़ा आर्थिक सुधार हो सकता है। हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने पीटीआई को बताया कि उभरते हुए क्षेत्रों को बढ़ावा देने की एक नई औद्योगिक नीति अगले साल की शुरुआत में जारी की जाएगी।

यह नई औद्योगिक नीति तीन चीजें प्राप्त करने के लिए लागू की जाएगी। सबसे पहले यह नियमों को कम करेगी, दूसरा यह मौजूदा उद्योग के आधुनिकीकरण को बढ़ावा देगी और तीसरा यह “नए उभरते उद्योगों को ध्यान में रखेगी।“

परिवर्तन : व्यवसायी से समन्वयक 

जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि सरकार का उद्देश्य मात्र व्यापार करना नहीं है। एयर इंडिया की बिक्री सहित कई क्षेत्रों में निजीकरण यह प्रदर्शित करता है कि वर्तमान सरकार वास्तव में ऐसा करने के लिए तैयार है। इसके अलावा, भारत सरकार द्वारा उद्योगों के लिए नियमों को कम करना भविष्य में इस वादे को पूरा करने में बड़ा और साहसिक कदम साबित होगा। उद्योगों के लिए नियमों को कम करना न केवल सरकार को व्यवसायिक भूमिका से समन्वयक की भूमिका में ले जायेगा, बल्कि इस कदम से स्वत: ही देश में रोजगार के कई नए अवसर पैदा होंगे। देश में कम नियमों के साथ कई नए संगठन बनाए जाएंगे और पुराने संगठनों को अपने संचालन में विस्तार करने की अनुमति दी जाएगी।

भारत सरकार के नियंत्रण में बहुत सारे व्यवसाय हैं, जैसे कि एयर इंडिया, बीएसएनएल, बीएचइएल, विभिन्न बैंक, रेलवे, रक्षा आदि जो कि कभी न खत्म होने वाली सूची के अन्तर्गत आते हैं। भारत सरकार को हर चीज का निजीकरण नहीं करना चाहिए (खासतौर पर रक्षा संबंधी कार्यों में निजीकरण कभी नहीं और कभी भी नहीं किया जाना चाहिए) हालांकि, अधिकांश व्यवसायों का निजीकरण किया जाना चाहिए, लेकिन या तो पूरी तरह से या तो निजी-सार्वजनिक भागीदारी के रुप में। जैसा कि नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत सरकार को व्यवसायी नहीं होना चाहिए, लेकिन भारत की सरकार व्यापार में सुविधा प्रदान करने वाली सरकार होनी चाहिए।

मौजूदा उद्योग का आधुनिकीकरण

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से भारत के विभिन्न क्षेत्रों की रैंकों में इजाफा हुआ है, उदाहरण के लिए, “व्यापार करने में आसानी की सूची में हाल ही में भारत ने १४२ वें स्थान से १००वें स्थान पर अपनी जगह बनाई हैजीएसटी, अन्य सुधारों के बीच स्टार्ट-अप योजनाओं में पहले से ही नियमों को बदलकर मौजूदा उद्योगों के आधुनिकीकरण में सहायता करने के लिए लागू हो चुकी है। हालांकि, इन सुधारों के बावजूद भी गुंजाईश रह जाती है और अधिकांश उद्योग अभी भी नियमों और अन्य सरकारी कानूनों के कारण पीछे रह गये हैं। देश में वर्तमान समय में मौजूद पुराने स.माजवादी युग के नियमों को बदलना, संभवतः भारत को सही मायने में प्रगतिशील कतार में शामिल करने के लिए अगला कदम होगा।

कठोर नियमों और विनियमों ने कई उद्योगों के लिए आधुनिकीकरण प्राप्त करना मुश्किल बना दिया था। यह कई अलग-अलग क्षेत्रों में एक आम समस्या है। सड़क निर्माण और स्टील जैसे कई उद्योगों बहुत मुश्किल है। पिछली सरकारों के अत्यधिक हस्तक्षेप और अनावश्यक बाधाओं के साथ लगभग हर परियोजना को रोक दिया जाता था जिससे बैंकों के ऋण की भरपाई नहीं हो पाती थी। तब फिर बैंकें दुसरे ऋण देने में असहजता महसूस करती थी, क्योंकि उन्हें उद्योगों पर विश्वास नहीं रहता था।

इसलिए भले ही कंपनियां भूमि प्राप्त करने में सक्षम हों जातीं थी, लेकिन वित्तपोषण की कमी के कारण उनकी परियोजना को बंद करना पड़ता था। इस समस्या को पिछले शासन की एक भेंट के रूप में ही देखा जा सकता है, इन्हीं के सुस्त दृष्टिकोण के कारण एनपीए में वृद्धि हुई थी।

बुनियादी ढाँचा अब आशाजनक ट्रैक पर है, नितिन गडकरी के सफल नेतृत्व के वजह से, लेकिन अन्य क्षेत्रों की पुरानी समस्यायें अभी भी काफी हद तक पहले जैसी ही हैं, रक्षा क्षेत्र इन्हीं में से एक उदाहरण है। एफडीआई में वृद्धि के बावजूद मोदी प्रशासन को पिछले तीन वर्षों में कुछ अनावश्यक और पेचीदा नियमों के कारण कम से कम 25 अरब डॉलर की निविदाएं रद्द करनी पड़ीं।

सरलीकरण और विनियमों में कमी के कारण निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे उद्योगों के आधुनिकीकरण में तेजी लाने और निजी क्षेत्र के विकास में मदद मिलेगी। औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने हाल ही में अगस्त में एक नई औद्योगिक नीति का प्रस्ताव रखा है जिससे उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दो दशकों तक रोजगार के अवसर पैदा होंगे और विदेशी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिलेगा तथा सालाना 100 अरब एफडीआई का निवेश होगा।

यह कोई भी नहीं जानता कि नियमों को आसान बनाने के बारे में मोदी सरकार क्या करेगी। यह सुधार बड़े या फिर मामूली भी हो सकता है। हालांकि, सरकार की मनोदशा को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह कदम एक गेमचेंजर होने की क्षमता रखता है। प्रतिभाशाली सुरेश प्रभु के कुशल संचालन में यह सुधार, आर्थिक समाजवाद से दूर एक बड़ी छलांग और विकेंद्रीकरण एवं स्वतंत्र अर्थव्यवस्था की ओर के लिए देश का एक छोटा सा कदम हो सकता है!

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