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एबीपी न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी, अभिसार शर्मा और मिलिंद खांडेकर हुए बाहर?

Mahima Pandey द्वारा Mahima Pandey
3 August 2018
in मत
एबीपी प्रसून बाजपेयी
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एबीपी न्यूज़ में अचानक कुछ ऐसा हुआ जो हर गलियारे में चर्चा का विषय बन गया है। एबीपी न्यूज़ के तीन वरिष्ठ पत्रकार (अभिसार शर्मा, मिलिंद खांडेकर और पुण्य प्रसून जोशी) अब चैनल से अलग हो गए हैं। ये खबर चर्चा में है लेकिन उन्हें बाहर निकाला गया है या उन्होंने खुद बाहर जाने का रास्ता चुना फिलहाल इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।  हालांकि, खबरों की मानें तो ये पत्रकार काफी समय से निष्पक्ष पत्रकारिता की जगह राजनीतिक पार्टियों के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे थे जो जनता को पसंद नहीं आ रहे थे जिसके बाद चैनल के प्रबंधन ने उन्हें चैनल से निकालने का निर्णय लिया। वहीं, वामपंथी और उदारवादी लोगों ने दावा किया है कि उन्हें मोदी-विरोधी सुर की वजह से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

https://twitter.com/India_Policy/status/1025043575812177920

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वैसे देखा जाए तो ये चैनल के लिए बढ़िया है जिसे ऐसे पत्रकारों से छुटकारा मिल गया जो निष्पक्ष पत्रकारिता की जगह राजनीतिक पार्टियों के हित से जुड़ी खबरों का प्रसारण कर रहे थे। इन पत्रकारों की वजह से चैनल की टीआरपी में लगातार गिरावट आ रही थी जो चैनल कभी नंबर दो पर था वो आज नंबर 4 पर आ गया है। ये तीनों पत्रकार कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियों के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए पत्रकारिता करते थे और जनता को कई बार फेक खबरों से भ्रमित करने की कोशिश करते थे। अभिसार शर्मा को लेकर सोशल मीडिया पर बुधवार से ही खबरें तेज थीं कि उन्हें चैनल से निकाल दिया गया है, हमने अपने पिछले आर्टिकल में इसका उल्लेख भी किया है। आम आदमी पार्टी के नेता संदीप कुमार जब एक सीडी कांड विवाद में फंसे थे तब अभिसार शर्मा ने एक आर्टिकल के जरिये आम आदमी पार्टी के विधायक का बचाव करने की कोशिश की थी। अभिसार ने इस मामले के प्रकाश में आने के समय और मामले में महिला की भागीदारी पर संदेह भी व्यक्त किया था साथ ही आम आदमी के विधायक को क्लीन चीट देने की भी कोशिश की थी।

.@abhisar_sharma Not quite sure about news channels but some self declared neutral & foul-mouthed journalists use that on regular basis. pic.twitter.com/DDloNNpSQy

— The Frustrated Indian (@FrustIndian) March 14, 2017

पुण्य प्रसून जोशी आम आदमी पार्टी के हितैषी कहिये या ऐसे पत्रकार जो अपने स्वार्थ के लिए किसी एक पार्टी का समर्थन करता है और कई बार उन्हें सोशल मीडिया पर इसके लिए ट्रोल भी किया जा चुका है। वर्ष 2014 में जब केजरीवाल ने दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफा दिया था तब एबीपी न्यूज एंकर पुण्य प्रसून बाजपेयी ने उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया था तब दोनों की ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत सामने आयी थी जो ‘अरविंद केजरीवाल ऐंड पुण्य प्रसून बाजपेयी एक्सपोज्ड’ नाम से खूब वायरल भी हुआ था। पुण्य प्रसून बाजपेयी और केजरीवाल के बीच की सेटिंग जनता के सामने थी और एक पत्रकार का वो रूप भी जो निष्पक्ष पत्रकारिता का दावा करता है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने दोनों को ‘दलाल’ तक की संज्ञा दे डाली थी।

खबरों की मानें तो अभिसार और पुण्य प्रसून बाजपेयी को चैनल से निकाल दिए जाने के बाद मिलिंद खांडेकर ने उनका पक्ष लेते हुए चैनल को अलविदा कहने का विकल्प वो एबीपी समूह का हिस्से थे। शाजी जमां के बाद मिलिंद को चैनल की कमान सौंपी गई थी।

14 years & 8 days later it’s time to move on. Today was my last day as Managing Editor @abpnewstv . Thank you for being part of my journey so far.

— Milind Khandekar (@milindkhandekar) August 1, 2018

वर्ष 2018 में, पुण्य प्रसून बाजपेयी एबीपी में शामिल हुए थे और अपना खुद का शो ‘मास्टरस्ट्रोक’ शुरू किया था। चैनल की विश्वसनीयता को उनके शो के कारण काफी क्षति पहुंच रही थी।

ABP didn’t even visit farm of Chandramani Kaushi and filed a malicious report on prime time. In their enthusiasm to push anti-Modi agenda, they didn’t even do basic fact checks. @milindkhandekar must run an apology on his channel for misleading his viewers. #UnfortunateJournalism pic.twitter.com/yCx5eRmP3q

— Amit Malviya (मोदी का परिवार) (@amitmalviya) July 9, 2018

पुण्य प्रसून बाजपेयी पीएम मोदी की छवि खराब करने के लिए फेक न्यूज़ को बढ़ावा दे रहे थे जिस वजह से चैनल को जनता से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने लगी थी और चैनल की टीआरपी भी गिरने लगी थी जिससे चैनल की रैंकिंग दूसरे स्थान से चौथे स्थान पर पहुंच गयी थी।

Pic 1: 2017- ABP was at 2nd rank

Pic 2: 2018- ABP is down to 4th rank

It's not politics everytime, sometimes it's falling TRP and performance too pic.twitter.com/zhgAIgK6aw

— Ankur Singh (Modi Ka Parivar) (@iAnkurSingh) August 2, 2018

न्यूज़ कंपनी को हो रहे घाटे को देखते हुए एबीपी प्रबंधन ने उन्हें हटाने का फैसला लिया होगा। कोई भी कंपनी अपना घाटा और फायदा देखती है और यही वजह है कि वो अपने कर्मचारियों से ऐसे काम की मांग करती है जिससे कंपनी का ग्राफ ऊपर बढ़े और ऐसा न भी हो तो कम से कम कंपनी को कोई घाटा न हो ये जरुर तय करती है। फिर भी कुछ पत्रकार आरोप लगा रहे हैं कि मौजूदा सरकार पत्रकारिता की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।

हालांकि, सोशल मीडिया के विस्तार की वजह से आज की जनता आधुनिक हो गयी है वो देश के हर कोने में क्या हो रहा उससे वो भलीभांति ज्ञात हैं ऐसे में कौनसी खबर फेक है और कौनसी नहीं ये जनता खुद जान जाती है ऐसे में उन्हें अब मुर्ख बनाना और अपना हित साधना इतना आसान नहीं रहा। मोदी सरकार ने जनता से जो भी वाडे किये वो धीरे धीरे जमीनी स्तर पर लागू भी कर रही है और हर योजना का लाभ जनता को मिल रहा है ऐसे में जनता का भरोसा अन्य सरकारों के बदले वर्तामन की बीजेपी सरकार पर और मजबूत हुआ है। ऐसे में उन्हें किसी भी फेक न्यूज़ के द्वारा अगर कोई भी पत्रकार या न्यूज़ चैनल उन्हें भ्रमित करने की कोशिश करेगा तो जनता का भरोसा उठेगा ही। इंग्लिश पत्रकारिता में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है जहां रिपब्लिक और टाइम्स नाउ एनडीटीवी से आगे निकल गये हैं। अब आलम ये है कि एनडीटीवी अपनी वित्तीय संकट को पूरा करने के लिए भ्रामक खबरें, गलतफहमी पैदा करने और फेक न्यूज़ को बढ़ावा दे रहा है। इन कारणों की वजह से एनडीटीवी का बुरा समय और वित्तीय संकट इस तरह से गहराता जा रहा है कि उसे अपनी सहायक कंपनी रेड पिक्सेल्स (Red Pixels) में 7.38% की हिस्सेदारी अपने दिल्ली दफ्तर परिसर के भूस्वामी एआर चढ्ढा ऐंड कंपनी को बेचनी पड़ी थी। एनडीटीवी की कम होती विश्वसनीयता के कारण दर्शकों की संख्या में भारी गिरावट आई है। दरअसल, पिछले साल दर्शकों की संख्या में गिरावट की वजह से कंपनी ने लागत-कटौती और टर्नअराउंड योजना का सहारा लिया था। एनडीटीवी ने मुख्य क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अपनी पुनर्गठन रणनीति के तहत 25 प्रतिशत स्टाफ में कटौती की घोषणा की थी तब किसी ने भी कोई सवाल नहीं पूछा था लेकिन क्यों ?

वास्तव में हूट के अनुसार, “मार्च 2016 के अंत में 468 करोड़ रुपये के साथ अच्छा लाभ कमाया था.” इस लाभ के बावजूद, 2017 में एबीपी समूह ने अपने 700 कर्मचारियों को निकाल दिया था। अब जब न्यूज़ चैनल को हो रहे नुकसान को देखते हुए अगर एबीपी न्यूज़ ने इन पत्रकारों को बाहर निकाला है तो इसपर इतनी राजनीति क्यों हो रही है? एबीपी न्यूज़ के प्रबंधन द्वारा लिया गया फैसला व्यापारिक था न कि राजनीतिक रूप से प्रेरित लेकिन जानबूझकर कुछ वामपंथी और उदारवादी इसे राजनीति के चश्मे से देख रहे हैं। कोई भी निजी कंपनी किस कर्मचारी को रखेगी और किसे बाहर निकालेगी वो उसका अपना निर्णय होता है।

Tags: अभिसार शर्मापत्रकारपत्रकारिता
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