लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों को सदन से इस्तीफा देने के फैसले पर उनसे पुर्निवचार करने के लिए कहा है। ये पहली बार है जब अध्यक्ष ने सांसदों के इस्तीफे के खिलाफ जाकर उन्हें सलाह दी है। मेकपति राजामोहन रेड्डी, मिथुन रेड्डी, वाईएस अविनाश रेड्डी, वाई वी सुभा रेड्डी और वीवी प्रसाद राव ने महाजन को संसद के बजट सत्र के दौरान अपना इस्तीफा दिया लेकिन उन्होंने अभी तक इसे स्वीकार नहीं किया है। आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद भी अभी तक राज्य को विशेष राज्य का दर्जा न मिलने के मामले को लेकर वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों ने ये इस्तीफा दिया है।
कई लोगों का मानना है कि केंद्र सरकार सांसदों के इस्तीफे को स्वीकार नहीं करना चाहती है क्योंकि वो एक नया उप-चुनाव नहीं चाहती है। यदि इस्तीफा 3 जून तक स्थगित कर दिया जाता है तो कोई उप-चुनाव नहीं होगा, क्योंकि भारत के निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार यदि कार्यकाल एक वर्ष से कम है, तो उपचुनाव नहीं करवाया जा सकता है, सिवाए इसके मुख्यमंत्री को निर्वाचित करना हो तो ये अपवाद में आता है। दूसरी तरफ, वाईएसआर कांग्रेस अपनी शक्ति दिखाने के लिए एक उप-चुनाव चाहता है क्योंकि उन्हें भरोसा है कि उनकी जीत होगी और 2019 में होने वाले लोकसभा और आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनावों में इससे तेजी आने की उम्मीद है। वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों में से एक, मिथुन रेड्डी ने कहा, “हम नहीं जानते कि अध्यक्ष को इस्तीफा स्वीकार करने में इतना लंबा समय क्यों लग रहा है। हम सभी पांच सीटों पर उपचुनाव चाहते हैं ताकि ये केंद्र और बीजेपी के विश्वासघात के खिलाफ लोकप्रिय जनमत हो सके, इसके अलावा टीडीपी द्वारा विशेष राज्य के दर्जे की मांग को भी अस्वीकार कर दिया गया। जबकि बीजेपी और केंद्र स्पष्ट रूप से उपचुनाव को टालने की कोशिश कर रहे हैं, हम अपने इस्तीफे को लेकर अध्यक्ष से मिलेंगे और अनुरोध करेंगे कि वो 3 जून से पहले निश्चित रूप से हमारे इस्तीफे को स्वीकार कर लें जिससे उपचुनाव हो सकें। “
ये बीजेपी का टीडीपी को वाईएसआर कांग्रेस के आत्मविश्वास को दिखाने का प्रयास भी हो सकता है क्योंकि उन्होंने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के मुद्दे को लेकर बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को तोड़ा था। जबसे गठबंधन टुटा है टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू लगातार राज्य में विवाद को बढ़ावा देने के लिए बीजेपी पर हमले कर रहे हैं। टीडीपी और वाईएसआरसीपी दोनों क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी को आंध्र विरोधी के रूप में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बीजेपी को राज्य में कोई भी लाभ न मिल सके। हाल ही में टीडीपी ने अधिवेशन में बीजेपी की आलोचना करने पर ध्यान केंद्रित किया इसके पीछे कारण बीजेपी और टीडीपी का समर्थन आधार लगभग एक होना है। दोनों पार्टियों ने 2014 के विधानसभा चुनावों को एक साथ लड़ा और बहुमत के साथ जीता था। आजादी के बाद से राज्य में बीजेपी गंभीर दावेदार नहीं रही है, और किसी भी लोकसभा या राज्य विधानसभा चुनाव में दो अंकों के वोट प्रतिशत को नहीं जीत पाई है और कभी राज्य में सरकार बनाने के करीब नहीं पहुंच सकी है।
अब अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी कापू समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है जो राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए गंभीर दावेदार बनने के लिए राज्य की आबादी का 10 प्रतिशत से ज्यादा हैं। अन्य दो प्रमुख दल वाईएसआरसीपी और टीडीपी रेड्डी और कम्मा समुदायों का प्रभुत्व रखते हैं। कापूस की तुलना में इन समुदायों की ताकत संख्यात्मक रूप से कम है लेकिन आंध्र प्रदेश में ये असमान शक्ति का आनंद उठाते हैं, यही वजह है कि बीजेपी को भरोसा है कि वो कापू समुदाय को लुभाने में सफल होगी।