चीन अपने लालच और नए बाज़ारों की भूख को कभी नहीं स्वीकारता। वो बाज़ार जो अक्सर चीनी कंपनियां अपनी कम गुणवत्ता के उत्पादों को बेचने के लिए उपयोग करती हैं। ऐसे में प्राचीन काल के उपनिवेशवादियों और आधुनिक चीनी नीतियों के बीच में बहुत कम अंतर नजर आता है। आज मुफ्त व्यापार का ढोंग करने वाला चीन उन देशों का फायदा उठाना चाहता है जो उससे मदद लेने के लिए तैयार होते हैं। चीन कभी अपने सहयोगी के मुनाफे से मतलब नहीं रखता और न ही उसे कभी अपनी गलती का पछतावा होता है। यही वजह है कि चीन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक खतरनाक दोस्त की तरह है। चीन के इस लालचीपने को समझने के लिए उदाहरण के तौर पर हम श्रीलंका के मामलों की स्थिति देख सकते हैं। दरअसल, श्रीलंका ने चीन से विभिन्न विकास परियोजनाओं के लिए किश्तों में 8 अरब डॉलर का उधार लिया था। तीन दशकों तक चले गृहयुद्ध के बाद वहां विकास में तेज़ी के लिए चीन ने श्रीलंका के सामने मोद्रिक सहायता का प्रस्ताव रखा था, श्रीलंका को इस मदद के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ी। बंदरगाह हम्बनटोटा हिंद महासागर के शिपिंग लेन के उत्तर में स्थित है जिसमें चीन का 80 प्रतिशत आयातित तेल का हिस्सा आता है। कोई भी देश अपने देश और संसाधनों पर दूसरे देश को मालिकाना हक नहीं देता है, लेकिन श्रीलंका के पास कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं था। चीन द्वारा दिए गए विशाल ऋण के बड़े हिस्से को पूरा करने के लिए 1.1 अरब डॉलर का समझौता श्रीलंका के लिए आवश्यक था।
अपने दक्षिण एशियाई पड़ोसी के साथ चीन द्वारा किये गये व्यवहार के बाद भी पाकिस्तान ने कोई सीख नहीं ली, श्रीलंका की तरह एक मूर्खतापूर्ण फैसला लेते हुए चीन से मिल रहे मदद के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) ने पाकिस्तान में रोजगार और समृद्धि लाने का वादा किया है। पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था और यहां तक कि कमजोर पाकिस्तानी राजनीतिक व्यवस्था के पास इतनी ताकत नहीं है कि वह पाकिस्तान की छवि को समृद्ध और मजबूत बना सके। विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) को पाकिस्तान में कड़े विरोध के बाद भी बनाया गया। चीनी कंपनियों ने और उसके सुरक्षा बलों ने परियोजनाओं के सुचारु संचालन के लिए इन क्षेत्रों पर नियंत्रण कर रखा है। भूमि पर अपने नियंत्रण के साथ चीन ने अपने इरादों (पहले पहुंच बनाओ, फिर हावी और फिर शासन करों) को दिखाना शुरू कर दिया है।
चीन में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा मैंडरिन को सिंध और पंजाब के विद्यालयों में सरकार के अंतर्गत वर्ष 2011-15 में अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि, व्यापक सार्वजनिक विरोध प्रदर्शनों के बाद इसे निरस्त कर दिया गया।
पाकिस्तान पर आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक वर्चस्व के लिए चीन की ये एक छोटी सी कोशिश थी। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के लिए नई मुद्रा के रूप में चीनी युआन को बदलने का प्रस्ताव इस शानदार रणनीति का ही हिस्सा था। चीन के इस कदम से पूरी दुनिया में युआन की मांग बढ़ जाएगी और इसके बाद वो पाकिस्तान जैसे अपने दूसरे व्यापारिक सहयोगी की ओर कदम बढ़ा सकेगा। तीसरी और हाल की घटना में देखा गया कि कैसे चीनी जो पाकिस्तान में रहते हैं वो पाकिस्तानी लोगों का अपमान कर रहे हैं और उनपर हावी होने की कोशिश कर रहे हैं।
SAMAATV के पूर्व संपादक और पाकिस्तानी अखबार जैसे डॉन के लिए काम कर चुके उमर आर कुरैशी ने इस वीडियो को शेयर किया है। इस वीडियो में कुछ चीनी एक पुलिस वैन पर हमला कर रहे हैं। इस दौरान ये चीनी वहां एकत्रित हुए पाकिस्तान के स्थानीय नागरिकों की ओर गलत इशारे करते हुए साफ़ दिखाई दे रहे हैं। एक चीनी पुलिसकर्मी के कार पर चढ़ गया है जबकि दूसरे उन लोगों का कैमरा छिनने की कोशिश कर रहे हैं जो इस घटना की रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। पाकिस्तान में ये अल्पसंख्यक चीनी आबादी का व्यवहार लोगों ने नहीं स्वीकारा है लेकिन ये तो चीनी लोगों का पाकिस्तान के नागरिकों के साथ आम व्यवहार है जो इस वीडियो में सामने आया है जो ये दर्शाता है कि दोनों के बीच के स्तर का अंतर बढ़ता जा रहा है।
Chinese nationals in Pakistan try to storm a local police van pic.twitter.com/MdU1v4vdq4
— omar r quraishi (@omar_quraishi) April 5, 2018
चीन के नागरिकों द्वारा विदेशी धरती पर किए गए इस अपमानजनक व्यवहार से पता चलता है कि वे आज भी कैसे पाकिस्तान की जनता पर राज कर रहे हैं। यह शायद एक ही रिकॉर्ड की गयी घटना है लेकिन जरुर ही ऐसी कई और घटनाएं होंगी जोकि कभी सार्वजानिक तौर पर बाहर नहीं आ सकी हैं।
ऐसा लगता है कि पाकिस्तान ने अपनी संप्रभुता, गरिमा और स्वायत्तता को कम्युनिस्ट चीन के आगे झुककर खो दिया है। क्या पाकिस्तान को इस बात का एहसास नहीं है कि चीन आज किस तरह से अपनी शक्तियों का विस्तार कर रहा है? क्या पाकिस्तान को चीन का लालचीपन नजर नहीं आता ? चीन का ये लालचीपन कब थमेगा पता नहीं लेकिन अगर पाकिस्तान ने जल्द ही मदद के पीछे चीन की मानसिकता को नहीं भांपा तो वो दिन दूर नहीं हैं जब पाकिस्तान को इसका भारी मूल्य चुकाना पड़ेगा और वो चीन की शक्तियों के आगे अपने देश के नागरिकों के प्रति भी लाचारी महसूस करेगा।