संयुक्त राज्य अमेरिका के विरोध के बाद एक कार्यक्रम में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत सिर्फ संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संगठनों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का पालन करता है। नई दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस में सुषमा स्वराज ने कहा कि, ‘हम सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को ही मानते हैं और किसी खास देश के प्रतिबंधों को नहीं मानते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने परमाणु सौदे के दौरान ईरान पर एक बार फिर से प्रतिबंध लगा दिया है। कई लोगों ने भविष्यवाणी की है कि ईरान पर प्रतिबंधों की वजह से भारत के कच्चे तेल के आयात पर असर पड़ेगा।
भारत एशिया में सबसे बड़े तेल आयात करने वाले देशों में से एक है, और ये उन 6 देशों में से एक है जो 2016 से पहले अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद ईरान से कच्चे तेल की खरीद करता था। लगभग देश में 80 फीसदी तेल की मांग तेल के आयात से ही पूरा होता और विडम्बना ये है कि भारत को तेल सप्लाई करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश ईरान है तो वहीं वेनेजुएला भी भारत को तेल आयात करने वाले प्रमुख देशों में से एक है और इन दोनों ही देशों पर अमेरिका ने भारी प्रतिबंध लगाया है।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था और इस निर्णय की घोषणा के बाद अमेरिका ने ईरान के खिलाफ फिर से प्रतिबंध लगा दिए थे। डोनाल्ड ट्रंप और संयुक्त राज्य अमेरिका को बड़ा झटका लगा जब भारत ने अमेरिका द्वारा लगाये गये प्रतिबंध को मानने से इंकार कर दिया जिसने न सिर्फ इस प्रतिबंध व्यवस्था के प्रभाव को कम किया बल्कि दक्षिण एशिया में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भागीदार के रूप में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका की छवि को भी बाधित किया। संयुक्त राज्य अमेरिका पाकिस्तान के लिए संभावित प्रतिरक्षा के रूप में भारत को देखता है, साथ ही वो इस प्रतिबंध से एशिया में चीन की लगातार बढ़ती एकाधिकार की नीति को रोकना चाहता है।
पिछले महीने एक शीर्ष अमरीकी एडमिरल ने नए प्रतिबंध कानून के तहत भारत को चेतावनी दी थी कि वो ऐसा न करें, ये कानून अमरीका को इस बात का अधिकार देता है कि अगर कोई देश या संस्था रूस और ईरान के साथ रक्षा या इंटेलीजैंस सैक्टर में कोई भी लेन-देन या खरीद करता है तो अमरीका उसे दंडित कर सकता है, वाशिंगटन के शीर्ष अधिकारी ने रूस से S-400 की डील पर कड़े शब्दों में कहा कि अगर वो रूस से S-400 खरीदता है तो वो भारत को अमेरिका से मिलने वाली अत्याधुनिक सैन्य उपकरण सीमित कर सकता है। साथ ही अमेरिका ने कड़े शब्दों में कहा कि भारत और रूस के बीच ये डील अमरीका से होने वाले ड्रोन की खरीद को लेकर रुकावट बन सकती है।
2014 के बाद, भारत ने पश्चिमी राष्ट्रों के प्रति अपनी विदेश नीति पर स्पष्टीकरण दिया क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी पूंजी समृद्धि देश वेस्टर्न यूरोप और नॉर्थ अमेरिका के साथ निवेश करना चाहते हैं। इसके बावजूद गैर-संरेखण हमेशा भारतीय विदेश नीति का एक केंद्रीय पहलू रहा है और ये आगे भी रहेगा। भारत आज भू-राजनीतिक के दौर में प्रचलित नाटो (NATO) और नाटो विरोधी पक्ष का पक्ष लेने की जगह अपने स्वयं का प्रभावी क्षेत्र बनाना चाहता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ड्रोन की डील और रूस के साथ डिफेंस सिस्टम की डील इस तथ्य का प्रमाण है कि भारत अभी भी अपने गैर-संरेखण सिद्धांतों पर निर्भर है।
21 वीं शताब्दी में कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों में बदलाव देखा गया है जो अपने विचारधारात्मक विचारों से यथार्थवाद और व्यावहारिकता की ओर बढ़ रहे हैं। एक बयान में पीएम मोदी ने कहा था, ये परिवर्तन का प्रतीक है। इज़राइल दौरे करने वाले पहले राजनेता बनने से लेकर जनरल वीके सिंह को दो दिवसीय उत्तरी कोरियाई की यात्रा पर भेजने तक, पीएम मोदी खुद भारत की विदेश नीति की शैली को एक नया अकार दे रहे हैं।
जहां तक भारत पर संयुक्त अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने की बात है तो डोनाल्ड ट्रंप के शासन में ये सबसे बड़ी भू-राजनीतिक गलती होगी जो वो कभी नहीं करेंगे। इस्लामी आतंकवाद, पाकिस्तान और चीन से निपटने के लिए भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए जरुरी बना रहेगा।