सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ पहले भी लड़ाई लड़ चुके हैं और एक बार फिर से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए वो आंदोलन शुरू कर चुके हैं। अन्ना हजारे का कहना है कि मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार और किसानों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये हैं।
वर्ष 2011 में अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में आंदोलन शुरू किया था जिसने यूपीए सरकार के लिए कई मुश्किलें कड़ी कर दी थीं एक बार फिर से अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। इस बार अन्ना हजारे ने केन्द्र में लोकपाल नियुक्त करने की अपनी मांग को लेकर अनिश्चतकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी है।
पर क्या अन्ना का ये कदम इस बार मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं? मेरे हिसाब से इस आन्दोलन का पतन निश्चित है, और ये होंगे आंदोलन के पतन के मुख्य तीन कारण:
पहला, वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आंदोलन में अन्ना हजारे मुख्य चेहरा थे। अन्ना ने ये आंदोलन जब शुरू किया था तब उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उनका ये आंदोलन अखिल भारतीय आंदोलन का रूप ले लेगा। वर्ष 2011 में अन्ना के आंदोलन को बढ़ावा तब मिला जब कुछ लेफ्ट-लिबरल कार्यकर्ताओं ने अपनी राजनीतिक ताकतों का इस्तेमाल कर इस आंदोलन को प्रकाश में लाया। इसके अलावा आंदोलन को बढ़ावा देने में मीडिया की भी अहम भूमिका रही थी। यही वजह थी कि उस समय इस आंदोलन की गूंज पूरे देश में थी।
वर्ष 2011 के और वर्तमान समय (2018) के आंदोलन में फर्क यही है कि जो ‘5 स्टार कार्यकर्ता’ उस समय अन्ना के साथ आंदोलन में साथ थे वो आज काफी आगे बढ़ चुके हैं। यही वजह है कि इस बार शायद अन्ना के आंदोलन में वो नेता साथ खड़े नजर नहीं आयंगे। उस समय अपनी राजनीतिक मंशा को पूरा करने के लिए ही अन्ना के आंदोलन में शामिल हुए थे जोकि अब पूरा हो चुकी है। हालांकि, हो सकता है कुछ अभी कुछ नेता अपनी कुछ राजनीतिक मंशों को पूरा करने के लिए एक बार फिर से इस आंदोलन से जुड़े और इस आंदोलन को बढ़ावा दें।
दूसरा, अन्ना के इस आंदोलन के सफल न होने के पीछे की वजह कहीं न कहीं आम आदमी पार्टी भी है। उस समय हुए आंदोलन में हजारे ने केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति की मांग की थी लेकिन वर्ष 2014 में भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन के दौरान आम आदमी पार्टी उभरकर सामने आयी थी लेकिन जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पायी।
देश को भ्रष्टाचार रहित बनाने, आईएसी में बदलाव करने और भारत को एक बेहतर देश बनाने के मकसद से बनी आम आदमी पार्टी ने न सिर्फ जनता के भरोसे के साथ खेला, उनकी उम्मीदों को तोड़ा बल्कि खुद भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में लिप्त पायी गयी।
आज देश में नेताओं के खिलाफ कई भ्रष्टाचार के बड़े मामले दर्ज हैं। ये मामले न सिर्फ वित्तीय घोटाले बल्कि शैक्षिक डिग्री, घरेलू हिंसा और यौन हिंसा जैसे मामलों में लिप्त हैं। आईएसी आंदोलन ने कोई बड़ा बदलाव तो नहीं लेकिन जनता को एक नयी राजनीतिक पार्टी जरुर दी जो खुद भ्रष्टाचार में डूबी है।
तीसरा और सबसे प्रमुख कारण है कि अन्ना हजारे ने इस बार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया है। अन्ना का कहना है कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लेकर गंभीर नहीं है क्योंकि अभी तक सरकार ने केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति नहीं की है। गौर हो कि वर्ष 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आंदोलन का मुख्य आधार केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की मांग ही थी। तब लोगों का मानना था कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति उपयोगी साबित हो सकती है लेकिन पीएम मोदी की सरकार बनने के बाद लोगों के विचार ही बदल गये।
या यूं कहें कि 2011 में, भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आंदोलन में अन्ना हजारे मुख्य चेहरा थे। उस आंदोलन से देश में अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया और वह भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई का मुख्य चेहरा बने लेकिन, आज पीएम नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में चल रही लड़ाई का मुख्य चेहरा हैं।
वर्तमान समय में जनता ने पीएम मोदी को देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई में अपने नेता के तौर पर चुना तभी तो पूरे देश में मोदी की लहर ने खूब जोर पकड़ा। मोदी लहर की वजह से ही आज देश के अधिकतर राज्यों में बीजेपी ने जीत दर्ज कर सत्ता पर आसीन है। जिस उम्मीद और विश्वास के साथ वर्ष 2011 में जनता केजरीवाल को चुना था आज वो छवि भ्रष्ट और झूठी निकली। यूपीए के कार्यकाल के विपरीत मोदी के शासन में सरकार के खिलाफ एक भी घोटाला सामने नहीं आया है बल्कि नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ एक बड़ा आर्थिक कदम उठाते हुए नोटबंदी और जीएसटी को लागू किया। पीएम नरेंद्र मोदी के इस कदम ने भ्रष्टाचार की जड़ों को हिला कर रख दिया था।
अगर हम इन सभी बातों पर गौर करें तो पाएंगे कि शायद वर्ष 2011 की तरह अन्ना हजारे का आंदोलन 2018 में सफल नहीं हो पायेगा और या यूं कहें कि वो हारने वाली लड़ाई लड़ रहे हैं क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी की कार्यशैली और नीति पर देश की जनता का जो यकीन है वो शायद ही अन्ना हजारे का आंदोलन हिला पाए।