इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) एक पारिवारिक व्यापार है जिसे पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ने अपनी मेहनत से ऊपर पहुंचाया है। पिछले चार सालों से इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) का अस्तित्व गंभीर खतरे का सामना कर रहा है। 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद पंजाब को छोड़कर जितने भी चुनाव हुए हैं कांग्रेस को उनमें हार मिली है। कांग्रेस को कर्नाटक की जनता द्वारा तब अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ा जब कर्नाटक की जनता ने आईएनसी अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बुरी तरह से झटका दिया। आईएनसी को विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत की उम्मीद थी इसके विपरीत राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी को करारी हार का मुंह देखना पड़ा है। कर्नाटक में राहुल गांधी अपनी 47 रलियों के बावजूद जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने और कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं को लुभाने में नाकाम रहे हैं। यही कारण है कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं व नेताओं ने इस बार प्रियंका गांधी वाड्रा के फैसले को ज्यादा महत्व दिया है।
पिछले चार सालों में आईएनसी अध्यक्ष सिर्फ एक ही सीट को बचा पाएं हैं जोकि उनकी माँ सोनिया गांधी द्वारा खाली की गयी थी। पिछले कुछ सालों से राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष की भावना बढ़ती गयी है। कर्नाटक के विधानसभा के नतीजों के सामने आने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व पर उठाये गये सवाल इसका पहला उदाहरण है। राहुल गांधी और सिद्धारमैया ने जेडीएस के साथ चुनाव से पहले किये गये सभी दावों को ख़ारिज कर दिया था। कर्नाटक चुनावों के फैसले ने केंद्र में सरकार बनाने की कांग्रेस की उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया है। कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए गठबंधन की सरकार के लिए जेडीएस ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने सबसे पहले पहल की थी। ‘वन इंडिया’ में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, जेडीएस के साथ गठबंधन के लिए प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी को सलाह दी थी कि वो मुख्यमंत्री का पद कुमारस्वामी को ऑफर करें।
आईएनसी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को तुरंत कर्नाटक भेजा गया था ताकि वो जेडीएस से बातचीत कर गठबंधन को सुनिश्चित कर सकें। कर्नाटक में गोवा और मणिपुर के चुनाव की तरह हालात न बन जाए इसी डर से आईएनसी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सिद्धारमैया और राहुल गांधी को इस मामले में तवज्जों नहीं दिया। एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे एचडी कुमारस्वामी की सभी मांगों को तुरंत स्वीकार कर लिया गया और और जी परमेश्वर की अगुवाई में कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल कर्नाटक के राज्यपाल के कार्यालय पहुंच गयी। वैसे कांग्रेस के लिए चुनाव से पहले किये गये वादों को ख़ारिज करना कोई नयी बात नहीं लेकिन जिस तरह से कांग्रेस ने इस बार नतीजों के आने बाद अपने तेवर बदले वो आश्चर्यचकित करते हैं।
प्रियंका गांधी वाड्रा कभी राजनीतिक स्तर पर खुलकर सामने नहीं आयीं हैं। उन्होंने हमेशा ही अपने भाई और माँ के लिए प्रचार करने के विकल्प को चुना है। उन्होंने अभी तक कोई चुनाव भी नहीं लड़ा है। 2014 में हुए चुनाव के बाद से ही कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस ओर इशारा किया था कि कांग्रेस अध्यक्ष के पद लिए वो राहुल गांधी की तुलना में ज्यादा बेहतर विकल्प हैं। आईएनसी के वोट बैंकों से भी उनके पक्ष में आवाज उठाई गई है। इसके बावजूद प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में शामिल न होने के अपने फैसले पर अडिग रहीं क्योंकि उन्हें डर है कि वो अपने भाई के करियर पर हावी हो सकती हैं।
अमेठी और बरेली की सीटों को जीतने और बनाए रखने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी की कई बार मदद की है। उन्होंने आईएनसी के लिए कर्नाटक का दौरा किया और सीएम पद के लिए एचडी कुमारस्वामी को ऑफर करने की सलाह दी। कुमारस्वामी कर्नाटक में कांग्रेस की गंभीर स्थिति के प्रतीक हैं। जो रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है अगर वो सच है तो प्रियंका गांधी ने जरुर ही राहुल गांधी को अपने फैसले को बदलने के लिए राजी किया होगा ताकि कर्नाटक में कांग्रेस की पकड़ बनी रहे। सोनिया गांधी ने भी प्रियंका गांधी के फैसले को मंजूरी दे दी साथ ही राहुल गांधी को सहमत होने के लिए आश्वस्त किया। प्रियंका गांधी वाड्रा का ये निर्णय आने वाले वर्षों में कैसे आईएनसी के कार्यों पर भी असर डालेगा। चूंकि पार्टी का नेतृत्व आने वाले समय में गैर-नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य को पास नहीं किया जा सकता, ऐसे में आईएनसी और राहुल गांधी की कमजोर स्थिति को देखकर लगता है कि अब वो समय आ गया है जब पार्टी की कमान परिवार के किसी अन्य सदस्य के हाथों में दे दी जाए।