2019 से पहले “धारणा” युद्ध जीत रही है बीजेपी

बीजेपी विपक्ष

भारत की राजनीति में भावनाओं का भी अपना महत्व है जिसका उपयोग राजनीतिक पार्टियां अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए करती हैं। चुनावों के दौरान प्रचार प्रसार में कैसे जनता की भावनाओं को अपनी ओर करना है और कैसे उसका फायदा उठाना ये राजनीतिक पार्टियां बखूबी जानती हैं। जनता की जिस पार्टी से जितना गहरा लगाव होगा वो उस पार्टी को अपना वोट देते हैं। ‘अगर जनता रूठी तो पार्टी डूबी’, ये पंक्तियां भारत की राजनीति पर एकदम फिट बैठती है। राजनीतिक पार्टियां जनता की भावनाओं का फायदा उठाकर जीत तो जाती हैं लेकिन विकास के नाम पर जनता के लिए कुछ नहीं करती हैं बहुत कम ही ऐसे राजनेता हमारे देश की राजनीति में रहे हैं जिन्होंने वास्तव में देश और देश की जनता के लिए काम किया है। वर्ष 2014 में ऐसा ही कुछ पीएम मोदी ने भी किया था। कांग्रेस के विपरीत पीएम मोदी ने देश के विकास और जनता के हित के लिए काम किया है। इसके अलावा चुनाव से पहले ही अब कई धारणाएं भी बनाई जाने लगी हैं कि किस पार्टी का पलड़ा ज्यादा भारी है।

कुछ उपचुनावों में बीजेपी की हार से खुश विपक्ष में अब ये धारणा घर कर गयी है कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी की हार होगी। इसके पीछे की पहली वजह है कई राज्यों के उपचुनाव में बीजेपी की हार और दूसरी कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार बनाने में विफलता। हालांकि, विपक्ष ये समझने में विफल रहा है कि उनकी इन दो धारणाओं से कहीं ज्यादा उनकी असफलता की सूची है।

चाहे वो अविश्वास प्रस्ताव हो महाराष्ट्र का सांगली और जलगांव में जीत हो, चाहे तीसरे मोर्च में विपक्ष के नेतृव की लड़ाई हो, ये सूची काफी लंबी है। इन सभी मुद्दों को अनदेखा कर विपक्ष अपनी दो धारणाओं से ज्यादा खुश है। विपक्ष ने मोदी सरकार को गिराने तक की कोशिश की यहां तक कि आधारहिन आरोप भी लगाये लेकिन बीजेपी ने हर सवाल, हर रणनीति का जवाब तथ्यों के साथ मजबूती से दिया तो कहीं कुछ तो खुद जनता ने ही सामने से विपक्ष की पोल खोल कर रख दी।

हाल ही में टीडीपी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव का हाल क्या हुआ ये किसी से छुपा नहीं है। बीजेपी के सहयोगी दलों में मनमुटाव को देखते हुए विपक्षी दलों ने अपनी समझ में बहुत ही बेहतरीन चाल चली थी और संसद में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आये थे, लेकिन उनकी उम्मीद के विपरीत इस प्रस्ताव का हाल बहुत ही बुरा रहा। बीजेपी की मुश्किल घड़ी में बीजेपी के सभी सहयोगी उसके साथ खड़े रहे और इसके जरिये संयुक्त विपक्ष को बता दिया कि पार्टी के सभी नेता पार्टी के प्रति कितने वफादार और अनुशासित हैं। वहीं, इस प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष का एकजुट चेहरा भी सबके सामने था। देश की जनता ने भी देखा कैसे बीजेपी को गिराने की जदोजहद में विपक्षी पार्टियां संसद के सत्र को बाधित करती हैं साथ ही जनता के हित के विपरीत कार्यों को बढ़ावा देती हैं।

वर्ष 2014 के बाद से ही देश के कई राज्यों में बीजेपी की लोकप्रियता समय के साथ कितनी बढ़ी है इसका ताजा उदाहरण महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र राज्य में मराठा आंदोलन के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की जलगांव और मराठों के गढ़ सांगली में महानगरपालिका के चुनाव में अप्रत्याशित जीत  हुई थी। यहां भारतीय जनता पार्टी ने एनसीपी-कांग्रेसगठबंधन को करारी शिकस्त दी। ये नतीजे दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की जड़ें मजबूत है और उसके प्रतिद्वंद्वी कहां खड़े हैं।

दरअसल, विपक्ष का मुख्य एजेंडा जनता के हित में नहीं है बल्कि उनका मुख्य और एकमात्र उद्देश्य है ‘मोदी को सत्ता से बेदखल करना’। अपने इस उद्देश्य के लिए आये दिन विपक्ष कभी हिंसा का सहारा लेती है तो कभी झूठ का। इसका ताजा उदाहरण राफेल समझौता है। इस समझौते को लेकर कांग्रेस पार्टी बिना किसी आधार के झूठे दावे करती रही है लेकिन बीजेपी ने उसके हर सवाल का जवाब दस्तावेजों के साथ जनता के सामने रखा। यहां तक कि खुद फ्रांस ने कांग्रेस के सवाल पर सामने से स्पष्टीकरण दिया था। मोदी को हराने के लिए पूरा विपक्ष एकसाथ खड़े होने के दावे कर रहा है और समय-समय पर अपनी एकता को दर्शाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। कर्नाटक राज्य में कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण कार्यक्रम इसका एक उदाहरण है लेकिन, जब कोई रणनीति बनाने की बात आती है तब विपक्ष की विचारधारा में टकराव तो कभी कांग्रेस के भीतर ही मतभेद साफ नजर आता है। अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संयुक्त विपक्ष की  एकता सबके सामने थी। वास्तव में विपक्ष की रणनीति है मोदी को पीएम के पद से हटाना उसके बाद क्या करना है वो बाद में तय करेंगे। वाह! संयुक्त विपक्ष की रणनीति के क्या कहने।

संयुक्त विपक्ष में नेतृत्व को लेकर तनातनी जारी है। देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा सभी पार्टियों के नेताओं ने खुद ही तय कर लिया है। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, पवार, देवगौड़ा, मुलायम अखिलेश? कौन करेगा संयुक्त पार्टी का नेतृत्व और संभालेगा देश की बागडोर? सभी को ज्ञात है है कि देश की जनता अपने प्रधानसेवक का चुनाव करती है लेकिन लगता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता और जनता में उनके लिए प्यार को अनदेखा कर सभी विपक्षी पार्टियों के नेता अगला प्रधानमंत्री बनने के सपने संजो रहे हैं। हालांकि, जनता का जनादेश सभी के सपनों को बुरी तरह से तोड़ने वाला है। वर्ष 2014 में पीएम मोदी देश के विकास और जनता की सेवा के विचार से पीएम पद की दौड़ में शामिल हुए थे और अपने वादे के मुताबिक उन्होंने हर स्तर पर देश के विकास के लिए काम किया है और आज भी वो इसी दिशा में प्रयास कर रहे हैं । खुद जनता उनके काम से खुश है। ऐसे में विपक्ष में पीएम मोदी की तरह कोई लोकप्रिय नेता नजर नहीं आता।

बीजेपी जबसे सत्ता में आयी है भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कई ठोस कदम उठाये हैं। बीजेपी के इस कदम से पिछली सरकारों का भ्रष्टाचार सामने आया है। कांग्रेस की छवि आज भी एक भ्रष्ट पार्टी की है जिसके शासन में बड़े पैमाने पर घोटाले, जमाखोरी, धोखाधड़ी को अंजाम दिया गया है। आज तक कांग्रेस अपने शासन में किये गये भ्रष्टाचार की वजह से जनता की नजरों में उठ नहीं पायी है। भ्रष्टाचार का मुद्दा आज भी देश में बड़ा मुद्दा है। पीएम मोदी ने अपनी नीतियों से सफलतापूर्वक नीरव मोदी, विजय माल्या और चोकसी के घोटालों को जनता के सामने रखा है और अभी भी घोटालों के आंकड़े सामने आ रहे  हैं। मोदी सरकार की नीतियों की वजह से ही चिदंबरम, अहमद पटेल जैसे कांग्रेस के कई ख़ास नेताओं का भ्रष्टाचार सामने आ पाया।

एक और ऐसा मुद्दा है जो कांग्रेस पर खूब जचता है वो है ‘वंशवाद’। वर्षों से कांग्रेस पार्टी का एकमात्र आधार एक परिवार की सेवा से निहित रहा है और जो ‘कांग्रेस कल्चर’ को नहीं मानता उसे पार्टी में अपमान का सामना करना पड़ता है। कांग्रेस ने वंशवाद को हमेशा से बढ़ावा दिया है। नेहरु जी के बाद इंदिरा गांधी, इंदिरा गांधी के बाद उनके बेटे राजीव गांधी और राजीव गांधी के निधन के बाद उनके बेटे राहुल गांधी अपनी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। पार्टी में काबिल नेताओं के होने के बावजूद राहुल गांधी को ही पार्टी का अध्यक्ष चुना गया, और अब उनका नाम पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर घोषित भी कर दिया गया। यही नहीं कांग्रेस अपने अन्य नेताओं के रिश्तेदारों और बच्चों को राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़ा रही है। अन्य बड़े वंशजों में सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, संदीप दीक्षित, गौरव गोगोई और कई अन्य नेताओं के नाम शामिल हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से वंशज होने की वजह से पार्टी में उच्च स्थान प्राप्त है  न कि प्रतिभा और राजनीतिक कौशल की वजह से।

कांग्रेस पार्टी के खिलाफ एक और बड़ी धारणा इसकी हिंदू विरोधी छवि है। कांग्रेस और उसके नेता तुष्टिकरण की राजनीति के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस की हार के पीछे की वजहों में से एक उसकी तुष्टिकरण की नीति भी रही है। आज भी कांग्रेस यही कर रही है। हाल ही में विकीलीक्स के खुलासे में भी कांग्रेस की तुष्टिकरण की राजनीति सामने आयी है। कांग्रेस हो या ममता बनर्जी या मायावती हर पार्टी के नेता किसी न किसी जाति को लुभाने के लिए तुष्टिकरण की राजनीति करते आये हैं और जनता को भी उनकी इस नीति की समझ है यही वजह है कि उनकी ये नीति चुनावों में भी कोई प्रभाव नहीं दिखा पा रही है। हाल ही में राहुल गांधी ने भी कथित तौर पर कांग्रेस पार्टी को मुस्लिम पार्टी कहा था

विपक्ष एनडीए को तोड़ने में नाकाम रहा है। एनडीए के सहयोगी दल अभी भी एक साथ खड़े हैं चाहे वो शिवसेना हो या जेडीयू। हालांकि, शिवसेना का रुख बीजेपी के प्रति थोड़ा रुखा जरुर हुआ है लेकिन पार्टी की परीक्षा की घड़ी में शिवसेना और अन्य सहयोगी दलों ने बीजेपी का साथ दिया। चंद्रबाबू ने अपनी मर्जी से एनडीए का साथ छोड़ा था इसमें विपक्ष की कोई भूमिका नहीं थी । हालांकि, वो पीएम मोदी से मिलने की योजना बना रहे हैं ऐसे में चर्चा है कि वो संसदीय चुनाव में एक बार फिर से एनडीए के साथ हाथ मिला सकते हैं। हाल ही में शिवसेना ने राज्यसभा के उपसभापति के बीजेपी उम्मीदवार को अपना समर्थन देने का फैसला किया है। ये दर्शाता है कि अपनी लाख कोशिशों के बावजूद विपक्ष अपने इरादों में सफल नहीं रहा। ऐसे में 2019 के आम चुनावों को लेकर विपक्ष की कोई भी रणनीति काम नहीं आने वाली है। जनता के वोट से एक बार फिर से देश के प्रधानमंत्री बनेंगे और विपक्ष के मंसूबों पर पानी फिर जायेगा।

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