मोदी सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए एक निजी कंपनी डालमिया ग्रुप के साथ मेनटेनेंस अनुबंध किया है। इस एमओयू के तहत डालमिया ग्रुप ने भारतीय धरोहर के रखरखाव के लिए दिल्ली के लाल किला और आंध्र प्रदेश के कडप्पा स्थित गंडीकोटा किले को गोद लिया है। डालमिया ग्रुप ने सरकार के साथ 25 करोड़ का अनुबंध किया है और इस अनुबंध के बाद ये पहली ऐसी कंपनी बन गयी है जिसने सरकार के ‘अडॉप्ट अ हेरिटेज’ परियोजना के तहत एमओयू पर हस्ताक्षर किया है। इस प्रोजेक्ट के मुताबिक अपनी किसी धरोहर को गोद लेने के बाद कंपनियों के ऊपर धरोहरों की सफाई, सार्वजनिक सुविधाएं और इससे गंदा होने से बचाने की ज़िम्मेदारी होगी।
ऐसा लगता है कि सरकार को ये बात समझ आ गयी है कि राज्य ही सब कुछ नहीं कर सकता। सरकार को अपने क्षेत्र को सीमित रखना चाहिए और विकास ले लिए जरुरी गतिविधियों पर ध्यान देना देना चाहिए। पिछले 70 वर्षों में, भारतीय स्मारकों की हालत अच्छी नहीं रही है, सरकार इन स्मारकों की मरम्मत के लिए प्रयास करती आयी है। सरकार का ध्यान कई दिशाओं में होता है ताकि विकास सुनिश्चित किया जा सके। अब सरकार ने भारत के स्मारकों के रखरखाव के लिए एक नया तरीका खोज निकाला है। इन स्मारकों के रखरखाव के लिए निजी कंपनियों के साथ अनुबंध करना बेहतर फैसला है। स्मारकों की देखभाल करने के लिए यह निर्विवाद रूप से एक अधिक प्रभावी तरीका है और किसी भी तरह की लापरवाही होने पर उसे आसानी से सही किया जा सकेगा।
दुर्भाग्यवश, इस तरह के प्रशंसनीय कदम के बावजूद विपक्ष और कुछ निहित हितों वाले लोगों को ये कदम रास नहीं आया। पूरे भारत में महत्वपूर्ण स्मारकों और किलों के बेहतर रखरखाव के उद्देश्य को लेकर गलत जानकारी फैलाई जा रही है। इस एमओयू को बिक्री या पट्टे के रूप में चित्रित करने की कोशिश की जा रही है । दरअसल, कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से सरकार द्वारा लाल किले के रखरखाव के लिए उठाये गये कदम को पट्टे के रूप में चित्रित करने की कोशिश की। एक कांग्रेस प्रवक्ता ने सरकार के इस फैसले को लेकर गलत जानकारी फ़ैलाने की कोशिश की और घोषित करते हुए कहा कि प्रतिष्ठित स्मारक लाल किला डालमिया ग्रुप को सौंप दिया गया है। लगता है कांग्रेस प्रवक्ता इस अनुबंध की गहराई में नहीं गये तभी तो कह दिया कि लाल किला को बेच दिया गया है। वैसे ही बंगाल की सीएम ममता बनर्जी जो हिंदू-विरोधी तत्वों के लिए मशहूर हैं उन्होंने भी कांग्रेस द्वारा लाल किले को पट्टे पर दिए जाने की अफवाह को तुल दिया।
After handing over the Red Fort to the Dalmia group, which is the next distinguished location that the BJP government will lease out to a private entity? #IndiaSpeaks
— Congress (@INCIndia) April 28, 2018
Why can’t the Government even take care of our historic Lal Qila ? Red Fort is a symbol of our nation. It is where India’s flag is hoisted on Independence Day. Why should it be leased out ? Sad and dark day in our history
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) April 28, 2018
अन्य कांग्रेस और विपक्षी ने भी इस गलतफहमी को बढ़ावा दिया:
After handing over citizens money to #NiravModi & #MehulBhai now #BJP hands over India’s monument to private companies, #PM #Modi treats India like his Pvt Limited Company #LalQuila #DalmiaBharat
— Jaiveer Shergill (@JaiveerShergill) April 28, 2018
https://twitter.com/HardikPatel_/status/990195831730003968
साहेब की लीला न्यारी है
देश की बिक्री जारी है..। #LalQuila pic.twitter.com/CFCsXUWD8o— MP Youth Congress (@IYCMadhya) April 29, 2018
वो लोग जो झूठी अफवाह फैला रहे हैं कि सरकार ने ऐतिहासिक स्मारक लाल किला को बेच दिया है उन्हें ये बात समझ नहीं आई कि सरकार ने लाल किले को बेचा नहीं है बल्कि एमओयू के अनुबंध के तहत बस एक निजी कंपनी को भारतीय स्मारक लाल किले की सफाई, सार्वजनिक सुविधाएं देने और इससे गंदा होने से बचाने की ज़िम्मेदारी दी है। इस अनुबंध के तहत डालमिया ग्रुप लाल किला का सिर्फ सौंदर्यीकरण, रखरखाव को दखेगा बाकि व्यवस्था वैसी ही रहेगी जैसी पहले थी। कंपनी का लाल किले पर कोई निजी अधिकार नहीं होगा विपक्ष जो इस अनुबंध को लेकर अफवाह फैला रहा है वो आधारहीन है शायद विपक्ष इस अनुबंध की गहराई में नहीं गया है। यदि किसी कर्मचारी को रखरखाव की जिम्मेदारी दी जाती है तो इसका मतलब ये नहीं है कि उसका स्मारक पर अधिकार स्थापित हो गया। केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने ये स्पष्ट कर दिया है कि इस अनुबंध के तहत कंपनी को कोई लाभ नहीं होगा और उसका दायरा रखरखाव तक ही सीमित है।वास्तव में, अडॉप्ट अ हेरिटेज’ योजना अनिवार्य रूप से गैर-राजस्व उत्पादन योजना है। वर्तमान एमओयू में, डालमिया ग्रुप की पहुंच पर्यटकों को बुनियादी सुविधाएं और व्यवस्था प्रदान करने के लिए गैर-मूल क्षेत्रों तक ही सीमित रहेगा। ये समझ से बाहर है कि कैसे निजी कंपनी को स्मारक की रखरखाव की जिम्मेदारी सौंपना उसपर उसकी अधिकारिकता को साबित करता है? विपक्ष सवाल कर रहा है कि स्मारक के रखरखाव को आउटसोर्स क्यों किया गया है? इस तर्क का कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि ये पहली बार नहीं है कि सरकार ने कार्यक्षमता में वृद्धि के लिए प्रोजक्ट आउटसोर्सिंग का सहारा लिया हो। पर्यटन के राज्य मंत्री के.जे अल्फोंस ने सही कहा कि, निजी कंपनी बस स्मारक के रखरखाव पर पैसे खर्च करेगी न की इससे कोई लाभ उठाएगी। कंपनी शौचालय और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने पिछले 70 वर्षों में ऐसे कदम क्यों नहीं उठाए? अगर पहले ही कांग्रेस ने ये कदम उठाया होता तो सभी स्मारकों की हालत इतनी बिगड़ी हुई नहीं होती।
गौरतलब है कि इस मुद्दे के प्रति आक्रोश सेलेक्टिव है। विपक्ष को अगर स्मारकों की इतनी ही चिंता है तो क्यों सिर्फ “शाहजहां के लाल किले” पर अपनी प्रतिक्रिया दी जोकि डालमिया ग्रुप को सौंप दिया गया है लेकिन विपक्ष ने आंध्र प्रदेश के कडप्पा स्थित गंडीकोटा किले का जिक्र क्यों नहीं किया? विपक्ष भारतीय धरोहर को डालमिया को सौंप दिए जाने के मुद्दे को सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। मुगल युग के स्मारक को डालमिया को सौंप दिए जाने पर विपक्ष सरकार को एक खलनायक के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहा है। ये भी देखा गया था कि टीएमसी सांसद डेरेक ओ ‘ब्रायन ने भी पहले स्मारक गोद लेने की योजना का समर्थन किया था, लेकिन जब “शाहजहां का स्मारक” रखरखाव के लिए सौंपा गया तो वो उत्तेजित हो गये।
Aww, why are libtards only crying over 'ShahJahan's Red Fort' being 'taken over'? Why is no one talking about the Gandikota fort? This is an insult of Dravida Pride, no? All this North-centric politics I tell you!! #tweetlikealibtard
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) April 29, 2018
Propaganda vs Reality pic.twitter.com/1TXvv0Ye0K
— Ankur Singh (Modi Ka Parivar) (@iAnkurSingh) April 29, 2018
हालांकि, इन सभी रणनीतिक आक्रोश के बावजूद भी ये योजना सफल होने के लिए बाध्य है। मशहूर स्मारकों में सुविधाओं और बुनियादी सुविधाओं में सुधार के साथ ये योजना एक बड़ा सफल कदम साबित होगा।