कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार बनने के इतने समय बाद भी पोर्टफोलियो आवंटन को लेकर रस्सा-कशी जारी है। दोनों ही पार्टियों में शीर्ष पोर्टफोलिया के आंवटन को लेकर खींचतान जारी है। इस खींचतान से राजनीतिक अवसरवाद से जन्मे पहले से ही अस्थिर गठबंधन पर अत्यधिक दबाव डाला जा रहा है। शीर्ष पोर्टफोलियो के आवंटन को लेकर डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया समेत कर्नाटक कांग्रेस के कई नेता 4 जून को दिल्ली जाने वाले थे। वे सभी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात करना चाहते थे। हालांकि, कांग्रेस हाई कमांड द्वारा इस मुलाकात को पहले ही रद्द कर दिया गया और राहुल गांधी ने कर्नाटक कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को अपमानजनक तरीके से चुप करा दिया।
राहुल गांधी द्वारा इस हाई प्रोफाइल नियुक्ति को इंकार करने वाले नेताओं में कर्नाटक के दो अहम नेता शामिल हैं, पहले नेता हैं डीके शिवकुमार जिन्होंने जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी और दूसरे हैं पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया। सिर्फ यही नहीं, कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष के सी वेणुगोपाल और गांधी परिवार के चापलूस, गुलाम नबी आजाद वो नेता हैं जिन्होंने राज्य के नेताओं को दिल्ली जाने से रोकने का मैसेज भेजा था। राज्य के वरिष्ठ नेता खासकर डीके शिवकुमार जिन्होंने जेडीएस-कांग्रेस के गठबंधन को बचाया था, इन सभी के लिए जो चौंकाने वाली बात सामने आयी वो ये थी कि वेणुगोपाल और आजाद ने साफ़ कर दिया कि पोर्टफोलियो के आंवटन को लेकर वो खुद ही राहुल गांधी से चर्चा करेंगे। ऐसा लगता है कि राज्य के नेताओं को इस पूरी प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है। कुछ जूनियर पार्टी के नेताओं की तरह ही उन्हें इस मामले के बारे में अवगत कराया जाएगा।
ये कोई साधारण नेता नहीं हैं जिन्हें राहुल गांधी द्वारा दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए सबसे वफादार नौकरों की तरह व्यवहार किया था और यही वजह है कि उन्हें बदले में नौकरों जैसा सम्मान ही दिया गया। कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने परिवार के लिए काफी कुछ सहा है। फिर भी वो अन्य चापलूस की तरह पेश आ रहे हैं। अपने पूरे शासनकाल में सिद्धारमैया सिर्फ कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता ब्रांड के पोस्टर बॉय ही रहे थे। यही नतीजा है कि उनके हाथ से कर्नाटक की सत्ता निकल गयी और जब उनके प्रतिद्वंद्वी कुमारस्वामी को शीर्ष पद दिया गया तब उन्होंने इसके लिए कोई आपत्ति नहीं जताई थी। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान जेडीएस सिद्धारमैया की हिट सूची में थे। हालांकि, उन्होंने अपने व्यक्तिगत लाभ से पार्टी को ज्यादा अहमियत दी। कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने दावा किया था कि 2019 में राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनेंगे। देश में राहुल गांधी और मोदी लहर के ट्रैक रिकॉर्ड को देखें तो ऐसा लगता है कि ये अपने मास्टर को खुश करने के लिए चापलूसों द्वारा प्यारी सी कोशिश थी।
डीके शिवकुमार वो व्यक्ति हैं जिन्हें कर्नाटक में चल रही राजनीतिक हवा का रुख बदलने का श्रेय जाता है। कांग्रेस को कर्नाटक में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था फिर भी किसी तरह ये कर्नाटक में जेडीएस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने में सफल हो गयी। कांग्रेस और जेडीएस विधायकों को लेकर ये संभावना थी कि वो बीजेपी को अपना मत दे सकतें हैं। हालांकि, शिवकुमार ने न सिर्फ सभी 116 विधायकों को बाहरी दुनिया से बचाए रखा बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि इनमें से कोई भी अपना विवेक खोकर अपना मत न बदल दे। उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार को सुनिश्चित किया। ये पहली बार नहीं था जब शिवकुमार जो भारत के सबसे अमीर विधायकों में से एक हैं, उन्होंने कांग्रेस को एक अनिश्चित स्थिति से बाहर निकाला है बल्कि ये उनका सबसे बड़ा कारनामा था। शिवकुमार ने कांग्रेस और गांधी परिवार को बचाया लेकिन बदले में उन्हें क्या मिला ? पहले उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद देने से इंकार कर दिया गया और अब वो मनपसंद पोर्टफोलियो के लिए लड़ रहे हैं। ये एक ऐसे व्यक्ति के लिए अच्छा नहीं जिसने कांग्रेस को मुश्किल स्थिति से उबारा था और अब कांग्रेस द्वारा उस व्यक्ति को दरकिनार कर दिया गया।
हालांकि, कांग्रेस ने हमेशा ही गांधी परिवार की चापलूसी और चमचागिरी करने वालों के लिए काम किया है बल्कि ऐसे लोगों को वो इनाम भी देती है। पर अब ऐसा लगता है कि इनके संगठन और गांधी परिवार के लिए कोई कुछ भी करे इन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है और न ही इसके बदले में उन्हें कोई इनाम दिए जाने की कोई गारंटी है। शिवकुमार और सिद्धारमैया के कई प्रयासों के बावजूद उनके साथ राहुल गांधी का बर्ताव कठोर रहा है। अब समय बताएगा कि ये दोनों बड़े नेता इसपर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, हालांकि ये उनके अपमान सहने और दरकिनार करने की सहनशक्ति की सीमा पर भी निर्भर करता है। खैर, कांग्रेस के इन वरिष्ठ नेताओं का अपनी ही पार्टी के खिलाफ जाने की सम्भावनाएं बढ़ गयी हैं।