बीजेपी ने अपने 2014 के चुनाव घोषणापत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था जिससे धर्म के आधार पर बने अलग कानून समाप्त हो सकें। मोदी सरकार ने अब इस जरुरी सुधार को लागू करने के लिए अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता दिखायी है। उनकी प्रतिबद्धता तब सामने आई है जब देश में अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं।
बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने 18 मई को कानून आयोग के समक्ष समान नागरिक संहिता पर जोर देते हुए इस मामले को कोर्ट में उठाया था। अश्विनी कुमार उपाध्याय तीन तलाक और महिलाओं से जुड़ी अन्य कुप्रथाओं जैसे हलाला और बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाये जाने के महत्वपूर्ण मामलों में अपनी भूमिका निभा चुके हैं।
2016 में, मोदी सरकार ने समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया था और कानून आयोग से समान नागरिक संहिता के कार्यान्वयन की जांच के लिए कहा था। इसके बाद छद्म धर्मनिरपेक्षों ने इस मामले पर उत्तेजित प्रतिक्रिया दी और दावा किया कि समान नागरिक सहिंता धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है और इसीलिए ये संविधान का उल्लंघन करता है। हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 44 में लिखा है कि ये राज्य की जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करे। ऐसे में ये समझ से परे है कि समान नागरिक संहिता असंवैधानिक कैसे है जब संविधान स्वयं राज्य को कॉमन कोड कानून बनाने और लागू करने के लिए अनिवार्य करता है।
लॉ कमीशन को अक्टूबर 2016 में समान नागरिक संहिता के मामले में जारी प्रश्नावली के लिए 70,000 प्रतिक्रिया मिली थीं। हालांकि, लॉ कमीशन ने व्यापक परामर्श करने और इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय जैसे व्यक्तियों की विभिन्न रायों पर अम्ल किया। लॉ कमीशन के समक्ष बीजेपी नेता ने समान नागरिक संहिता के पक्ष में मजबूत तर्क रखे। बीजेपी ने अनुच्छेद 44 का हवाला दिया जिसके तहत ये बताया गया है राज्य की जिम्मेदारी कि वो देश में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का प्रयास करे। इसके अलावा 1985 में शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी उल्लेख किया गया जिसमें कहा गया था कि समान नागरिक सहिंता को लागु करना संवैधानिक दायित्व है और ये लागू होना चाहिए लेकिन ये सिर्फ कागजी पन्नों तक ही सीमित रह गया। बीजेपी नेता ने अपने तर्कों में तीन तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया था। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये जरुरी हो गया है कि इस तरह के मामलों को हल करने और समझने के लिए समान नागरिक सहिंता को लागू किया जाये। बीजेपी नेता ने डॉ बी. आर अम्बेडकर को भी संदर्भित किया। उन्होंने संविधान सभा के बहस के दौरान कहा कि, अम्बेडकर ने ये स्पष्ट कर दिया था कि पर्सनल लॉ में अधिकतर नियम ब्रिटिशों द्वारा संहिताबद्ध किए गए थे। परंतु विवाह, तलाक, विरासत और उत्तराधिकार जैसे अन्य मामलों के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है।
बीजेपी नेता ने पिछले छह दशकों से राजनीतिक साहस की कमी को उजागर किया जिन्होंने मुस्लिम वोट के नुकसान के डर से इस सुधार को कभी लगी नहीं होने दिया। उन्होंने ये भी बताया कि 1965 से गोवा में कॉमन सिविल कोड प्रचलित रहा है, जोकि इसके सभी नागरिकों पर लागू किया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि इसे पूरे देश में लागू किया जा सकता है। ऐसा लगता है कि बीजेपी समान नागरिक संहिता को तैयार करने और लागू करने की दिशा में सभी जरुरी कदम उठा रही है। ये मोदी सरकार के अधीन ही है कि इस मुद्दे पर परामर्श दिए गये और अब बीजेपी नेता ने कॉमन सिविल कोड के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि कर दी है। इससे पहले इस कोड पर कोई भी बात नहीं करना चाहता था क्योंकि जिसने भी संवैधानिक दायित्व के तहत इसकी मांग की उसे सांप्रदायिक हिंदू का टैग दे दिया गया। वहीं, मोदी सरकार देश में आवश्यक सुधार करने के लिए इस मुद्दे पर खुलकर सामने आये और अब उन्होंने इसे अंतिम रूप देने के लिए छोड़ दिया है। आम चुनाव में अभी काफी समय बाकि है उससे पहले ही मोदी सरकार ने अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है।