वाकाटक राजवंश
उत्तर प्रदेश के बागपत में मिले शाही कब्रगाह और तीन शाही रथों की महत्वपूर्णखोज खोज के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग ने विदर्भ क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण खोज की है। भारतीय इतिहास में रथों और घोड़ों के अस्तित्व पर संदेह को सुलझाने के लिए बागपत की खोज का अपना महत्व है। इस खोज ने ‘आर्यन आक्रमण सिद्धांत’ को खतरे में डाल दिया है साथ ही इस थ्योरी के सिद्धांत को भी सवालों से घेर दिया है जिसे भारत में और बाहर मार्क्सवादी इतिहासकारों द्वारा प्रचारित किया जाता है। मिले अवशेष से रथ के अस्तित्व के बारे में कुछ जानकारी मिली है जिसके अनुसार कहा जा रहा है कि रथ को एक व्यक्ति द्वारा संचालित किया जा सकता है।
इसके बाद ‘रथ’ की खोज से आईवीसी में ‘घोड़े’ के अस्तित्व की अब तक अवधारणा को संभावित रूप से बदल देगी। कुछ साल पहले गुजरात के कच्छ के सुरकोटडा के एक अन्य आईवीसी साईट में घोड़ों की हड्डियां मिली थीं।। शाही रथ घोड़ों और एक सारथी द्वारा खींचे जाते थे।
इसके अलावा, डेक्कन कॉलेज के शहर आधारित पुरातत्त्वविदों ने हाल ही में पुष्टि की है कि वाकाटक राजवंश अपनी राजधानी नंदिवर्धन (आधुनिक नाम नागार्धन) से शासन किया करता था। पुरातत्व और संग्रहालय विभाग के परियोजना निदेशक विराग सोंटाकके के नेतृत्व में, महाराष्ट्र सरकार टीम 2015 से 2018 तक तीन सत्रों में विदर्भ की साइट का उत्खनन कर रही थी।
महाराष्ट्र की टीम ने वाकाटक शासनकाल से जुड़ी कई महत्वपूर्ण कलाकृतियों का पता लगाया है। डेक्कन कॉलेज के वरिष्ठ पुरातत्वविद् और नागार्धन खुदाई परियोजना के सह-निदेशक ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि “साईट पर खुदाई के दौरान कुछ कलाकृतियों मिली हैं जिनमें सेरेमिक्स और शीशे के बने कान के आभूषण शामिल हैं और ये उस अवधि के दौरान उपयोग की जाने वाली सामान्य वस्तुएं थीं”, कलाकृतियों की खोज ख़ास है क्योंकि आज तक केवल वाकाटक राजा पृथ्वी सेना से जुड़े लिखित शिलालेख और तांबे की प्लेटें ही खुदाई में मिली हैं। ये कलाकृतियां पहला सबूत हैं कि राज ने वास्तव में अपनी राजधानी पद्मपुरा को नंदिवर्धन में स्थानांतरित किया था। मिट्टी के बरतन, कटोरे और घड़े, मन्नत के लिए तीर्थस्थान और टैंक, लौह छैनी, हिरण और टेराकोटा चूड़ियों का चित्रण करने वाला एक पत्थर, ये सभी कुछ कलाकृतियों हैं जो उत्खनन स्थल से खुदाई के दौरान मिले थे।
टीम द्वारा पूरी तरह से अध्ययन करने के बाद पाया गया कि वो उस अवधि में अद्वितीय थे। इन वस्तुओं के साथ देवताओं, जानवरों और मनुष्यों की छवियों की भी खोज की गई। उत्खनन परियोजना के सह-निदेशक शांतनु वैद्य ने कहा, “उत्खनन की योजना बनाई गई थी जिसके बाद 6 अलग-अलग स्थानों पर खुदाई की गयी थी। खुदाई में हमें वाकाटक राजवंश की राजधानी की उपस्थिति की पुष्टि करने वाले मजबूत साक्ष्य मिले हैं।“ इन साइटों पर हुई खोज से ये पुष्टि होती है कि पूंजी में ऐसे बदलाव वास्तव में प्राचीन काल में हुए थे। वाकाटक शासकों ने राजसी अजंता और एलोरा गुफाओं के निर्माण को उस समय में ही चालु कर दिया था।
मार्क्सवादी इतिहासकारों ने वास्तव में भारत के इतिहास का प्रभार संभाला है और उन्होंने दिल्ली केंद्रित सल्तनत पर ध्यान केंद्रित कर इन महत्वपूर्ण राजवंशों की दरकिनार कर दिया। मुगल शासन के प्रति उनके प्रेम की कोई सीमा नहीं है और ऐतिहासिक भारतीय सभ्यताओं प्रति वो उदासीन रहे हैं। दक्षिण से उत्तर तक में इस तरह के उत्खनन द्वारा भारत के इतिहास की खोज को जारी रखने की आवश्यकता है और इस खोज से नए तथ्य उभरते रहेंगे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने हाल ही में हिसार हरियाणा के पास राखीगढ़ी में पाए गए अवशेषों पर भी अध्ययन किया था। जिसमें मानव डीएनए सैंपल की जांच में पाया गया कि उनमें मध्य एशिया का कोई अंश नहीं था। इससे ये संकेत मिलता है कि बाहरी लोगों से सीमित संपर्क के साथ वैदिक काल पूरी तरह से देसी दौर था जिसके बाद से आर्य-द्रविड़ सिद्धांत पर कई सवाल खड़े हो गये हैं। इस सिद्धांत का इस्तेमाल आज के आधुनिक दौर में दक्षिणी भारत में राजनीतिक दलों द्वारा विभाजन की नीति के तहत खूब किया जाता है। आगे के अध्ययन में भारतीयों की उत्पत्ति के बारे में जो भी संदेह है उसपर से धीरे-धीरे पर्दा उठेगा और मार्क्सवादी इतिहासकारों के संकाय सिद्धांतों को गलत साबित करेगा।