कर्नाटक के चुनाव का नाटक अब खत्म हो चुका है और कर्नाटक राज्य को उनका सीएम मिल चुका है। हालांकि, एचडी कुमारस्वामी की पार्टी मुश्किल से चुनाव में 35 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब हो पायी थी, विडंबनात्मक रूप से वह 23 मई को कांग्रेस से ‘बिना किसी शर्त’ के समर्थन के साथ कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। बता दें कि चुनाव से पहले यही कांग्रेस जेडीएस के खिलाफ बयानबाजी कर रही थी और इसे बीजेपी की ‘बी-टीम’ तक कह दिया था।
कुमारस्वामी और उनके सहयोगियों के लिए कृतज्ञता और अभिवादन के साथ एक के बाद एक संदेश शुरू हो गये। हालांकि, पश्चिम बंगाल की मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इस ट्वीट से जो बात सामने आयी वो है :
Democracy wins. Congratulations Karnataka. Congratulations DeveGowda Ji, Kumaraswamy Ji, Congress and others. Victory of the 'regional' front
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) May 19, 2018
यद्यपि ये ट्वीट कुछ (विडंबनापूर्ण लाखों लोगों) के लिए साधारण सा दिखायी दे रहा होगा लेकिन इस ट्वीट में ‘क्षेत्रीय मोर्चे’ शब्द पर ध्यान देना आवश्यक है। इन सभी में तृणमूल कांग्रेस की अवसरवादी मुख्यमंत्री एक बार फिर से राष्ट्रव्यापी ‘क्षेत्रीय’ गठबंधन के निर्माण पर जोर दे रही हैं। दरअसल इस गठबंधन के जरिये वो आने वाले 2019 के आम चुनावों में बीजेपी को चुनौती देने के लिए या यूं कहें कि संभवतः बीजेपी हराने के के लिए ऐसा कर रही हैं।
दरअसल, ममता बनर्जी प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान होने की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में लगी हैं और ये कोई नयी बात नहीं है। इस संबंध में वो पहले ही प्रमुख विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर चुकी हैं। 2009 में मायावती की तरह ही वो राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव के लिए बड़ा संघर्ष कर रही हैं और देश भर में अपनी क्षेत्रीय शक्ति का विस्तार करना चाहती हैं चाहे देश उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण खतरे में पड़ जाए उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
ममता के तानाशाही शासन की ज्यादा चर्चा न करते हुए चलिए उनके ट्वीट में छुपे गुप्त संदेश को समझते हैं। एचडी कुमारस्वामी को बधाई देते हुए, उन्होंने कुमारस्वामी के पिता एचडी देवेगौड़ा को भी ध्यान में रखा, जो 1996-1997 तक देश के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान थे, उस दौरान टूटे हुए जनादेश ने त्रिशंकु संसद को जन्म दिया था, जहां किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। हैरानी की बात है कि ममता ने अपने ट्वीट में कांग्रेस के नाम का एक बार भी उल्लेख नहीं किया खासकर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी को जो खुद को 2019 में प्रधानमंत्री की सीट के लिए उपयुक्त उम्मीदवार मानते हैं।
हालांकि, ममता बनर्जी के अंदर नजर आ रहे इस आत्मविश्वास के पीछे कई कारण हैं। फिलहाल, वो स्पष्ट रूप से उन कुछ विश्वसनीय चेहरों में से एक हैं जोकि 2019 के चुनाव में विपक्ष के लिए वोट बैंक को जुटा पाने में सक्षम नजर आती हैं। पिछले साल हुए उत्तर प्रदेश चुनावों के अलावा पिछले कुछ चुनावों में राहुल गांधी के प्रदर्शन को देखते हुए सभी दल उन्हें महागठबंध का नेतृत्व करने वाले नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर रहे।
उनके हास्यास्पद भाषण और संदर्भ एक तरफ, ऐसा कोई नेता है भी नहीं जो राहुल गांधी की जगह ले सके। अखिलेश यादव और मायावती अब एक शक्तिशाली किंगमकर नहीं रहे जो वो पहले हुआ करते थे और अरविंद केजरीवाल आज भी हंसी का पात्र बनने तक ही सीमित रह गये हैं।
ऐसे में 2019 के चुनावों में संयुक्त विपक्ष के लिए सक्षम नेता के रूप में एक ही विकल्प नजर आता है और वो हैं ममता बनर्जी। इसमें कोई आश्चर्य वाली बात नहीं होगी यदि ममता 2019 के चुनावों के लिए क्षेत्रीय कार्ड खेल रही हैं। हालांकि, इस बड़े अभियान के लिए कांग्रेस को शीर्ष खिलाड़ी के तौर लेना अच्छा विकल्प नहीं होगा क्योंकि बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए सयुंक्त विपक्ष 1996 के चुनावों में हुए विश्वासघात को दोबारा नहीं दोहराना चाहेगा।
सवाल जो उभर कर सामने आता है वो ये है कि क्या 2019 में होने वाले आम चुनावों में मोदी-शाह की जोड़ी को चुनौती देने के लिए ममता बनर्जी पूरे विपक्ष का प्रमुख चेहरा होंगी? दरअसल, सच इससे कहीं दूर है। बिहार में जो हुआ अगर उस पर गौर करें तो संपूर्ण विपक्ष एक ही उद्देश्य के लिए एकजुट हो ऐसा होना असंभव नजर आता है। बड़ी साझेदारी के लिए राजनीतिक उठापटक आम बात है और ये देखना दिलचस्प होगा कि 2019 में ममता बनर्जी (और सभी) बनाम मोदी होंगे या ममता (और सभी) बनाम कांग्रेस बनाम मोदी होंगे। जो भी हो लेकिन ये तो तय है कि 2019 में होने वाला लोकसभा चुनाव एक दिलचस्प राजनीतिक रस्साकशी को तैयार कर रहा है।