ऐसा लगता है कि कांग्रेस को अपनी गलती का एहसास हो गया है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की रविवार को हुई अहम बैठक के बाद पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया था लेकिन कांग्रेस पार्टी को जब कोई समर्थन नहीं मिला तो पार्टी अपने तेवर नर्म करने का विचार कर रही है। चूंकि इस पुरानी पार्टी का मुख्य मुद्दा बीजेपी को पद से हटाना है ऐसे में कांग्रेस कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती है। अविश्वास प्रस्ताव ने पार्टी के विश्वास को डगमगा दिया है और अब वो सत्ता में आने और नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए कोई भी समझौता करने को तैयार हो गयी है।
ममता बनर्जी ने कई बार स्पष्ट किया है कि उन्हें महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व स्वीकार नहीं है, साथ ही वो राहुल गांधी के नेतृत्व में काम नहीं करना चाहती हैं। वहीं, सुप्रीमो मायावती का दावा है कि उनका पीएम बनना तय है। इसके बाद कांग्रेस ने भी अपने पीएम पद के उम्मीदवार के लिए रहुल गांधी के नाम की घोषणा की थी। कांग्रेस पार्टी की घोषणा के बाद राहुल के नाम को लेकर जेडीएस के अलावा कोई अन्य पार्टी समर्थन में नहीं आयी। यहां तक कि पार्टी के सहयोगी, सपा, राजद, एनसीपी, डीएमके भी राहुल के नाम पर चुपी साध ली।
पार्टी के वरिष्ठ नेता भी मान चुके हैं पार्टी अपने दम पर चुनावी मैदान में बहुमत हासिल नहीं कर सकती है। CWC की बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने कहा था कि ‘2014 के आम चुनावों से तीन गुना बेहतर प्रदर्शन करेंगे और ये पार्टी के आंकड़े को 132 तक ले जायेगा।‘ वहीं, कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा था कि, पार्टी नरेंद्र मोदी जी को सत्ता से बेदखल कर 2019 के आम चुनाव में ‘समान विचारधारा’ वाली पार्टियों के समर्थन से 274+ सीटें हासिल करेगी। ये बयान पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के कम होते आत्मविश्वास को दर्शाता है जो अब ये समझ चुके हैं कि उन्हें गठबंधन के लिए क्षेत्रीय दलों को अपने साथ लाना होगा क्योंकि पार्टी पहले जितनी सक्षम नहीं रही कि अपने दम पर सीटें जीत सके।
पहले तो कांग्रेस ने कांग्रेस CWC की बैठक के बाद राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया था लेकिन जब किसी भी अन्य पार्टी ने उनके प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया तो कांग्रेस ने एक ही दिन में यू-टर्न लिया है। चूंकि, कांग्रेस अपने दम पर 2019 के आम चुनाव में बहुमत हासिल नहीं कर सकती है उसे अन्य विपक्षी दलों को अपने साथ लाना होगा। राहुल गांधी के खराब प्रदर्शन को देखते कोई भी पार्टी उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं करना चाहती ऐसे में कांग्रेस अन्य विपक्षी पार्टियों को साथ लाने के लिए समझौता करने को तैयार हो गयी लेकिन इसके लिए भी पार्टी ने एक शर्त सामने रखी है। कांग्रेस ने कहा कि उसे किसी भी दल के पीएम उम्मीदवार से गुरेज़ नहीं बशर्ते वो आरएसएस का समर्थक न हो। रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस पार्टी ने कहा कि, ‘आरएसएस समर्थित व्यक्ति को छोड़कर किसी को भी प्रधानमंत्री के रुप में देखने में कोई आपत्ति नहीं हैं।’ ऐसे में पार्टी ने ये स्पष्ट कर दिया है कि वो अब किसी ऐसे व्यक्ति को ही पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में स्वीकार करेगी जो आरएसएस पृष्ठभूमि से न हो और न ही आरएसएस का समर्थक हो।
असल में, क्षेत्रीय दलों के दबाव में कांग्रेस को ऐसा करना पड़ा है। वो क्षेत्रीय दल जो कभी पुरानी पार्टी के वफादार हुआ करते थे वो अब कांग्रेस के दबाव में नहीं हैं क्योंकि उन्हें भी पता है कांग्रेस अब पहले जितनी मजबूत पार्टी नहीं रही। कांग्रेस पार्टी का पहले राहुल गांधी के नाम की घोषणा करना और एक ही दिन में यू-टर्न लेना यही दिखाता है कि लोगों को राहुल गांधी पर कितना विश्वास है साथ ही राहुल गांधी पर कांग्रेस के भी विश्वास को दर्शाता है।
यदि एक ही दिन में पीएम उम्मीदवार को बदला जा सकता है तो ये विपक्ष की 2019 को लेकर तैयारी और जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ को दर्शाता है। साथ ही कांग्रेस की हताशा और उसके कम होते आत्मविश्वास को दर्शाता है जो अब बीजेपी को 2019 में सत्ता से दूर रखने के लिए विपक्ष के साथ समझौते के लिए तैयार है।