भारत की चैस स्टार सौम्या स्वामीनाथन ने हिजाब पहनने की अनिवार्यता पर विरोध जताते हुए अगले महीने ईरान में होने वाले एशियन नेशनल कप चैस चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया है। ईरान में सभी महिलाओं को हिजाब पहनना अनिवार्य है और सौम्या इस नियम को अपने निजी अधिकारों का उल्लंघन मानती हैं। सौम्या का ये कदम सराहनीय है। सौम्या ने इसके पीछे की वजह को अपने फेसबुक अकाउंट के जरिए समझाया है।
स्थिति को निरशाजनक बताते हुए सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि, ईरानी कानून के तहत जबरन स्कार्फ पहनाना उनके मानवाधिकार का सीधा उल्लंघन है साथ ही ये उनकी अभिव्यक्ति की आजादी और विचारों की आजादी समेत उनके विवेक और धर्म का उल्लंघन है। सौम्या ने बताया कि आयोजक चाहता है कि कोई भी खिलाड़ी किसी भी चैम्पियनशिप में अपने देश की औपचारिक यूनिफॉर्म के साथ ही देश का प्रतिनिधित्व करें, लेकिन खेल में इस तरह से किसी धर्म से जुड़ी पोशाक को जबरदस्ती पहनाने का कोई नियम नहीं है।”
सौम्या के इस फैसले कि सोशल मीडिया पर सराहना की गई है, और ये सही भी है। इस तरह बड़े स्तर पर चुने जाने के बाद अपने आपको उससे बाहर करने का फैसला लेने के लिए साहस की जरुरत होती है वो भी ऐसी दुनिया में जहां असहिष्णु या नस्लवादी के रूप लेबल करना बहुत आसान हो गया हो, ये स्पष्ट रूप से उत्पीड़न को इंगित करता है।
https://twitter.com/DrNausheenKhan/status/1006756051776045057
That's a bold, empowered, Indian woman for you! #SoumyaSwaminathan#Proudhttps://t.co/ZePYdp8T9F
— Smita Barooah (@smitabarooah) June 13, 2018
फिर भी ये हैरान कर देने वाली बात है कि प्रभावशाली व्यक्तित्व और ‘बुद्धिजीवियों’ ने बिना देरी किये इस फैसले पर अपनी राय दे डाली। सागरिका घोष ने एक बेतुके ट्वीट के जरिये ये दिखाने की कोशिश की कि एक खिलाड़ी के प्रशंसनीय और सराहनीय कदम को कुछ लोग अनदेखा करने की कोशिश कर रहे हैं जिसने अपने करियर को दाव पर लगाकर अधिकारों को दमन करने वाली नीति को ठुकरा दिया है। तो क्या यही है तुम्हारा नारीवाद सागरिका।
Good for chess star Soumya Swaminathan to assert her individual rights on wearing headscarf. Hope she'll similarly assert her individual rights when told what to wear, eat, read, write, post on social media, or told to prove her "nationalism" by Indian govt #soumyaswaminathan
— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) June 13, 2018
हिजाब पूरी दुनिया में विवादित विषय रहा है जिसमें डेनमार्क और ऑस्ट्रिया जैसे कई देशों ने हाल ही में सुरक्षा की दृष्टि से सार्वजानिक स्थानों पर इसे पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है। कई आत्मनिर्भर नारीवादियों ने हिजाब का बचाव किया है, जो कि उनके नारीवाद का प्रतिक है। इन इस्लामी नारीवादियों ने दावा किया है कि ये उनकी इच्छा पर निर्भर करता है कि वो हिजाब को पहनना चाहती है या नहीं और हिजाब पहनना किसी के अधिकारों का हनन नहीं करता है। इस मामले में इच्छा कोई मायने नहीं रखती है। अगर आप ईरान में हो तो वहां अनिवार्य रूप से सिर पर स्कार्फ (हिजाब) पहनने की अनिवार्यता है। तथाकथित हिजाबी नारीवादीयों का मानना है कि हिजाब पहनना उनकी पसंद पर निर्भर करता है क्योंकि उन्हें इस तरह सोचने के लिए सशर्त बनाया गया है। ये अपनी पसंद की बजाय थोपी हुई पसंद है।
जबकि कई देशों में सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का मुद्दा उठाया गया है। ये मुद्दा तभी खत्म होगा जब लोग खुद ही सौम्या की तरह इस मामले में सामने आकर विरोध करेंगे और इसके खिलाफ कदम नहीं उठाएंगे। इससे पहले भारत की पिस्टल शूटर हिना सिद्धू ने भी हिजाब पहनने की अनिवार्यता पर ईरान में होने वाले एशियन एयरगन शूटिंग चैम्पियनशिप से अपने आप को अलग कर लिया था। ऐसे फैसलों की देश की आम जनता द्वारा इसकी सराहना की जानी चाहिए।
वो सभी नारीवादी जो दावा करती हैं कि वो पुरानी प्रथा को तोड़ना चाहती हैं उन्हें शायद हिजाब की प्रथा को खत्म करने से इसकी शुरुआत करनी चाहिए जो आज दुनिया में कट्टरता और पुरानी प्रथा का प्रतिक बना हुआ है। ये बहुत ही बुरा है कि आपको अपना चेहरा ढककर रखना है। हिजाब पहनने के पीछे ऐसे तर्क देना कि पुरुष खुद पर काबू रख सकें इसीलिए महिलाओं को हिजाब पहनना अनिवार्य है ये पूरी तरह से गलत है। सागरिका घोष जैसी नारीवादी हिजाब की दमनकारी नीति पर चुपी साध लेती हैं और सौम्या स्वामीनाथन के सराहनीय फैसले को स्वयं सेवा राजनीतिक बयान में बदल देती हैं जिससे महिलाओं को लंबे समय से इस तरह की परंपरा को भोगना पड़ता है।