कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का तमाशा कोई नयी बात नहीं है। वो ‘युवा नेता’, जनता का नेता और राष्ट्रीय आइकॉन के रूप में अपनी छवि उभारने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन इसमें वो बुरी तरह से विफल रहे हैं। राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी की ओर नए मतदाताओं को खुद ही आकर्षित होने दें तो बेहतर हैं क्योंकि अक्सर ही मतदाताओं को पार्टी की ओर लुभाने की उनकी कोशिशें मतदाताओं को पार्टी से और दूर कर देती हैं। कांग्रेस को ‘युवा’ ब्रिगेड बनाने की दिशा में उनकी ‘प्रतिभा’ और दृष्टिकोण ने राज्य में कांग्रेस की दशा को और बदतर कर दिया है और पार्टी के अनुभवी नेता पार्टी का साथ छोड़ने लगे हैं। इन सभी नेताओं ने राहुल गांधी के गलत निर्देशों के साथ पार्टी में बने रहने की बजाय या तो बीजेपी का साथ चुना या निर्दलीय पार्टी बनाने के विकल्प को चुना है।
राहुल गांधी अपनी बेजोड़ सफलता से अनुभवी नेताओं को कांग्रेस से निकालने में सफल रहे हैं और ये स्थिति मध्य प्रदेश में भी अब देखने को मिल रही है। दरअसल, राहुल गांधी 6 जून को मंदसौर में अपनी पहली रैली करने वाले हैं। पिछले वर्ष 6 जून के दिन ही पुलिस द्वारा की गयी फायरिंग में पांच किसानों की मौत हो गयी थी। राहुल गांधी ने इसी दिन को अपनी रैली करने के लिए चुना है लेकिन राहुल गांधी की रैली से पहले ही मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के तेवर बागी हो गये हैं जहां राज्य के कई जिलों से कांग्रेस पदाधिकारियों ने अपना इस्तीफा दे दिया है।
मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के पार्टी उपाध्यक्ष महेंद्र सिंह गुर्जर, महिला कांग्रेस अध्यक्ष बबीता सिंह तोमर, सुवासरा के विधायक हरदीप सिंह डंग आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया है। ये सभी नेता कांग्रेस द्वारा बनाई गयी समन्वय समिति में पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन के खिलाफ पार्टी के निष्कासित नेता राजेंद्र कुमार गौतम को शामिल किए जाने से नाराज हैं। दरअसल, राजेन्द्र सिंह गौतम को 2009 में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की वजह से पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया था। तब मीनाक्षी नटराजन के खिलाफ राजेंद्र कुमार गौतम ने लोकसभा का निर्दलीय चुनाव लड़ा था। राहुल गांधी द्वारा नटराजन की जगह समिति में राजेंद्र को शामिल किये जाने का फैसला समझ से बाहर है कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया। राजेंद्र सिंह गौतम के शामिल किये जाने के बाद से ये सभी नेता गुस्से में हैं जो मीनाक्षी नटराजन को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की अगुआई वाली समिति का हिस्सा बनने की मांग कर रहे हैं।
इन सभी नेताओं की इस्तीफे की मांग वास्तविक भी लगती है क्योंकि वो एक ऐसे नेता पर विश्वास नहीं कर सकते जिसने पहले ही पार्टी के साथ विश्वासघात किया हो। दरअसल, राजेंद्र सिंह गौतम 2017 में कांग्रेस से जुड़े हैं जबकि मीनाक्षी नटराजन उनसे भी पहले से पार्टी के प्रति वफादार रही हैं। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने इससे पहले भी ऐसे बेवकूफी वाले फैसले लिए हैं।
लगता है उन सभी फैसलों में मध्य प्रदेश एक ताजा उदाहरण हो सकता लेकिन जिस भी राज्य में कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में लिए फैसले नेताओं पर थोपे हैं वहां वहां कांग्रेस को अपनी ही पार्टी के नेताओं की तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। ऐसे में मध्य प्रदेश की कांग्रेस को अपने असंतुष्ट नेताओं को वापस लाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। मध्य प्रदेश के इन गुटों में नाराजगी से 2018 में होने वाले राज्य चुनावों पर गहरा असर डालेगा। एक समय ऐसा भी आ सकता है कि जिला और राज्य स्तर के कांग्रेस नेता राहुल गांधी की यात्रा के खिलाफ विरोध करना शुरू कर दें जो कांग्रेस की मुश्किलों को और बढ़ा सकता है।
चुनाव लड़ने वाले सांसदों और अन्य राज्यों के नेताओं को राहुल गांधी के गलत फैसले के लिए उन्हें समझाने की जरूरत है क्योंकि ऐसे फैसले जमीनी कार्यकर्ताओं और नेताओं में असंतोष की भावना को बढ़ावा दे सकता है। अगर कांग्रेस इसी तरह अपने नेताओं को नाराज करती रही तो कांग्रेस की स्थिति 2019 के चुनाव से पहले ही दयनीय हो जाएगी जोकि राष्ट्रीय स्तर पर बने रहने की पार्टी की एक मात्र उम्मीद है।