उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एकजुट विपक्ष से उपचुनाव में लगातार मिल रही हार के बाद 2014 के आम चुनावों की सफलता को दोहराने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है जब राज्य में 73 सीटें जीतकर पार्टी ने सभी चौंका दिया था। यूपी के बीजेपी अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडे ने 2019 के चुनावों के लिए दो सामरिक अंतर्दृष्टि दी है। न्यूज 18 के अनुसार, उन्होंने कहा, “जब सपा और बसपा में टिकट वितरण और सीट साझा करने का समय आता है तब उनकी पार्टी का बड़ा टुकड़ा असंतुष्ट नजर आता है। हम उन असंतुष्ट नेताओं को साथ लाने की कोशिश में हैं।” उन्होंने आगे कहा, ऐ”सा नहीं है कि टिकट वितरण के समय हमारे खेमे में असंतुष्ट नेता नहीं होंगे लेकिन हमारे कार्यकर्ता उनकी तुलना में ज्यादा अनुशासित और समर्पित हैं। यहां तक कि अतीत में भी 1993 में सपा और बसपा के बीच गठजोड़ हुआ था तब भी बीजेपी ने अकेले ही 176 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि सपा-बसपा को मिलकर भी सिर्फ 172 सीटें ही मिली थीं।”
उनके बयान का तर्क सही भी है चूंकि सपा-बसपा गठबंधन में हैं तो इसका मतलब ये है कि सपा या बसपा में से कोई एक नेता ही हर निर्वाचन क्षेत्र से लड़ेगा ऐसे में असंतुष्ट नेताओं की संख्या दोगुनी होगी। बीजेपी की नजर पहले से इन असंतुष्ट नेताओं पर हैं खासकर लोकप्रिय नेताओं पर जो भारतीय जनता पार्टी के लिए सफलतापुर्वक वोट का बड़ा हिस्सा जीत सकते हैं और 2014 की सफलता को दोहरा सकते हैं। अतीत में विपक्ष के जो विद्रोही नेता बीजेपी से जुड़े थे वो बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं। हेमंत बिस्वा सरमा जिन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और बीजेपी में शामिल हो गये अकेले ही पूरे उत्तर-पूर्व को जीतकर बीजेपी के खाते में डाल दिया था। ऐसे में दूसरी पार्टी के नेताओं का बीजेपी में शामिल होना फायदेमंद साबित होगा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले ही स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा से बीजेपी में शामिल हुए थे उन्होंने बीजेपी के लिए बड़ा मत जीता था और बीजेपी की जीत में बड़ी भूमिका निभाई। दूसरी पार्टी के नेताओं को शामिल करके बीजेपी ने अपने विपक्ष को कमजोर कर दिया है। 2014 में बीजेपी में शामिल होने वाले असंतुष्ट नेताओं की संख्या काफी ज्यादा थी। पार्टी को अपने सदस्यों को खोने की चिंता नहीं है क्योंकि सभी पार्टी के लिए समर्पित हैं। इसके कई सदस्य आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं जिनके लिए विचारधारा के प्रति वफादारी सर्वोपरि है।
महेंद्रनाथ पांडे ने अपनी दूसरी रणनीति के बारे में भी बताया। उन्होंने बसपा के खिलाफ भीम सेना के उम्मीदवारों को उतारने की बात कही। उनके अनुसार हम हर स्तर पर समीक्षा कर रहे हैं और भीम सेना को कैसे अपने पक्ष में लाना है इसकी भी समीक्षा कर रहे हैं। भीम सेना बसपा के खिलाफ है जोकि पश्चिम उत्तर प्रदेश में हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है। इसके अलावा हम अपने संगठन में दलितों और पिछड़े वर्ग को भी शामिल करेंगे जिससे 2019 के नतीजों पर गहरा असर पड़ेगा।” यदि भीम सेना भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करती है तो भीम सेना के प्रभाव से हम पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश को विपक्ष से जीतने में कामयाब होंगे। मीडिया और विपक्ष द्वारा लाख कोशिशों के बाद भी दलित 2014 से भारतीय जनता पार्टी को वोट और समर्थन दे रहे हैं। बीजेपी को भीम सेना का समर्थन पूरी तरह से मायावती के राजनीतिक अस्तित्व के खतरे को सुनिश्चित करेगा।
ये तो बस 2019 से पहले भारतीय जनता पार्टी की बड़ी जीत और रणनीति के लिए एक शुरुआत है। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी को ये भी ध्यान में रखना होगा कि विपक्ष का हर विद्रोही नेता पार्टी के लिए फायदेमंद ही साबित हो जरुरी नहीं है और बीजेपी को ये भी ध्यान में रखना होगा कि नए चेहरे से बीजेपी के पुराने सदस्यों की क्षमता को नजरअंदाज न किया जाए।