जैसे ही आसाराम को जोधपुर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अदालत ने बलात्कार और अन्य अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, कांग्रेस और कई लोगों ने गंदी और अपमानजनक राजनीति शुरू कर दिया। आसाराम के खिलाफ 2013 में दायर की गयी याचिका में पीड़िता ने आरोप लगाया था कि आसाराम ने 15 अगस्त, 2013 की रात को जोधपुर के पास मणई क्षेत्र में अपने आश्रम में उसके साथ दुष्कर्म किया। इस फैसले ने भारत की न्यायिक व्यवस्था में सामान्य नागरिकों के विश्वास को बहाल किया है। आसाराम बापू एक प्रभावशाली अपराधी था इसके बावजूद न्याय की जीत हुई। वह मुकदमे की सही सुनवाई के लिए जेल में रहा और इस दौरान केंद्र सरकार या राज्य सरकार ने मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। ये सराहनीय है कि एक निष्पक्ष फैसला हुआ और कोई भी आसाराम के बचाव के लिए आगे नहीं आया।
हालांकि, कांग्रेस और उसके समर्थकों की मोदी विरोधी विचारधारा ने आसाराम के दोषी करार दिए जाने के बाद इस मामले को राजनीतिक रूप देने की पूरी कोशिश की। एक पुराना वीडियो कांग्रेस और उसके समर्थकों द्वारा शेयर किया जा रहा था जिसमें पीएम मोदी और आसाराम साथ में नजर आ रहे हैं। इस वीडियो के जरिये पीएम मोदी को आसाराम जैसे अपराधी को बचाने वाला दिखाया गया, उनकी छवि एक अपराधी को बचाने के तौर पर चित्रित करने की कोशिश की गयी। हालांकि, अगर पिछली घटनाओं पर गौर करें तो तो पायेंगे कि पीएम मोदी के कभी भी आसाराम के साथ सहज समीकरण नहीं रहे।
मोदी विरोधी और हिन्दू विरोधी लोग पीएम मोदी को आसाराम के साथ जोड़कर उनकी छवि को बदनाम करने की कितनी भी कोशिश क्यों न करें, तथ्य ये है कि पीएम मोदी (जब गुजरात के सीएम थे) थे जिन्होंने आसाराम के पतन की शुरुआत की थी। 2008 में आसाराम बापू की करतूतें पहली बार प्रकाश में आई थी जब दो लड़के संदिग्ध तरीके से मोटेरा (गुजरात) आश्रम से गायब हो गये थे। गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार ने बिना समय बर्बाद किये इस मामले की जांच शुरू करवा दी। जब आसाराम बापू राजनीतिक लोकप्रियता और राजनेताओं के संरक्षण का आनंद उठा रहे थे तब पीएम मोदी ही थे जिन्होंने आसाराम के खिलाफ कार्रवाई करवाने का साहस दिखाया था। बहुत से नेताओं ने कथित तौर पर लगे रेप के आरोपों के बावजूद उन्हें समर्थन दिया। सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने वीएचपी को इस मामले से दूर रहने की चेतावनी भी दी थी। तब उनके द्वारा उठाये गये कदम इतने सख्त थे कि कुछ भीतरी लोगों ने उन्हें अपना सामान पैक करके हिमालय भाग जाने की सलाह दी थी। पीएम मोदी ने आसाराम के आश्रम से संबंधित जमीनों को बड़े पैमाने पर जब्त कर लिया था।
आसाराम के खिलाफ कार्रवाई के बाद से पीएम मोदी और आसाराम के बीच रिश्ते कड़वे रहे हैं। दरअसल, 2012 में आसाराम ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को डराने की भी कोशिश की थी और दो लड़कों की रहस्यमयी मौत पर आसाराम और उनके बेटे नारायण साईं के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने की चेतावनी दी थी। सार्वजनिक तौर पर आसाराम ने मोदी की अगुवाई वाली गुजरात सरकार को चेतावनी दी थी कि यदि वह आसाराम को दबाने की कोशिश करते हैं तो वह मोदी को सत्ता से बाहर कर देंगे। 2013 में, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी आसाराम बापू का समर्थन करने वाले बीजेपी नेताओं से नाखुश थे। प्रधान मंत्री मोदी ने तब कहा था कि इस मामले में जांच चल रही है और आसाराम के खिलाफ कोई भी कार्रवाई कानूनी तरीके से होनी चाहिए।