केंद्र सरकार आज सबसे बड़ा चुनावी सुधार सुनिश्चित करने के लिए ‘एक राष्ट्र,एक चुनाव’ की पहल तेज करने की कोशिशों में जुट गयी है। वनइंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र सरकार अगले साल अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव करवाने की योजना बना रही है। इस विचार का उद्देश्य 2019 के आम चुनावों के साथ-साथ कई राज्यों में एक साथ चुनाव आयोजित करना है। ऐसे में विधानसभा और लोकसभा चुनाव को एक साथ करवाने के विचार को सरकार के महत्वाकांक्षी योजना एक राष्ट्र, एक चुनाव के बड़े हिस्से के रूप में देखा जा सकता है।
सरकार 2019 के आम चुनावों के साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव आयोजित करने की योजना बना रही है। इन राज्यों में राज्य सरकारों का कार्यकाल दिसंबर के अंत तक समाप्त होना निर्धारित है। इसके बाद इन तीन राज्यों में चुनाव 2019 में होने वाले आम चुनावों के साथ आयोजित किये जायेंगे। इसके अलावा आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी साथ चुनाव होंगे।
इसके अलावा अगर जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन कर्नाटक विधानसभा के समक्ष अपना बहुमत साबित नहीं कर पाए तो इस वर्ष कर्नाटक में एक बार फिर से चुनाव हो सकते हैं। भले ही ये ट्रस्ट वोट पास कर लें लेकिन आंतरिक मतभेदों की वजह से गठबंधन में अस्थिरता उभर सकती है जो 2019 के पूर्व ही सरकार गिरने का कारण बन सकता है। ऐसे मामले में निश्चित रूप से सरकार के पास 2019 में आम चुनाव के साथ कर्नाटक चुनाव आयोजित करने का विकल्प होगा। बीजेपी के लिए सामान्य चुनावों के साथ कर्नाटक चुनाव कराना फायदेमंद साबित हो सकता है। बीजेपी 2019 में 2014 की तरह मोदी लहर का आनंद उठाने के लिए तैयार है, जबकि जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन लिंगायत और वोक्कालिगा के क्रोध से पीड़ित होगा। ऐसे में बीजेपी को राज्य में महत्वपूर्ण लाभ होने की संभावना है।
पिछले महीने एक राष्ट्र, एक चुनाव के विचार पर बीजेपी ने अध्ययन किया और इसकी रिपोर्ट पीएम मोदी को सौंपी है। पीएम मोदी ने बीजेपी नेताओं और पार्टी के कार्यकर्ताओं से इस मामले पर विचार-विमर्श शुरू करने के लिए कहा है ताकि इसे लेकर सर्वसम्मति बन सके। रिपोर्ट में उप-चुनाव और मध्यावधि चुनावों को साथ कराने के उपाय और संशोधन का सुझाव दिया गया है। नीति आयोग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में वर्तमान मॉडल की आलोचना की थी जिससे आए दिन देश में चुनावी माहौल बना रहता है। इससे सभी वाकिफ हैं कि देश में लगातार चुनावों के कारण लगभग सभी पार्टियां चुनाव के मूड में रहती हैं और मतदाताओं को खुश करने के लिए तरह तरह के राजनीतिक दांव-पेच अपनाते हैं। लगातार चुनाव न सिर्फ प्रशासनिक संसाधनों और सुरक्षा कर्मियों को बांटता है बल्कि जाति और धर्म की राजनीति को कायम रखने के लिए एक अनुकूल वातावरण को जन्म देता है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव न केवल चुनावों पर करदाताओं के पैसे के अतिरिक्त खर्च को कम करेगा बल्कि निर्वाचित सरकार को शासन के मूलभूत सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करने का भी समय देगा। जब चुनाव प्राथमिक चिंता नहीं होगा तब सरकार हर स्तर पर पेशेवरों और विपक्षों की चिंता किये बिना पूर्ण स्वतंत्रता के साथ मध्यावधि / दीर्घकालिक परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पहले से ज्यादा सक्षम होगी।