22 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भी, 49% के बढे हुए वोट-शेयर के साथ भाजपा ने एक बार फिर गुजरात में धमाकेदार जीत हासिल की। ये स्पष्ट रूप से निकट इतिहास में लड़ा गया सबसे ज्यादा कांटे की टक्कर का चुनाव था। मोदी-शाह कांग्रेस और उनके बहुरंगी जातिगत गठबंधन के उत्साही चुनाव प्रचार के बावजूद अपनी सत्ता को बचाने में सफल रहे।
इसलिए इस समय उनके पास चिंतित होने की कोई वज़ह नहीं है सिवाय एक प्रश्न के :
गुजरात के अगले मुख्यमंत्री कौन बनने जा रहे है?
चलिए प्रमुख दावेदारों पर एक नज़र डालते हैं:
1.) वजूभाई वाला: वजूभाई वाला और प्रधानमंत्री मोदी के आपस में बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। 2001 में, केशुभाई पटेल और भाजपा के बीच विवाद हुआ और पार्टी ने उनकी जगह मोदी को प्रतिस्थापित कर दिया। मोदी को उपचुनाव लड़ने और 2002 में गुजरात विधानसभा का सदस्य बनने की आवश्यकता थी। जब स्व. श्री हरेन पंड्या ने मोदी को अपनी सीट देने से इनकार कर दिया था तब ये वजूभाई ही थे जिन्होंने मोदी को उपचुनावों में भाग लेने के लिए राजकोट II का चुनाव क्षेत्र खाली कर दिया था। मोदी विजयी हो गए और उसके बाद से वजूभाई मोदी के करीबी दोस्त हैं। उन्हें गुजरात विधानसभा का अध्यक्ष और बाद में कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया। वजूभाई एक जननेता, एक श्रेष्ठ वक्ता और एक असाधारण संगठनात्मक प्रवीणता वाले व्यक्ति माने जाते हैं। लेकिन दो चीज़ें उनके खिलाफ हैं। पहला ये कि, वह पहले ही सक्रिय राजनीति को अलविदा कह चुके हैं और दूसरा, उनकी आयु अब 78 वर्ष हो चुकी है। हालाँकि वजूभाई के पास सभी उचित कौशल हैं लेकिन इस शीर्ष स्थान तक उनका पहुचना संदिग्ध दिखता है।
2.) नितिन पटेल: उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, आनंदीबेन पटेल द्वारा 2016 में कुर्सी छोड़ देने के बाद, मुख्यमंत्री बनने के लिए लगभग तैयार थे। लेकिन मोदी-शाह ने नितिन पटेल के बजाय विजय रुपानी को चुना। नितिन पटेल के पास काफी अनुभव है और ये स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, परिवार कल्याण, सड़क और भवन के कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। उन्होंने जल आपूर्ति, जल संसाधन, शहरी विकास और शहरी आवास का विभाग भी संभाला है। लेकिन पटेल आन्दोलन को नियंत्रित न करने और बाद में इसे ख़राब तरीके से सँभालने का आरोप उन पर लगा। यही कारण था कि 2016 में रूपानी को उनके ऊपर चुना गया और इस बात को ध्यान में रखते हुए कि इस बार तो वो बस जैसे तैसे अपनी खुद की सीट ही बचा पाए हैं, ये भी एक कारण हो सकता है कि नितिन पटेल गुजरात के अगले मुख्यमंत्री न बनें।
3.) परषोत्तम रुपाला: पाटीदार समुदाय में रुपाला एक जाने माने नेता हैं। वो हार्दिक पटेल की ही तरह कडवा पाटीदार समुदाय से आते हैं। रूपाला को जमीनी स्तर के नेता के रूप में जाना जाता है और वे देहाती हंसी ठिठोली के लिए सुप्रसिद्ध हैं। वर्तमान समय में रुपाला राज्य सभा के सदस्य हैं और उनका कार्यकाल 4 महीने बाद समाप्त हो रहा है। रूपाला ने भाजपा के राज्य अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है और राज्य की भाजपा इकाई के साथ उनके अच्छे संबंध हैं। कुल मिलाकर वो एक होनहार उम्मीदवार लगते तो हैं लेकिन एक ऐसा कारक है जो उनके खिलाफ जा सकता है। वह सौराष्ट्र के अमरेली के निवासी हैं, इस क्षेत्र ने भाजपा को बहुत लम्बे समय बाद सबसे ख़राब स्कोरकार्ड दिया है। रूपाला को सौराष्ट्र क्षेत्र में बीजेपी की हार के कारण दोषी ठहराया जा सकता है।
मेरे ‘विनम्र‘ मत में गुजरात के अगले मुख्यमंत्री पद के दो सबसे संभावित उम्मीदवार हैं:
4.) गनपत वासव- इस सूची में अगले मुख्यमंत्री पद के एक आश्चर्यजनक उम्मीदवार, वासव, राज्य के दक्षिणी भाग के आदिवासी समुदाय से आते हैं। यह माना जा रहा है कि आदिवासी समुदाय ने बढ़ चढ़ के भाजपा के लिए वोट डालें हैं। भील, वासव और गमिट जैसी अनुसूचित जनजातियाँ गुजरात की आबादी का लगभग 14% हिस्सा हैं, यह किसी भी पार्टी के लिए वोटों का एक बड़ा हिस्सा हैं, जिन्हें नजरंदाज नहीं कर सकते। ऐसा माना जाता है कि आदिवासियों ने पाटीदार वोटों के नुकसान की भरपाई की है। मुख्यमंत्री के रूप में वासव की नियुक्ति भाजपा को आदिवासियों में गहरी पैठ बनाने में मदद कर सकती है, जो कि अब तक कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक रहे हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि गनपत वासव ने मंगरोल चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस के उम्मीदवार को 40000 से अधिक मतों के अंतर से हराया जो उनकी दावेदारी को और मजबूत करता है। वासव की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाला एक और तथ्य यह है कि वह मोदी-शाह के “गैर पारंपरिक चेहरे वाले मॉडल में फिट बैठते हैं। याद कीजिये कि मोदी-शाह ने एक मराठा-ओबीसी महाराष्ट्र में एक ब्राह्मण फडनवीस को, एक जाट बाहुल्य राज्य हरियाणा में एक पंजाबी खट्टर को और एक आदिवासी बहुल राज्य झारखंड में एक गैर-आदिवासी दास को मुख्यमंत्री नियुक्त किया। पटेल-क्षत्रिय-ओबीसी बहुल गुजरात में एक आदिवासी मुख्यमंत्री असम्भाव्य तो नहीं दिखता।
5.) विजय रुपानी- निरंतरता बनाये रखने के लिए और मजबूत सन्देश भेजने के लिए कि कम अंतर की जीत से भाजपा को कोई दिक्कत नहीं है, रूपानी को ही आगे मुख्यमंत्री बने रहने की आवश्यकता है। आनंदीबेन पटेल के उतार चढाव भरे शासन के बाद राज्य को वापस पटरी पर लाने में रूपानी काफी हद तक सफल हुए। लेकिन रुपानी एक शांत प्रशासक के रूप में जाने जाते हैं। वह बहुत लोकप्रिय नहीं और लोगों से कम जुड़ पाते हैं। हालाँकि अमित शाह ने चुनाव से पहले आश्वासन दिया था कि भाजपा रुपानी और नितिन पटेल के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी, जो रूपानी को अगले मुख्यमंत्री बनाए रखने की पार्टी की इच्छा की ओर इशारा करता है।
कुछ महत्वपूर्ण उल्लेख :
मनसुख मांडविया : एक वरिष्ठ नेता जो अच्छे संगठनात्मक कौशल के लिए जाने जाते हैं। वह एक लयूवा पटेल हैं।
भूपेन्द्रसिंह चूड़ासमा : भाजपा का राजपूत चेहरा, जो दलितों के बीच काफी प्रसिद्ध है और आरएसएस के काफी करीब है।
स्मृति ईरानी – (क्यूंकि! मीडिया ऐसा कहती है)