कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई जनाक्रोश रैली में जनता को संबोधित करते हुए मोदी सरकार के प्रति असंतोष की भावना पैदा करने की कोशिश की। 2019 के आम चुनावों को लेकर अपनी रणनीति का स्पष्ट संकेत देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें देश को बदलने के लिए सिर्फ 60 महीने चाहिए। फिर भी जनाक्रोश रैली में राहुल ने भारत को बदलने के लिए 60 और महीने की मांग की जबकि सत्य तो ये है कि कांग्रेस की सत्ता में देश 60 सालों तक विकास से वंचित रहा है ऐसे में अपनी रैली से वो अपनी पार्टी के खिलाफ जनता के आक्रोश को जरुर जुटाने में सफल हुए हैं। इस समय ये समझना जरूरी है कि भारत को 60 महीनों में बदलने की बात कहने वाले राहुल गांधी को अगर ये समय दे दिया जाए तो वो क्या सच में बदलाव लायेंगे?
कांग्रेस के पिछले रिकार्ड्स पर अगर नजर डालें तो शायद हमें ये समझने में और आसानी हो जाएगी कि अगर राहुल गांधी को ये 60 महीने दे दिए गये तो प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान होकर वो किस तरह के बदलाव लायेंगे। कांग्रेस (गांधी परिवार) आजादी के बाद से लगभग 60 सालों तक सत्ता पर आसीन रही है। ये 60 वर्ष कांग्रेस की प्राथमिकताओं और क्षमता को मापने के लिए पर्याप्त होंगे।
1.) राष्ट्रीय सुरक्षा: किसी भी सरकार की शुरुआत के लिए देश की सुरक्षा के प्रति उठाया गया कदम उनके लिए एक बड़ा सफल कदम साबित हो सकता है। कांग्रेस ने डोकलाम विवाद पर लिए गये फैसलों पर चिल्लाती रही और केंद्र सरकार पर समझौता करने का राग अलापती रही। हालांकि, पीएम मोदी के नेतृत्व की वजह से ही डोकलाम सीमावर्ती विवाद में चीन को अपने कदम पीछे खींचने पड़े थे। वहीं, इस मामले में राहुल गांधी से हम उम्मीद कर सकते हैं कि वो मनमोहन की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की यादों को फिर से ताजा कर सकते हैं। तब शायद भारत एक ताकतवर देश बनकर सर्जिकल स्ट्राइक द्वारा देश को नुकसान पहुँचाने वाले दुश्मनों के घर में घुसकर उनके छक्के नहीं छुड़ा पाता। हम सैन्य प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में अप्रभावी दस्तावेज राजनीति का सहारा ले रहे होते। ठीक ऐसा ही कुछ नक्सलवाद के मामले में भी देखने को मिलता, वो नक्सलवाद जो मोदी सरकार के नेतृत्व में खत्म होने के कगार पर है वो शायद राहुल गांधी के सत्ता में आने के बाद फिर से अपना भय पैदा करने में कामयाब हो जाते। एनडीए सरकार ने ये सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है की वैश्विक गड़बड़ी के बावजूद भारत आतंकवाद से मुक्त है। हालांकि, हम सभी जानते हैं कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के अंतर्गत आंतरिक सुरक्षा की स्थिति क्या रही है।
2.) भ्रष्टाचार: भारत को उस समय में वापस जाना चाहिए जब देश में भ्रष्टाचार अपने चरम पर था। ये 2014 के चुनावों में कांग्रेस की हार की वजहों में से एक है जब देश भ्रष्टाचार में लिप्त नौकरशाहों और उच्च अधिकारियों से चिंतित था। तत्कालीन यूपीए सरकार पर जनता का धन लूटने का आरोप आज भी कांग्रेस से जुड़ा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में वैश्विक स्तर पर सुधार आया है। 2014 से ही भारत अभूतपूर्व आर्थिक विकास के कारण तेजी से महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। हालांकि, कांग्रेस सरकार के अंतर्गत विकास की कहानी अलग ही थी तब देश की आर्थिक व्यवस्था गिरने लगी थी। यदि ये दुर्भाग्यपूर्ण घटना सही थी तो कांग्रेस एक बार फिर से दुनिया में मजबूत आर्थिक व्यवस्था के साथ उभरने के भारत के सपने को विफल कर देगी जैसे कि 2004 की जीत के बाद वाजपेयी सरकार के प्रयासों को कांग्रेस ने बर्बाद कर दिया गया था।
3.) वोटबैंक राजनीति: जाति और धर्म के नाम पर वोट-बैंक की राजनीति देश में एक बार फिर से वापस आ जायेगी। बीजेपी ने छद्म-धर्मनिरपेक्ष दलों द्वारा बनाए गये दलित-मुस्लिम गठबंधन को तोड़ दिया तभी तो दलितों ने भाजपा के लिए बड़ी संख्या में मतदान किया था। हालांकि, इस बार पुरानी पार्टी अपने मूल वोट बैंक को खुश करने के लिए कोई भी कमी नहीं छोड़ेगी। कई प्रो-हिंदू संगठन पहले से ही उसकी दृष्टि में हैं। कांग्रेस हिंदुओं को आतंकवादी के रूप में चित्रित करने के लिए अपने षड्यंत्रों को भी जारी रखेगी। स्वामी असीमानंद और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित इसका उदाहरण हैं जिन्हें कांग्रेस आतंकवाद के रूप में चित्रित करने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहती थी। प्रशासनिक मशीनरी के निपटारे के साथ कांग्रेस 2019 के लिए चुनावी समीकरणों को अपरिवर्तनीय रूप से बदलने के लिए हिंदुओं के खिलाफ झूठे मामलों को फ्रेम करने की पूरी कोशिश करेगी। कांग्रेस फिर से हिंदू आतंकवाद के मिथक को बढ़ावा देने वाले अपने प्रोपेगंडे को हवा देगी। कांग्रेस अपने वोट बैंक को बनाए रखने के लिए कश्मीर पलायन और बांग्लादेश के अवैध आप्रवासियों के पनाह देने के लिए ज़िम्मेदार है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि कांग्रेस द्वारा चरमपंथियों को खुली छूट दी जायेगी जिससे संवेदनशील क्षेत्रों में हिंदुओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता।
4.) डेमोक्रेटिक संस्थान: ये भी संभावना है कि कांग्रेस सरकार 2019 के आम चुनावों में जीत के बाद लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला करने का प्रयास करे। जिस तरह से कांग्रेस ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्र के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव शुरू किया था और नयायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रहार करने के प्रयास किये थे, हालांकि, कांग्रेस अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पायी थी, वो अगर सत्ता में आ जाती है तो ये न्यायपालिका की आजादी के लिए एक गंभीर खतरा साबित हो सकता है। दरअसल, लोकतांत्रिक संस्थानों के कार्यों में दखल देने की कोशिश कांग्रेस के लिए नयी नहीं है। सभी इससे अवगत हैं कि कैसे बिना किसी वजह इमरजेंसी लागू कर कांग्रेस ने भारतीय लोकतंत्र को हिलाकर रख दिया था।
ये सोचकर ही डरावना सा लगता है कि यदि 2019 में कांग्रेस सत्ता में आ गयी तो कैसा घातक परिदृश्य बन जायेगा। देश को आर्थिक गिरावट, कमजोर सुरक्षा और जनसांख्यिकीय अपरिवर्तनीय क्षति का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में राहुल गांधी द्वारा देश को बदलने के लिए 60 महीनों की मांग व्यर्थ है। 2014 के चुनाव में पीएम मोदी की जीत इसलिए भी सुनिश्चित हुई थी क्योंकि उन्होंने देश को इस भयावह स्थिति से निकलने के लिए जनता के मन में एक नयी उम्मीद जागृत की थी।
राहुल गांधी का ये अनुरोध शायद कई लोगों की समझ से बाहर है और इन सभी संभावनाओं को देखते हुए हम दुबारा कांग्रेस को वही गलतियां दोहराने का मौका नहीं दे सकते।