भारतीय जनता पार्टी ने कर्नाटक चुनाव के लिए शुक्रवार को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया। राज्य में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा ने इस घोषणा पत्र को जारी किया है। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब पार्टी ने चुनाव से पहले जनता के परामर्श के बाद अपना संकल्प पत्र जारी किया है। बीजेपी के घोषणापत्र को जनता का घोषणापत्र भी कह सकते हैं क्योंकि कर्नाटक के तीन लाख से ज्यादा मतदाताओं से परामर्श करने के बाद इस घोषणापत्र को तैयार किया गया था। घोषणापत्र तैयार करने का ये अनोखा तरीका है जोकि अन्य पार्टियों के लिए आने वाले चुनावों में एक उदाहरण स्थापित करेगा। पीएम मोदी के नेतृत्व और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के मार्गदर्शन के तहत बीजेपी ने चुनावी खेल खेलने का तरीका बदल दिया है। बीजेपी का ध्यान अब भीड़ से हटकर प्रभावशाली वितरण की ओर स्थानांतरित हो गया है और कांग्रेस के लिए ये खतरे की घंटी है। बीजेपी का कर्नाटक घोषणा पत्र कांग्रेस की स्थिति पर हंसने के लिए पर्याप्त है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने पहले ही घोषणा पत्र जारी कर दिया था जिसमें कांग्रेस ने 5 साल में 14 लाख नई नौकरियों के अवसर पैदा करने की बात कही थी जबकि अपनी सत्ता के दौरान वो सिर्फ 50 लाख नौकरियां ही ये पैदा कर पायी थी। राहुल गांधी ने समय-समय पर अपनी “वास्तविक” चिंता दिखाई है कि केंद्र में बीजेपी के शासन के तहत भारत बेरोजगारी बढ़ी है। घोषणा पत्र में क्या शामिल किया जाना चाहिए और क्या नहीं इस निर्णय के लिए सिद्धारमैया को कम से कम घोषणा पत्र तैयार करने के दौरान राहुल के साथ बैठकर विचारविमर्श करना चाहिए था। राज्य में लगातार बिगड़ती कानून व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं किया गया है जिसने कांग्रेस समर्थकों के बीच निराशा को बढ़ा दिया है। कर्नाटक की कानून व्यवस्था को सुधारने की कोशिश में मार्च 2018 में लोकायुक्त पी विश्वनाथ को उनके कार्यालय में ही जान से मार दिया गया था, इसका भी कांग्रेस के 2018 के घोषणा पत्र में कोई उल्लेख नहीं है। राज्य में निर्दोष आरएसएस के सदस्यों और कई अन्य लेफ्ट विंग कार्यकर्ताओं की हत्या भी सोयी हुई कांग्रेस को जगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। हाँ कांग्रेस तब जरुर जाग जाती है जब उसके वोट आधार से संबंधित व्यक्ति की हत्या होती है तब वो अपनी नाकामी को स्वीकार करती है बाकि अन्य व्यक्ति से उसे कोई मतलब नहीं रहता। कर्नाटक में पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के गुंडों की दी गयी आजादी से उनकी शक्ति में बढ़ोतरी हुई है, सिद्धारमैया की योजना के अनुसार चुनाव से पहले जेल से सांप्रदायिक हिंसा के आरोपों का सामना कर रहे ‘निर्दोषों’ को रिहा किया गया था जोकि राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखने की कांग्रेस की कार्यप्रणाली का ही हिस्सा था। सिद्धारमैया से इससे ज्यादा और क्या उम्मीद की जा सकती है, जिन्होंने एआईएडीएमके नेता वीके शशिकला को जेल में विशेष सुविधाएं दिए जाने की बात कही थी जबकि केंद्रीय कारागार में सजा काट रही थीं। कांग्रेस के राज्य में कानून व्यवस्था की कमजोर स्थिति साफ़ नजर आती है और इससे उभरने के लिए कांग्रेस ने एंटी-करप्शन ब्यूरो बनाया था। एसीबी राज्य सरकार के अधीन था, जिसका उद्देश्य लोकयुक्ता के कार्यालय की शक्तियों को कम करना और कांग्रेस को राजनीतिक विरोधियों को लक्षित करने की शक्ति को बढ़ाना था।
अफसोस की बात है कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में लोकायुक्त द्वारा दी गयी शक्ति का भी कोई उल्लेख नहीं है। कर्नाटक में दलितों के खिलाफ बलात्कार, हत्या और अपराधों के कई उदाहरण हैं लेकिन कांग्रेस को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। राज्य में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले राहुल गांधी और सिद्धारमैया जैसे नेता जब अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है तो ऐसे में राज्य में बिगड़ते कानून व्यवस्था में सुधार कैसे हो सकता है? कांग्रेस का घोषणा पत्र आम जनता की जरूरतों से काफी दूर है, हाँ आप इसे कर्नाटक की जनता के बजाय कांग्रेस की आकांक्षाओं की सूची जरुर कह सकते हैं।
बीजेपी द्वारा जारी किये गये घोषणा पत्र में किसानों, छात्रों और बेरोजगार युवाओं सहित समाज की कई समस्याओं को खत्म करने पर जोर दिया गया है। इसमें कैंटीन का जिक्र भी है जो लोगों के लिए कम कीमत पर गुणवत्ता वाला भोजन प्रदान करेंगे, समाज के वंचित वर्गों में आने वाले छात्रों के लिए प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए लक्षित कोचिंग, बीजेपी के घोषणा पत्र की विशेषताओं में से एक है। बीजेपी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के शासनकाल के माध्यम से ये पहले ही दिखा चुकी है कि पार्टी किसानों की मित्र है। उत्तरप्रदेश की तर्ज पर किसानों को एक लाख रुपए तक की कर्जमाफी का भी वादा किया गया है। ये सभी वादें सिर्फ कहने के लिए नहीं है मई में चुनाव के बाद जब बीजेपी सत्ता में आ जाएगी तब वो अपने वादों को पूरा करके इसे साबित भी करेगी। जब मतदाता नीति बनाने में शामिल होते हैं तो क्या होता है इसका अनोखा उदाहरण है बीजेपी का घोषणा पत्र। कर्नाटक की जनता के साथ बीजेपी नेता का जुड़ाव बीजेपी की सभी रैलियों में भी देखा जा सकेगा। बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र से ये साबित कर दिया है कि नेताओं का जुड़ाव सिर्फ रैली तक ही सीमित नहीं होता है। बीजेपी ने कर्नाटक के निवासियों के प्रति अपनी परवाह को दर्शाया है जो जनता की सेवा करने के मौके का इंतजार कर रही है। कांग्रेस अगर थोड़ा बहुत भी सीखने की चाह रखती है तो उसे बीजेपी के घोषणा पत्र से एक दो बातें जरुर सीखनी चाहिए। शायद इससे मिला थोड़ा ज्ञान उसके ‘गतिशील’ और ‘अनुभवी’ नेताओं की सोच को बदलने के लिए पर्याप्त होगा।