पीएम मोदी अब शिक्षा क्षेत्र में बड़ा सुधार करने की योजना बना रहे हैं। भारत में उच्च शिक्षा का स्तर में अभी भी कई खामियां हैं क्योंकि उच्च शिक्षा को नियंत्रित करने के लिए एक से अधिक रेगुलेटरी अथॉरिटी हैं। यूजीसी को 1956 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान बनाया गया था। यूजीसी को तीन प्रमुख उद्देश्यों के साथ स्थापित किया गया था:-
1.) उच्च शिक्षा का समन्वय और नियंत्रण
2.) विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अनुदान
3.) सरकार (केंद्रीय और राज्य) और संस्थानों के बीच एक लिंक
हालांकि, यूजीसी इन सभी स्तरों पर विफल रहा है। अब ये प्लानिंग कमीशन की तरह आधुनिक भारत के समाजवादी इतिहास का एक और पहलू बन गया है। ये शिक्षा क्षेत्र के विकास के साथ युवाओं की शिक्षा की गुणवत्ता दोनों को ही प्रभावित कर रहा है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) जैसे अन्य संस्थान भी हैं जिन्हें 1945 में तकनीकी शिक्षा की देखरेख के लिए स्थापित किया गया था। हज़ारों अप्रशिक्षित और बेरोजगार इंजीनियरिंग छात्र इस एजेंसी की विफलता की विरासत हैं।
ऐसी ही एक और संस्था है राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई)। ये अथॉरिटी 1993 में शिक्षक की शिक्षा और शिक्षण अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। प्राइमरी शिक्षक जो साधारण गणित के सवाल भी हल नहीं कर पाते वो इस संस्था के बुरी तरह से विफल होने का बड़ा उदाहरण है। गौरतलब है कि, इन सभी रेगुलेटरी संस्थानों के कार्य के लिए अपना क्षेत्र निर्धारित है जो एक दूसरे के साथ ओवरलैप करते हैं। इनमें से कोई भी संस्था अपनी शक्ति कम नहीं करना चाहती और यही वजह है कि दोनों संस्थानों के साथ इससे जुड़े छात्र भी अनावश्यक बाधाओं का सामना कर रहे हैं।
सरकार द्वारा स्थापित समितियों जैसे यशपाल समिति और टी एस आर सुब्रमण्यम समिति ने ये स्पष्ट कर दिया था कि मौजूदा रेगुलेटरी अथॉरिटी शिक्षा गुणवत्ता में सुधार करने में असफल रहे हैं। सुब्रमण्यम समिति ने 2017 में अपनी रिपोर्ट में सभी नियामक कार्यों के लिए एक सिंगल रेग्युलेटर की स्थापना करने का सुझाव दिया था। अब सरकार इन सभी मौजूदा रेगुलेटरी की जगह एक सिंगल रेग्युलेटर हायर एजुकेशन एंपावरमेंट रेग्युलेशन एजेंसी (HEERA) बनाएगी। ये संस्थान उच्च शिक्षा के विनियमन से संबंधित सभी मामलों को देखेगा। इस संस्थान का वित्त पोषण एचआरडी मंत्रालय के पास निहित होगा जो पेश किये गए वार्षिक कार्यों की रिपोर्ट के आधार पर अनुदान प्रदान करेगा।
हायर एजुकेशन एंपावरमेंट रेग्युलेशन एजेंसी (HEERA) इन सभी संस्थानों को उनके कार्यों के प्रदर्शन के आधार पर संभावित अनुदान देने का सुझाव देगा जो सभी संस्थानों को बेवजह पैसे देने की जगह उनके परिणाम आधारित वित्त पोषण को सुनिश्चित करेगा। इस एजेंसी के पीछे का मूल विचार नीति आयोग का था। इसकी स्थापना के अलावा नीति आयोग कई क्षत्रों में व्यापक रूप से सुधार लाने में सक्षम रहा है। इससे पहले नीति आयोग ने राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) के प्रस्तावों को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एनटीए को जेईई और एनईईटी जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करने का कार्य सौंपा गया है। एनटीए का विचार संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया था। मानव संसाधन मंत्री हायर एजुकेशन एंपावरमेंट रेग्युलेशन एजेंसी (HEERA) विधेयक को सितंबर 2018 तक संसद में लाने की योजना बना रही है। HEERA के दस सदस्यों में एक अकदमीशियन अध्यक्ष होगा, साथ ही दो उपाध्यक्ष और तीन निदेशक जिनके पास कम से कम पांच वर्षों तक आईआईटी/आईआईएम के साथ काम करने का अनुभव होगा।
हाल ही में हमने उत्तराखंड में एक मामला देखा था जहां एक मेडिकल कॉलेज ने अपनी फीस 300 प्रतिशत तक बढ़ा दी थी। इस कॉलेज की प्रति वर्ष सालाना फीस 5 लाख से बढ़ाकर लगभग 20 लाख तक कर दी गयी थी, इस नए रेग्युलेटर के आने से फीस बढ़ाने जैसे मामलों पर लगाम कसी जा सकेगी साथ ही शिक्षा प्रणाली और बेहतर होगी।