जीवाश्म ईंधन का उपयोग भारत में ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में किया जाता है। ये ईंधन पेट्रोल, कोयला और प्राकृतिक आदि के रूप में होता है और इसमें कार्बन की उच्च मात्रा पायी जाती है। इसके अन्य इस्तेमाल किए जाने वाले डेरिवेटिव में केरोसिन और प्रोपेन शामिल हैं। देश की अधिकांश जीवाश्म ईंधन की जरूरत आयात से पूरी होती है क्योंकि हमारे पास पर्याप्त जीवाश्म नहीं है। इस तथ्य को जानने के बावजूद कि हमारे देश में जीवाश्म ईंधन की अधिकतर जरूरत को आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है जिसका खर्च सरकार उठाती है, हमारी नीतियों की वजह से अब उर्जा के इन स्रोतों की खपत और ज्यादा बढ़ी है। खाना बनाने के लिए सब्सिडी केवल उन लोगों को प्रदान की जाती है जो एलपीजी सिलेंडरों का उपयोग करते हैं।
नीति आयोग एक प्रस्ताव पर काम कर रही है जो इस व्यवस्था को खत्म कर देगी और एलपीजी सब्सिडी की जगह कुकिंग सब्सिडी आ जाएगी। कुकिंग सब्सिडी पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) और जैव ईंधन का इस्तेमाल करके खाना पकाने वाले लोगों को फायदा पहुंचाएगी। जैव ईंधन फसलों, पेड़ो, पौधों, गोबर, मानव-मल आदि जैसे जैविक वस्तुओं (बायोमास) से बनता है। इसमें इथेनॉल (Ethanol) और जैव-डीजल (Biodiesel) शामिल हैं जो आमतौर पर मक्का, गन्ना और अन्य कृषि उत्पादों के माध्यम से बनाया जाता है। जैव ईंधन पर्यावरण अनुकूल है और इसके इस्तेमाल से देश का आयात का खर्चा भी कम होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में खाना बनाने के लिए जैव ईंधन का उपयोग उर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन का बेहतर विकल्प है। वहीं, दूसरी तरफ, पाइप्ड नेचुरल गैस (पीएनजी) अब देश के शहरी क्षेत्रों में एलपीजी सिलेंडरों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प है। ये गैस कंपनियों से सीधे घर पहुंचाई जाती है और इसके कम्प्रेशन की प्रक्रिया, खाली सिलेंडरों को भरने, सिलेंडरों का परिवहन की आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। गुजरात जैसे राज्य में जहां पीएनजी की सेवा का विस्तार पूरे राज्य में लगभग पूरा किया जा चुका है और यदि एलपीजी सब्सिडी की जगह पीएनजी सब्सिडी को नहीं लाया जाता है तो ये उनके लिए नुकसानदेह साबित होगा ।
नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “एलपीजी एक विशेष उत्पाद है, सब्सिडी खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सभी उत्पाद/ईंधन पर लागू होनी चाहिए। क्योंकि कुछ शहर हैं जहां पीएनजी (पाइप्ड नैचुरल गैस) का इस्तेमाल किया जाता है, तो तार्किक ये है कि सब्सिडी उन्हें भी मिले।” संभावना है कि एलपीजी सब्सिडी की जगह कुकिंग सब्सिडी लाने से जुड़ा ये बदलाव राष्ट्रीय ऊर्जा नीति 2030 के मसौदे में शामिल किया जा सकता है।
मोदी सरकार एलपीजी सिलेंडरों पर सब्सिडी देती है ताकि उपभोक्ताओं को लकड़ी या केरोसिन के इस्तेमाल किये जाने से रोका जा सके क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता हो। जो उपभोक्ता बाजार भावों पर एलपीजी सिलेंडरों को खरीदते हैं उन्हें सरकार सालाना प्रति परिवार को एक साल में 14.2 किलोग्राम के 12 रसोई गैस सिलेंडर के लिए एलपीजी सब्सिडी देती है। सब्सिडी का पैसा उपयोगकर्ताओं के बैंक खातों में स्थानांतरित की जाती है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्राकृतिक गैस की बढ़ती कीमतों के कारण पिछले कुछ महीनों से सरकार द्वारा सब्सिडी बढ़ा दी गयी है। एक गैर-सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की कीमत 781 रुपये है। मई में महीने में बैंक खातों में स्थानांतरित की जाने वाली सब्सिडी राशि प्रति सिलेंडर 159.2 9 रुपये थी। हालांकि, जून में ये राशि 204.9 5 रुपये और इस महीने 257.74 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई थी। सरकार एलपीजी सिलेंडर की कीमतों को स्थिर रखने के लिए सब्सिडी बढ़ा रही है।
जीवाश्म ईंधन पर आयात बिल को कम करने के लिए मोदी सरकार जैव ईंधन और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में विस्तार के लिए प्रयास कर रही है। सरकार ने अपने नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को 175 जेडब्ल्यू से 227 जेडब्ल्यूतक तक कर दिया है। साथ ही गन्ना खरीदने और जैव-इथेनॉल उत्पादन के लिए इसका उपयोग करने का भी निर्णय लिया है जिससे गन्ना किसानों के साथ-साथ ऊर्जा क्षेत्र को फायदा होगा। जैव ईंधन और पीएनजी का उपयोग करने वाले लोगों को कुकिंग सब्सिडी देने का ये नया कदम पर्यावरण के अनुकूल है और ये ऊर्जा खपत के लिए एक सराहनीय कदम है।