भारतीय राजनीति में चापलूसी की सभ्यता का प्रभुत्व रहा है। अक्सर ये देखा गया है कि कैसे एक वरिष्ठ नेता विवादास्पद टिप्पणी करने के लिए अपने आसपास के छोटे या चापलूस नेताओं का उपयोग करते हैं, और उनसे जो वो चाहते हैं वही करवाते हैं। जब शीर्ष नेता बड़ी ही चतुराई से खेलता है, तब उनके चापलूस अपने लिए खतरा होने के बावजूद विवादों में कदम रखते हैं। अक्सर, वे मतदाताओं के सामने न समझ की तरह लगते हैं। ऐसे राजनेता आमतौर पर कमज़ोर और महत्वहीन होते हैं और खुद को नेताओं के पास समर्पित करने के अलावा इनके पास कोई विकल्प नहीं होता है। इस बार, दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया इस जाल में फंसे हैं। दरअसल, मनीष सिसोदिया एक ऐसे चापलूस बन गये हैं जिन्होंने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए बलिदान दिया है।
ताजा न्यूज़ रिपोर्ट्स के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल और सिसोदिया ने राजनीतिक माहौल में अपनी रणनीति बदलने का फैसला किया है जिसमें दोनों अपनी भूमिकाओं का आदान-प्रदान करेंगे। केजरीवाल अपनी गिरती छवि को बनाने में जुटे हैं तो मनीष सिसोदिया खतरा उठाते हुए पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर हमले करने जा रहे हैं। वास्तव में, नीति में ये बदलाव पिछले काफी समय से दिखाई दे रहा है। ऐसा लगता है कि केजरीवाल एक जिम्मेदार नेता की छवि खेल रहे हैं जो राजनीतिक माहौल में आदान-प्रदान में विश्वास नहीं करते हैं, सिसोदिया को केंद्र सरकार पर विवादास्पद टिप्पणी करने का जिम्मा सौंपा गया है। पिछले एक हफ्ते में केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के अवैध सलाहकारों को हटाने पर मौन बरकरार रखा। सामान्य परिस्थितियों में उन्होंने अपमानजनक टिप्पणियां करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा होगा और ये भी दावा किया था कि पीएम मोदी उनकी बढ़ती लोकप्रियता से डरते हैं। उन्होंने कई अपमानजनक दावे भी किये हैं जैसे कि दिल्ली के उपराज्यपाल मोदी के एजेंट हैं। लगता है केजरीवाल खुद को पीएम मोदी के लिए खतरे के रूप में चित्रित करने की कोशिश में खुद ही डर गये होंगे। हालांकि, इस बार सिसोदिया थे जिन्होंने सार्वजानिक तौर पर विवादित टिप्पणियां करने का जिम्मा उठाया या यूं कहें कि उन्हें अआप की आवाज बनाया गया है। केजरीवाल की अपमानजनक नौकरी कर रहे सिसोदिया ने उपराज्यपाल को तानाशाह कहा और समांतर सरकार चलाने का आरोप भी लगाया। यहां तक कि उन्होंने दिल्ली सरकार के सलाहकारों को हटाने के संबंध में पीएम मोदी को एक तीन-पेज का पत्र भी लिखा (जिन्हें राजनीतिक चापलूसी के लिए पुरस्कृत किया गया था)। मनीष सिसोदिया ने भी इस मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी। आमतौर पर केजरीवाल प्रेस कांफ्रेंस आयोजित करते थे और पीड़ित कार्ड खेलते हुए पीएम पर भावनात्मक आरोप लगाया करते थे।
यहां तक कि पार्टी के भीतरी स्त्रोतों ने इस बात की पुष्टि की है। सीएम केजरीवाल की गैर-जिम्मेदार टिप्पणियों को पार्टी की लगातार हार के रूप में देखा जा रहा था। पार्टी गोवा और पंजाब के चुनाव हार गयी थी जहां अधिकतर उम्मीदवारों ने अपनी राशी जब्त की। पार्टी को एमसीडी चुनावों के दौरान बड़ा झटका लगा था जब बीजेपी ने जीत दर्ज अआप को बाहर का रास्ता दिखाया था। 2015 के चुनावों में जीत दर्ज करने वाली पार्टी को एमसीडी चुनावों में बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। अआप की छवि ऐसी बन गयी कि दिल्ली से भी उन्हें हार मिली। पीएम मोदी के खिलाफ विद्रोही खेल खेलने वाले केजरीवाल ने प्रशासन में कमियां निकालनी शुरू कर दी और अपनी हार के लिए इवीएम में गड़बड़ी को जिम्मेदार बताते रहे। जनता का उनपर से भरोसा लगभग तब पूरी तरह खत्म हो गया जब उन्होंने कुछ भी बोलना शुरू कर दिया और किसी भी मुद्दे को घसीटना शुरू कर दिया। उन्होंने भारतीय सेना का भी अपमान किया, सर्जिकल स्ट्राइक के दावों को झूठा बताया, सभी सरकारी अधिकारियों को मोदी का एजेंट बताया यहां तक उन्होंने कई बार देश के पीएम पर अत्यधिक असहनीय टिप्पणियां की। भारत के इतिहास में देश के मुखिया पर इस तरह की व्यक्तिगत टिप्पणियां पहले कभी सुनने को नहीं मिली थी। लालू प्रसाद यादव के लिए केजरीवाल विनम्र और अलग ही रूप में नजर आये थे। इसीलिए, केजरीवाल ने सार्वजनिक जगहों से चुपचाप निकलने की कोशिश की। वो जनता के नकारात्मक रवैये से डर गये। कुछ समय से वो पीएम मोदी के खिलाफ खुलकर कुछ भी बोलने से बचते नजर आये। केजरीवाल ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया पर भी शांत दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, अआप के अंधे समर्थक और कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल को एक परिपक्व नेता (लगभग अपने कार्यकाल केआधे समय में) के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है जो राजनीतिक स्टैंड-ऑफ की चिंता नहीं करते हैं और अपने काम पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अब केजरीवाल को जनता के नेता के रूप में दोबारा पेश करने की कोशिश की जा रही है।
हालांकि, अआप के कार्यों का कोई अच्छा रिकॉर्ड नहीं रहा है जिससे वो जनता से समर्थन के लिए कह सके। इसीलिए, अब उनके लिए जरुरी हो गया है कि कोई पीड़ित कार्ड खेले और सार्वजानिक तौर पर अपनी कोशिशों में तेजी लायें। इस पूरी रणनीति में वो केजरीवाल को खोना नहीं चाहते और यही वजह है कि मनीष सिसोदिया को पार्टी की आवाज का जिम्मा सौंप दिया गया है। अब से सीएम केजरीवाल नहीं बल्कि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया सार्वजनिक मंचों पर पीएम मोदी के खिलाफ टिप्पणियां करते हुए नजर आयेंगे। अआप के लिए केजरीवाल उपहास का विषय बनने के लिए बहुत बड़े नेता हैं और इसीलिए अब ये काम महत्वहीन और मामूली सिसोदिया पार्टी के अस्तित्व के लिए करेंगे।