अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) जिसके पास मुसलमानों के मुद्दों पर फैसला लेने का अधिकार है वो आज अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए देश के हर जिले में शरिया अदालत का गठन करना चाहते हैं। अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी जफ़रयाब जिलानी ने पीटीआई से कहा, वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में इस तरह की 40 अदालतें हैं। हम देश के हर जिले में कम से कम एक ऐसी अदालत का गठन करने की योजना बना रहे हैं। जफ़रयाब जिलानी का उद्देश्य अन्य अदालतों के बजाए शरिया कानूनों के तहत समस्याओं को हल करने का है। एआईएमपीएलबी के मुताबिक, शरिया अदालत ‘तीन तलाक’ और ‘विरासत’ समेत कई समस्याओं पर फैसला करेगा।
भारत के हर जिले में शरिया अदालत के गठन को लेकर आगे की योजना पर बात करते हुए जिलानी ने कहा, एआईएमपीएलबी आगामी 15 जुलाई को दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक करने जा रहा है, जिसमें प्रस्तावित अदालतों के सुचारू कामकाज के लिए धन जुटाने के तरीकों पर चर्चा की जाएगी। जिलानी के मुताबिक, तफहीम-ए-शरीयत कमेटी को सक्रिय बनाने पर भी विचार किया जायेगा और कमेटी वकीलों और न्यायाधीशों को शरिया कानून के तहत ही नियुक्त करेगा।
इस तरह के अपमानजनक बयान जो स्पष्ट रूप से ‘एक राष्ट्र एक संविधान’ के विचार विपरीत है, सिर्फ राजनीतिक पार्टियों को उकसाने के लिए था और हुआ भी कुछ ऐसा ही। कांग्रेस को एक मौका चाहिए होता है और मौका मिलते ही कांग्रेस ने किया भी ऐसा ही और अपने अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की राजनीतिके ट्रैक रिकॉर्ड को जारी रखते हुए वो शरिया अदालत के गठन के समर्थन में आयी और एआईएमपीएलबी के रुख का समर्थन किया। रिपब्लिक टीवी को दिए एक बयान में कांग्रेस नेता ज़मीर अहमद ने कहा, “शरिया कोर्ट का गठन होता है तो ये एक बढ़िया कदम होगा। जमीनी स्तर पर कानून वही रहेगा। हमारे पास केवल एक संविधान है लेकिन शरिया कोर्ट मामूली पारिवारिक विवादों को हल करने में मदद करेगा। हमारे पास बैंगलोर में भी शरिया कानून है। यदि ये कानून कार्यान्वयन में आएगा तो ये एकता बनाये रखेगा और मुसलमानों के बीच जागरूकता फैलाने में भी मदद करेगा।“ अभी तक कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने शरिया अदालत के मुद्दे पर टिप्पणी नहीं की है, लेकिन समान नागरिक संहिता पर अपना रुख सामने रखा था, कांग्रेस अपने अल्पसंख्यक मतदाता आधार को बढ़ावा देने के लिए ऐसा कर रही है।
संविधान को होने वाले खतरे को ताक पर रखकर अल्पसंख्यक को बढ़ावा देने की इस रेस में बीजेपी एक बार फिर से कानून के समर्थन में अपनी आवाज के साथ सामने आयी और भारतीय संविधान में समानता के सिद्धांतों का बचाव किया। एआईएमपीएलबी द्वारा शरिया अदालत के गठन की मांग पर जवाबी रुख में बीजेपी ने कड़े शब्दों में इस मांग को खारिज कर दिया। बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने इस बेतुकी मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘आप धार्मिक मुद्दों पर बात कर सकते हैं, लेकिन अदालत देश को एक रखती हैं। शरिया कोर्ट के लिए यहां कोई जगह नहीं है, चाहे वह गांव हो या शहर। अदालतें कानून के अनुसार काम करेंगी। भारत इस्लामिक देश नहीं है।’ भारत की सत्ताधारी पार्टी का ये बयान अल्पसंख्यक के तुष्टिकरण की राजनीति से ऊपर है जो ये समझती है कि धर्म आधारित न्यायिक प्रणाली जैसे शरिया अदालत का संवैधानिक लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। इस तरह से शरिया अदालत की मांग का विरोध करते हुए बीजेपी ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी की गंदी राजनीति का खुलासा किया है बल्कि किसी भी कीमत पर भारती राजनीति में अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण करने की उनकी राजनीति को भी सामने रखा है।