योगी सरकार ने एक ऐसे स्कूल पर कार्रवाई की है जिसे गुप्त रूप से एक सरकारी स्कूल से इस्लामिक संस्थान में परिवर्तित कर दिया गया है। ये स्कूल देवरिया में सलेमपुर ब्लॉक के नवलपुर गांव में स्थित है। स्कूल का नाम प्राथमिक विद्यालय नवलपुर लिखने की बजाय इस्लामिया प्राथमिक विद्यालय नवलपुर रखा गया है। इस स्कूल में शुक्रवार को छुट्टी होती है, जबकि रविवार को ये स्कूल खुला रहता है यहां तक कि स्कूल के सारे दस्तावेज भी उर्दू में लिखे जाते हैं। जागरण की रिपोर्ट के अनुसार ये सब स्कूल के प्रधानाचार्य खुर्शीद अहमद के तहत वर्षों से चल रहा है।
डीएम सुजीत कुमार ने बेसिक शिक्षा अधिकारी संतोष कुमार देव पांडेय को इस मामले की जांच करने का निर्देश दिया है। डीएम ने कहा, “बेसिक शिक्षा अधिकारी से मामले की एक रिपोर्ट मांगी गई है। ये एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि बिना किसी निर्देश या आदेश के स्कूल को रविवार के बजाय शुक्रवार को बंद किया जाता है।“ ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ज्ञानचंद मिश्रा ने कहा, “जब शिक्षा विभाग की एक टीम ने शुक्रवार को स्कूल का दौरा किया तो उन्होंने स्कूल बंद पाया। साथ ही अधिकारियों ने ये भी पाया कि स्कूल की बिल्डिंग पर प्राथमिक विद्यालय नवलपुर लिखने की बजाय इस्लामिया प्राथमिक विद्यालय नवलपुर लिखा गया है।“
इसके बाद ज्ञानचंद मिश्रा ने तुरंत स्कूल के प्रधानाचार्य खुर्शीद अहमद को बुलाया और साथ ही उन्हें स्कूल के सारे दस्तावेजों लाने के लिए कहा। वो स्कूल के दस्तावेज देखकर चौंक गये। दस्तावेजों की जांच के दौरान पाया गया कि स्कूल को शुक्रवार को बंद रखा जाता है जबकि रविवार को स्कूल खुला रहता है ये सब सऊदी अरब के प्रथाओं जैसा है। इसके अलावा स्कूल से संबंधित सभी दस्तावेज उर्दू भाषा में लिखे हुए थे। शुक्रवार को मिड-डे-मिल का रिकॉर्ड भी नहीं शामिल था। वहीं, इस मामले पर स्कूल के प्रधानाचार्य ने कहा कि, ये नियम पहले से ही चला आ रहा था वो स्कूल से 2008 में जुड़े थे और ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि स्कूल के लगभग 95 फीसदी बच्चे मुस्लिम हैं। स्कूल के सभी शिक्षक और स्टाफ भी मुस्लिम हैं।
अमर उजाला कि रिपोर्ट के मुताबिक, देवरिया जिले में 4 और इस्लामिक स्कूल हैं जिनमें से तीन विद्यालय रामपुर कारखाना ब्लॉक के हैं जबकि एक देसही देवरिया ब्लॉक में है। इन स्कूलों में मदरसा पैटर्न और इस्लामी कैलेंडर का भी पालन किया जाता है।
ये कई वर्षों से चला आ रहा है, ये विश्वास करना मुश्किल है कि किसी को भी इसकी जानकारी नहीं है और न ही किसी ने कभी इसपर ध्यान दिया। कुछ सेक्युलर कारणों की वजह से राजनेताओं ने इस पर चुपी साध रखी है और लोगों ने भी कुछ कारणों की वजह से कुछ नहीं कहा। ये वास्तविक अर्थ में तालिबानीकरण है जिसके बारे शशि थरूर बात कर रहे थे लेकिन यहां कहानी थोड़ी अलग है। यहां बहुसंख्यक समुदाय नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय है जो भारत को तालिबान में बदलने की कोशिश कर रहा है। ये सब वर्षों से चले आ रहे छद्म-धर्मनिरपेक्ष और तुष्टिकरण की राजनीति के परिणाम हैं। देश में कई क्षेत्र ऐसे हैं जो तालिबान से कम नहीं हैं, जहां तथाकथित अल्पसंख्यक बहुमत में है।
ये देखना बहुत ही बढ़िया है कि योगी सरकार कट्टरपंथी तत्वों और भारत के नियमों, विनियमों और धर्मनिरपेक्षता का मजाक बना रहे तत्वों के खिलाफ सख्ती से कार्रवाई कर रही है। ज्ञानचंद मिश्रा ने ये स्पष्ट कर दिया है कि अब इस परंपरा को बदला जाएगा और जो भी इसे मानने से इंकार करेगा उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। इस तरह से एक सरकारी स्कूल को इस्लामिक धर्मशास्त्र के आधार पर चलाना नियमों का उल्लंघन है, ये अवैध और अनैतिक है। जो भी इस तरह के सेक्युलर विरोधी अभ्यासों में शामिल उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए जिससे एक उदाहरण स्थापित हो। योगी सरकार को अन्य सार्वजनिक संस्थानों की जांच करनी चाहिए और पुष्टि करनी चाहिए कि कहीं वो इस तरह के अभ्यास में शामिल तो नहीं हैं।