मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने पांच बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिया है जिसमें स्वामी नामदेव त्यागी, भय्यूजी महाराज, नर्मदानंदजी, हरिहरनंदजी और पंडित योगेंद्र महंत शामिल हैं। कांग्रेस और मुख्यधारा की मीडिया इसके बाद तुरंत सक्रिय हो गयी। सभी ने चौहान सरकार के फैसले की आलोचना शुरू कर दी और आरोप लगाने लगी कि बीजेपी विधानसभा चुनाव से पहले अपने राजनीतिक लाभ पाने के लिए कर रही है। दरअसल, बात ये है कि बीजेपी विरोधी ताकतें ये दिखाने की कोशिश में हैं कि चौहान सरकार गुरुओं के धार्मिक अपील का लाभ उठाना चाहती है और राजनीतिक माहौल को सांप्रदायिक बना रही है। पर क्या एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धार्मिक गुरुओं की नियुक्ति सही नहीं है?
विपक्ष और मुख्यधारा की मीडिया न सिर्फ इस मामले में बल्कि दशकों से भारत में धर्मनिरपेक्षता के अर्थ को गलत तरीके से पेश करने की कोशिश करते आये हैं। जो बात उन्हें समझ नहीं आती वो ये है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि वो किसी भी व्यक्ति के धार्मिक अधिकारों पर अनुचित प्रतिबंध नहीं लगाता। वास्तव में किसी भी व्यक्ति को इन साधुओं के सरकार में शामिल होने पर कोई समस्या होनी ही नहीं चाहिए, जब तक वो अपनी आधिकारिक क्षमता में किसी व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करते।
वास्तव में सदियों से ऋषियों, संतों से सलाह लेना तो हमारी सभ्यता रही है। पुरातन काल से ही आध्यात्मिक गुरु शासन का प्रभार सम्भालने वाले को आवश्यक सलाह दिया करते थे। वास्तव में हिंदू संस्कृति में आध्यात्मिक गुरु समाज का त्याग नहीं करते बल्कि समाज कल्याण के लिए कार्य करते हैं। हर हिन्दू राज्य का मुखिया एक राजा होता था जिसका प्रमुख सलाहकार कोई पुरोहित ही होता था, हालांकि, मुख्यधारा की मीडिया और वोट के लिए राजनीतिक वर्ग ने हमेशा से ही उन्हें गलत तरीके से पेश किया इन गुरुओं ने सरकार की सहायता के बिना सरकार के भीतर हो या बाहर हमेशा से ही सरकार के सुधार के लिए कार्य किया है।
मुख्यधारा की मीडिया और कांग्रेस का इस फैसले के पीछे के गुस्से की वजह तो कुछ और ही है। ऐसा लगता है कि वे “हिंदू नेताओं” के शामिल होने से परेशान हैं। इस मामले में बीजेपी की आलोचना करने के लिए कम से कम कांग्रेस को आगे नहीं ही आना चाहिए क्योंकि पार्टी ने अपने बुरे हालातों में महाराष्ट्र कैबिनेट मंत्री के रूप में एक इस्लामिक मौलवी डॉक्टर रफीक जकारिया को नियुक्त किया था। वास्तव में, पार्टी ने कई बार मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए शाही इमाम से समर्थन मांगा है। मुख्यधारा की मीडिया ने इस मामले का कोई विरोध नहीं किया बल्कि इसे धर्मनिरपेक्ष की जीत के रूप में स्वागत किया था। इसका एक सही उदाहरण होगा सईद अब्दुल्ला बुखारी, तत्कालीन शाही इमाम की बढती राजनीतिक ताकत का जश्न मनाना। शाही इमाम ने वीपी सिंह सरकार के दौरान काफी प्रभाव डाला था। हालांकि, मुख्यधारा के मीडिया ने इसके बारे में कोई नाराजगी भी व्यक्त नहीं की।
इसके पीछे की सही वजह है मीडिया की चौहान सरकार और अध्यात्मिक गुरुओं के प्रति उदासीनता। ये कहानी आज की नहीं वर्षों से चली आ रही है कि, समाज में हो रहे गलत कार्यों के पीछे हिंदू गुरु हैं जबकि समाज में सामंजस्य और शांति के लिए अल्पसंख्यक धर्मों के मौलवी जिम्मेदार हैं। इसीलिए, राजनीति में हिंदुओं की भागीदारी को खतरा बताया और उन्हें राजनीति में अछूत का दर्जा देने लगे, लेकिन अन्य धर्मगुरुओं के राजनीतिक प्रभाव को भारत के धर्मनिरपेक्ष के संरक्षक कहे जाने वाले लोग खूब सराहते हैं। यहां तक कि वर्तमान समय में भी, कई मीडिया आउटलेट्स उन लोगों की सच्चाई पर व्यक्तिगत हमले करने की कोशिश करती है जिन्हें राज्यमंत्री का दर्जा मिला।
चौहान सरकार पर निशाना साधने वालों पर बस हंसा ही जा सकता है। वे न कभी समझे थे और न ही कभी भारत को समझ पायंगे। ऐसे ही लोगों ने बाबा रामदेव का मजाक बनाया था, खासकर तब जब उन्होंने अपनी खुद की उत्पादों की शुरूआत की थी। आज, बाबा रामदेव देश के शीर्ष उद्योगपतियों में से एक है। उन्ही लोगों ने योगी आदित्यनाथ की एक कट्टर छवि प्रस्तुत की थी। आज योगी के फैन्स देश नहीं विदेशों तक फैले हैं। दरअसल में इन कथित धर्मनिरपेक्ष लोगो को किसी व्यक्ति विशेष से परेशानी नहीं है, उन्हें तो बस भगवा खटकता है।